बिहार : टिमटिमाते चिराग में रोशनी नहीं

– राकेश अचल


अपने जमाने के मौसम विज्ञानी रानीतिज्ञ कहे जाने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. रामविलास पासवान के पुत्र लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान बिहार की राजनीति में अपना चिराग जलाना चाहते हैं। चिराग ने 2025 बिहार विधानसभा चुनाव लडने की पुष्टि कर दी है। बिहार की राजनीति में चिराग की घोषणा से हलचल तो हुई है, लेकिन बिहार की चुनावी आंधी में अपनी लोकप्रियता का चिराग जला पाएंगे ये कहना बहुत कठिन है।
गत रविवार को चिराग पासवान बिहार के आरा पहुंचे। दरअसल चिराग की रणनीति, बिहार की बदलती राजनीतिक परिदृश्य और एनडीए गठबंधन की आंतरिक राजनीति को लेकर पशोपेश बढाने वाली है। अटकलें लगाई जा रही हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कोई ठोस आश्वासन दिया होगा, अन्यथा चिराग पना मुंह नहीं खोलते। आज हर कोई यह सोचने को विवश है कि चिराग पासवान केन्द्र में मिले हुए मंत्री पद को छोडकर बिहार की अनिश्चित राजनीति में आखिर क्यों आना चाहते हैं? हालांकि विधानसभा चुनाव लडने के लिए उन्हें मंत्री पद छोडने की कोई जरूरत वैसे तो नहीं है। पर यदि वाकई में अगर उन्हें बिहार में विधायक बनकर राजनीति करनी है तो उनकी संवैधानिक मजबूरी होगी कि वे अपना मंत्री पद और सांसदी दोनों ही छोड दें।
सब जानते हैं कि भाजपा महाराष्ट्र की तर्ज पर अपनी सहयोगी जेडीयू को चकमा देकर बिहार में अपनी सरकार बनाने की फिराक में है। भाजपा ने महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को आखिर मुख्यमंत्री पद से हटाकर ही दम लिया था। लेकिन सवाल ये है कि क्या बीजेपी ऐसा चाहेगी? और ये भी महत्वपूर्ण है कि बदले में चिराग पासवान से बीजेपी की क्या अपेक्षा होगी? बीजेपी के लिए गठबंधन सहयोगी क्या मायने रखते हैं, थोडा पीछे जाकर ट्रैक रिकार्ड देखा जा सकता है। चिराग पासवान खुद भी पांच साल पुराने भुक्तभोगी हैं।
देखा जाए तो वो भी कुर्बानी जैसी ही रही है। एक दौर था जब वो उद्धव ठाकरे और शरद पवार की ही तरह पार्टी से भी हाथ धो बैठे थे, दिल्ली के सरकारी बंगले से भी बेदखल होना पडा था और काफी इंतजार के बाद धीरे-धीरे चीजें मिल पाईं। जब नीतीश कुमार को बर्बाद करने के लिए इतना झेलना पडा, तब तो नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी बनने के लिए तो और भी बडी कुर्बानी देनी पडेगी और बडी कुर्बानी तभी मानी जाएगी जब चिराग पासवान अपनी पार्टी दान में दे दें, लेकिन किसी और को नहीं, सिर्फ बीजेपी को। मतलब बीजेपी में ही विलय कर लें। ऐसे प्रयासों की चर्चा जेडीयू को लेकर भी रही है और वो भी दोनों तरफ से। लेकिन क्या चिराग पासवान भी तैयार होंगे?
ये तो पूरी तरह साफ है कि यदि भाजपा ने चिराग पासवान को मोहरा बनाया तो राजद के तेजस्वी यादव की राजनीति बुरी तरह प्रभावित होगी। तेजस्वी या तो भाजपा के साथ ही चिराग को रास्ते से हटाएं, अन्यथा उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनने के लिए लंबा इंतजार और कडा संघर्ष भी करना होगा। तेजस्वी यादव के लिए ये चुनाव ऐसा मौका है, जब नीतीश कुमार की उम्र और राजनीति दोनों ही ढलान पर है। जाति जनगणना भी होने जा रही है। बीजेपी की तरफ से कोई मजबूत दावेदार भी सामने नहीं आया है और सर्वे में मुख्यमंत्री पद के सबसे पसंदीदा चेहरा बन चुके हैं। ऐसे माहौल में चिराग पासवान को नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी बना दिया जाता है, तो तेजस्वी यादव के लिए नए सिरे से शुरुआत करनी होगी।
चिराग पासवान राजद के तेजस्वी के हम उम्र हैं। लेकिन उनका रास्ता इतना निरापद भी नहीं है। यदि भाजपा चिराग की रोशनी में सत्ता सिंहासन हासिल करने की कोशिश करती है तो जीतनराम माझी भी चुप बैठने वाले नहीं हैं। वे भी मुमकिन है कि एन वक्त पर भाजपा का साथ छोडकर राजद के साथ खडे हो जाएं। माझी यदि भाजपा को मझधार में छोडकर जाते हैं तो भाजपा की मुश्किल और बढ सकती है। सवाल ये है कि क्या वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी सब कुछ मौन होकर देखते रहेंगे?
सब जानते हैं कि नीतीश के पेट में दाढी है। उन्हे एकनाथ शिंदे की तरह मूषक बनाना आसान नहीं है। वे भाजपा द्वारा बिछाए गए जाल को कुतर कर भाग भी सकते हैं। नीतीश की बैशाखी के सहारे केन्द्र में टिकी सरकार को अस्थिर नहीं करना भाजपा की जरूरत भी है और मजबूरी भी। भाजपा का सिंदूर खेला कुछ भी दांव पर लगा सकता है, क्योंकि भाजपा ढाई दशक से बिहार की सत्ता हासिल करने का सपना देख रही है।