भिण्ड, 12 जुलाई। भारत-तिब्बत सहयोग मंच (बीटीएसएम) के युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष अर्पित मुदगल ने आज जारी एक प्रेस वक्तव्य में भारत की भौगोलिक पहचान और तिब्बत के भविष्य को लेकर दो गंभीर मुद्दों पर राष्ट्र का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि भारत-तिब्बत सीमा को भारत-चीन सीमा कहना ऐतिहासिक भूल है।
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और राज्यसभा सांसद सुजीत कुमार के हालिया बयानों का समर्थन करते हुए मुदगल ने कहा कि भारत की सीमा तिब्बत से लगती है, न कि चीन से। चीन ने तिब्बत पर 1950 में अवैध रूप से कब्जा किया और अब वह एक अधिग्रहित क्षेत्र है। उन्होंने भारत सरकार, मीडिया और कूटनीतिक संस्थानों से अपील की कि वे भारत-चीन सीमा जैसे शब्दों के उपयोग को तत्काल बंद करें और भारत-तिब्बत सीमा की ऐतिहासिक सच्चाई को पुन: स्थापित करें।
चीन द्वारा तिब्बती बच्चों पर सांस्कृतिक हमला
अर्पित मुदगल ने कहा कि टिबेट एक्शन इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार 10 लाख से अधिक तिब्बती बच्चों को चीन द्वारा संचालित बोर्डिंग स्कूलों में जबरन भेजा गया है। बच्चों को तिब्बती भाषा, धर्म और संस्कृति से अलग कर चीनी विचारधारा में ढाला जा रहा है। यह प्रक्रिया तिब्बत की सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की एक सुव्यवस्थित साजिश है। मुदगल ने इसे 21वीं सदी का सांस्कृतिक नरसंहार बताते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी हस्तक्षेप की मांग की। भारत तिब्बत सहयोग मंच की 4 प्रमुख मांगें हैं, जिनमें भारत सरकार भारत-तिब्बत सीमा को आधिकारिक रूप से मान्यता दे। संसद में तिब्बत पर विशेष बहस कराई जाए। चीन द्वारा बच्चों पर किए जा रहे सांस्कृतिक अपराधों के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव लाया जाए। दलाई लामा जी को भारत रत्न प्रदान किया जाए, यह केवल सम्मान नहीं, भारत की आध्यात्मिक परंपरा का रक्षण होगा। मुदगल ने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत नैतिक नेतृत्व दिखाए और तिब्बत के साथ न्याय करे। यह सिर्फ सीमाओं का नहीं, सभ्यता और संस्कृति के भविष्य का प्रश्न है।