हिंसा और आतंक से तो नहीं चलेगा देश

– राकेश अचल


हनुमान जयंती पर जिस तरह से बंगाल में मुर्शिदाबाद जला और उत्तर प्रदेश में आगरा कांपता रहा, उसे देखकर तो लगता है कि इस देश में कानून और व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो चुकी है। हमारी सरकारें या तो हिंसा और आतंक का मौन समर्थन कर रही हैं या उनमें इतनी कूबत नहीं रही कि वो हिंसा करने वालों और तनाव फैलाने वालों को काबू कर सकें।
सबसे पहले बंगाल की बात करते हैं, क्योंकि यदि पहले उत्तर प्रदेश की बात करेंगे तो लोगों के पेट में दर्द शुरू हो जाएगा। बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के खिलाफ जो हिंसा शुरू हुई थी वो अब मुर्शिदाबाद से बाहर निकल चुकी है। वक्फ कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल के कई जिलों में हिंसक प्रदर्शन किए गए। मुर्शिदाबाद, हुगली, 24 परगना और मालदा जिलों में पुलिस की गाडिय़ों में आग लगा दी गई। ट्रेन और सडक़ें ब्लॉक कर पत्थरबाजी-आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया गया। पर गनीमत ये है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ने इस अराजकता का संज्ञान लिया और कहा कि ‘हम इस कानून के पक्ष में नहीं हैं। हम पहले ही कह चुके हैं कि पश्चिम बंगाल में वक्फ कानून लागू नहीं होगा तो दंगा किस बात का?’ ममता ने दंगाइयों को सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि हम दंगा भडक़ाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे।
भाजपा को अधिकार है कि वो इन दंगों को लेकर कुछ भी कहे, किन्तु हम ये नहीं कहेंगे कि ये दंगे सत्ता पोषित नहीं है, क्योंकि ममता ने इन दंगों के बाद सूबे की जनता से अपील करते हुए कहा, ‘सभी धर्मों के लोगों से मेरी विनम्र अपील है कि कृपया शांत रहें, संयमित रहें। धर्म के नाम पर कोई भी गलत हरकत न करें। हर इंसान की जान कीमती है, राजनीति करने के लिए दंगे न भडक़ाएं। जो लोग दंगे भडक़ा रहे हैं, वे समाज को नुकसान पहुंचा रहे हैं’। ममता ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ राजनीतिक दल सियासी फायदे के लिए धर्म का दुरुपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं उनके बहकावे में न आएं।
बंगाल में जो हुआ या जो हो रहा है वो कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, किन्तु उत्तर प्रदेश के आगरा के पास जो हुआ उसे देखकर तो पूरे विश्व में भारत की छवि चौपट हो गई। आगरा में शनिवार को करणी सेना द्वारा आयोजित रक्त स्वाभिमान सम्मेलन के नाम पार जो आतंक वरपा किया गया उसे देखकर रूह कंपनी लगी है। यह सम्मेलन राणा सांगा की जयंती के अवसर पर आगरा के कुबेरपुर मैदान में आयोजित किया गया था, जिसमें बड़ी संख्या में करणी सेना के कार्यकर्ता शामिल हुए। आयोजकों ने पहले ही दावा किया था कि इस कार्यक्रम में तीन लाख से अधिक लोग जुटेंगे। करनी सेना के लोगों ने जिस तरह से हवा में तलवारें लहराईं और प्रशासन मूक दर्शक बना रहा, उससे जाहिर है कि इस सेना को राज्य सरकार का संरक्षण हासिल था, अन्यथा क्या किसी सभ्य समाज में इस तरह की सेनाएं सिर उठा सकती हैं?
समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन के राणा सांगा पर दिए गए बयान से यदि किसी का स्वाभिमान आहत हुआ और अचानक जाग गया तो ठीक है। उसका विरोध किया जाना चाहिए, लेकिन किसी सांसद को कोई फर्जी सेना जान से मरने की धमकी दे तो आश्चर्य जरूर होता है। लगता ही नहीं है कि उत्तर प्रदेश में कानून का राज है। मजे की बात ये है कि बंगाल की हिंसा पर कलकत्ता हाईकोर्ट संज्ञान लेता है, लेकिन आगरा में करणी सेना के आतंक पर कोई अदालत संज्ञान नहीं लेती। यदि देश में इसी तरह से सेनाएं बनती और सडक़ों पर आतंक मचाती रहीं तो वो दिन दूर नहीं है कि लोग सरकारों पर भरोसा करना बंद कर दें। क्या उत्तर प्रदेश में करणी सेना के एक भी कार्यकर्ता के खिलाफ सरेआम हथियारों का प्रदर्शन करने का एक पिद्दी सा मामला भी दर्ज किया गया?
मैं हमेशा कहता हूं कि हिंसा किसी भी मसले का हल नहीं है। मैंने कल भी मुसलमानों को हिदायत दी थी कि वे यदि किसी कानून से खफा हैं तो गांधीवादी तरीके से अपना विरोध दर्ज कराएं। यही मश्विरा मैं करणी सेना को देना चाहता हूं कि वे किसी को डरा-धमका कर अपनी ऊर्जा खर्च न करें। गांधीवादी तरीका अपनाएं, क्योंकि ये राणा सांगा का युग नहीं है, ये गांधी का युग है। मुसलमानों को भी ये स्वीकार करना होगा कि वे किसी औरंगजेब की सल्तनत नहीं है। वे भारत जैसे महान धर्मनिरपेक्ष और संप्रभु देश के नागरिक हैं। मुसलमानों और करणी सेना के आंदोलन उनका अपना ही नहीं बल्कि पूरे देश का नुक्सान कर रहे हैं।
मजे की तो नहीं किन्तु हैरानी की बात ये है कि हमारा प्रशासन और पुलिस कानून का इस्तेमाल करना ही भूल गई है। हनुमान जयंती पर हजारों वाट के डीजे से दिल ही नहीं घरों की दीवारें कंपा रहे थे, लेकिन कहीं किसी के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ, जबकि हमारे पास ध्वनि प्रदूषण फैलाने के खिलाफ बाकायदा कानून है। करणी सेना ने सार्वजनिक रूप से बंदूकें और तलवारें लहराईं, लेकिन कहीं कोई मामला दर्ज नहीं है, जबकि हमारे कानून में इस तरह का प्रदर्शन अपराध है। ये समझना बेहद कठिन है कि हमारी नौकरशाही इन सब अपराधों की अनदेखी जान-बूझकर कर रही है या उसे ऐसा करने के लिए निर्देशित किया गया है। ममता बनर्जी की तरह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने करणी सेना के उत्पात पर एक शब्द नहीं कहा। जाहिर है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करणी सेना को संरक्षण देकर समाजवादी पार्टी को सुमन के बहाने सबक सीखना चाहते हैं। इस लिए सावधान रहने की जरूरत है। जो लोग इन घटनाओं पर शतुरमुर्ग बने हुए हैं, वे बाद में पछताएंगे। वे इतिहास में अमर होने वाले नहीं हैं।