सुलगते मणिपुर में सत्ता हथियाने की जुगाड

– राकेश अचल


देश की राजनीति को सिंदूर से रंगने के अभियान के साथ ही भाजपा दो साल से जल रहे मणिपुर की सत्ता दोबारा हथियाने की जुगाड बैठाने में लग गई है। मणिपुर में राष्ट्रपति शासन 13 फरवरी 2025 से लागू, जो अभी भी है।
देशव्यापी आलोचना के बाद केन्द्र ने मन मारकर मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया था। राष्ट्रपति शासन 13अगस्त तक है। इसके बाद या तो राष्ट्रपति शासन की अवधि दोबारा बढाई जाए या फिर यहां नई सरकार बनाई जाए। केन्द्र को यहां भाजपा को दोबारा सत्तारूढ करना ज्यादा बेहतर विकल्प लग रहा है और इसीलिए मणिपुर में बीजेपी ने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है।
देश अभी सिंदूर खेला में उलझा है। किसी को मणिपुर की सुध भी नहीं है। ऐसे में मणिपुर की सत्ता दोबाराहासिल करना भाजपा के लिए आसान काम है। भाजपा नेता थोकचोम राधेश्याम सिंह ने बीते बुधवार को राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुलाकात के बाद दावा किया है कि सूबे में नई सरकार बनाने के लिए 44 विधायक तैयार हैं। उन्होंने नौ अन्य विधायकों के साथ राजभवन में राज्यपाल से मुलाकात की। राधेश्याम सिंह ने कहा, ‘लोगों की इच्छा के मुताबिक 44 विधायक सरकार बनाने के लिए तैयार हैं। हमने राज्यपाल को यह बात बता दी है। हमने इस मुद्दे के लिए क्या समाधान हो सकते हैं, इस पर भी चर्चा की।’
सिंह का दावा है कि राज्यपाल ने हमारी बात पर गौर किया और लोगों के सर्वोत्तम हित में कार्रवाई शुरू करेंगे। यह पूछे जाने पर कि क्या वे सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे, उन्होंने कहा कि भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व इस बारे में फैसला लेगा। भाजपा का तर्क है कि विधानसभा अध्यक्ष सत्यव्रत ने भी 44 विधायकों से व्यक्तिगत और संयुक्त रूप से मुलाकात की है। कोई भी ऐसा नहीं है, जो नई सरकार के गठन का विरोध करता हो। लोगों को बहुत ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। पिछले कार्यकाल में कोविड के कारण दो साल बर्बाद हो गए थे और इस कार्यकाल में, संघर्ष की वजह से दो और साल बर्बाद हो गए हैं।
बता दें कि मई 2023 में मैतेई और कुकी-जोस के बीच जातीय संघर्ष से निपटने के लिए उनकी सरकार की आलोचनाओं के बीच, बीजेपी नेता एन बीरेन सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद फरवरी से मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू है, मणिपुर भाजपा सरकार के 11 साल के कार्यकाल की सबसे बड़ी नाकामी और राजनीति का सबसे घातक नासूर है। देश के जिद्दी प्रधानमंत्री दो साल तक जलते मणिपुर की सुध लेने की फुर्सत नहीं निकाल पाए। केन्द्र ने मणिपुर को बचाने के लिए सेना और अर्ध सैनिक बलों का बेजा इस्तेमाल भी किया, लेकिन बाद में हार मानकर भाजपा की राज्य सरकार को बर्खास्त कर दिया। मणिपुर की आग ने भाजपा के चेहरे पर ही कालिख नहीं पोती, बल्कि विदेशों में भी भारत की बदनामी कराई। मणिपुर में धर्म विशेष के सैकडों पूजाघर जला दिए गए थे।
आपको बता दूं कि मणिपुर में मई 2023 से शुरू हुई जातीय हिंसा में विभिन्न स्त्रोतों के अनुसार अब तक 250 से 270 लोग मारे जा चुके हैं। जबकि नवंबर 2024 तक सरकारी आंकडों में 258 मृतकों की पुष्टि की गई है। मई 2023 में शुरुआती हिंसा में 54 से 60 लोगों की मौत की पुष्टि की गई थी, जो बाद में बढ़ती गई। हिंसा में 1,500 से अधिक लोग घायल हुए हैं। हिंसा का मुख्य कारण मैतेई और कुकी समुदायों के बीच अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे, भूमि अधिकार और सांस्कृतिक पहचान को लेकर सनातन विवाद है।
अब देखना ये है कि भाजपा अपने अभियान में कब तक कामयाब होती है। भाजपा की कोशिश है कि 9 जून से पहले मणिपुर में भाजपा सत्तारूढ हो जाए, ताकि मणिपुर में भी भाजपा मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ धूमधाम से मना सके। विपक्ष को फिलहाल मणिपुर की कोई सुध नहीं है।