– राकेश अचल
ज्योतिषियों के परामर्श पर आज तुला राशि के जातकों को वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए। इसलिए मैं आज सीधे-सीधे सियासत पर कोई बात नहीं कर रहा। मैं आज बात कर रहा हूं फिल्म सिकंदर की। ये फिल्म छावा की तरह किसी एजेंडे के तहत नहीं बनी और इस फिल्म का नायक इतिहास पुरुष नहीं बल्कि हमारे-आपके बीच का एक युवक है, लेकिन उसका पीछ भी सियासत नहीं छोड रही।
सिकंदर का नायक वही सलमान खान है जो लॉरेंस विश्नोई के साथ ही देश के नामचीन्ह हिन्दू वादियों के निशाने पर रहता है। सलमान खान चाहे बजरंगी भाई बनाएं या सिकंदर उनके अंदर का अभिनेता दर्शकों को हिला देता है। एक अभिनेता जैसी ताकत हमारे देश के किसी भी राजनेता के पास नहीं है और है तो वो जनता से ज्यादा से ज्यादा तालियां बजवा सकता है, फूल बरसवा सकता है। नेता और अभिनेता में यही मूलभूत अंतर है। एक किरदार में डूब कर उसे असली जैसा बना देता है और दूसरा खुद किरदार बनने की कोशिश करता है, लेकिन कामयाब नहीं हो पाता। छावा फिल्म का छावा विक्की कौशल छावा नहीं था, लेकिन उसने छावा के किरदार को जिंदा कर दिया। अक्षय खन्ना औरंगजेब नहीं हैं, किन्तु उन्होंने औरंगजेब को जिंदा कर दिया। हमारे नेताओं ने भी औरंगजेब को कब्र से बाहर निकाला लेकिन अपने फायदे के लिए, जनता के मनोरंजन के लिए नहीं।
फिल्म सिकंदर में राजकोट के राजा संजय के किरदार में सलमान खान नजर आए। फिल्म की शुरुआत में ही दिखाया गया कि उन्होंने फ्लाइट में एक राजनेता के बेटे अर्जुन (प्रतीक बब्बर) को पीट दिया। दरअसल, वह वहां पर मौजूद एक महिला का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा था। इसके बाद मिनिस्टर सलमान खान के किरदार से बदला लेने की हर संभव कोशिश करता है। पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए घर जाती है, लेकिन राजा होने के कारण सलमान के किरदारों को लोगों का बेशुमार प्यार मिलता है और वह उसकी रक्षा करने के लिए बडी संख्या में पहुंच जाते हैं। खैर, मिनिस्टर के गुर्गे सिकंदर के पीछे पड जाते हैं और इस लडाई के कारण उन्हें अपनी पत्नी सांईश्री (रश्मिका मंदाना) को खोना पडता है।
फिल्म सिकंदर ईद के दिन रिलीज हुई थी। इसी दिन देश के 32 लाख गरीब मुसलमानों को सौगात-ए-मोदी भी दी गई, लेकिन ये सौगात-ए-मोदी सौगात सिकंदर के शोर में कहीं दबकर रह गई। बॉलीवुड सुपर स्टार सलमान खान की फिल्म ‘सिकंदर’ प्रसिद्ध निर्देशक एआर मुरुगदॉस के निर्देशन में बनी है। मुरुगदॉस इससे पहले आमिर खान की ब्लॉक बस्टर फिल्म ‘गजनी’ बना चुके हैं, जो बॉलीवुड की पहली 100 करोड क्लब में शामिल होने वाली फिल्मों में से एक थी। ‘सिकंदर’ में सलमान खान के साथ पहली बार रश्मिका मंदाना नजर आ रही हैं। दोनों की जोडी को लेकर दर्शकों में खासा उत्साह है। फिल्म में प्रतीक बब्बर, काजल अग्रवाल, सत्यराज और शरमन जोशी जैसे शानदार कलाकार सहायक भूमिकाओं में नजर आ रहे हैं। कहानी एक ऐसे शख्स की है, जो भ्रष्ट सिस्टम से त्रस्त होकर इसके खिलाफ आवाज उठाने का फैसला करता है। फिल्म में जबरदस्त एक्शन, इमोशन और मनोरंजन का तडका देखने को मिलेगा।
अब भ्रस्ट सिस्टम के खिलाफ आम जनता नहीं लडती, फिल्मों का नायक लडता है, जबकि ये लडाई आम जनता की है। जनता अपनी ओर से फिल्मी नायकों को लडते देख ही खुश हो लेती है। आम जनता भूल गई है कि स्वर्ग खुद के मरने पर ही मिलता है। फिल्मी परदे की लडाई से भ्रस्ट सिस्टम का, जहरीली सियासत का मुकाबला नहीं किया जा सकता। सिकंदर फिल्म भी सिस्टम के खिलाफ लडाई को उस तरह तेज नहीं कर पाएगी जिस तरह की छावा ने नफरत फैलाने में कामयाब हुई। कुछ फिल्में राजनीति का मकसद पूरा करने में कामयाब हो जाती हैं, कुछ नहीं। सिकंदर एक मनोरंजन प्रधान फिल्म है इसलिए उसे कामयाबी दिलाने के लिए किसी खादीधारी प्रमोटर की जरूरत नहीं है। सिकंदर की टीम के साथ कोई फकीर फोटो खिंचवाए या न खिंचवाए, ये फिल्म चल पडी है और करोडों कमाकर ही दम लेगी। फिल्म ‘सिकंदर’ ने पहले दिन 30.06 करोड रुपए की कमाई की है।
सिकंदर की कामयाबी का संकेत साफ है कि फिल्में केवल मनोरंजन और शुभ के सन्देश के साथ बनाई जाना चाहिए। फिल्में राजनीतिक एजेंडे के तहत बनेंगी तो इस माध्यम का दुरूपयोग समझा जाएगा। वैसे सिकंदर नाम ही कामयाबी का है। असली सिकंदर ने 32 साल की उम्र में दुनिया का सबसे बडा साम्राज्य स्थापित कर लिया था। आज दुनिया में कोई सिकंदर जैसा नहीं है। लोग विश्वगुरु बनने के फेर में बूढ़े हो गए लेकिन अपना खुद का सम्राज्य नहीं सम्हाल पा रहे।
बहरहाल मैं सिकंदर की कामयाबी के लिए सलमान खान और सिकंदर फिल्म की पूरी टीम को मुबारकबाद देता हूं। सलमान खान की फिल्में अक्सर ईद के दिन ही तोहफे के रूप में आती हैं और कामयब भी होती हैं। सनातनियों को भी चाहिए कि वे भी अपनी फिल्में होली, दीपावली या रामनवमी को रिलीज किया करें। जैसे राजनीति का धर्म से गहरा नाता बना दिया गया है, वैसा ही फिल्मों का भी धर्म से सीधा नाता है। कुछ लोग मन्दिरों पर धनवर्षा करते हैं तो कुछ लोग सिनेमाघरों पर, जिन्हें अब मल्टीप्लेक्स कहा जाता है। मल्टीप्लेक्स मनी को मल्टीप्लाई करता है, ठीक वैसे ही जैसे कोई भी मंदिर मनी को मल्टीप्लाई करता है। मनी को मल्टीप्लाई करने की ताकत किसी मस्जिद में नहीं है। ताजमहल इसका अपवाद है।