स्मृति शेष : भारतीय मनीषा से अभिभूत थे मनीष शंकर

– राकेश अचल


भारतीय पुलिस सेवा के बहुचर्चित अधिकारी मनीष शांकर शर्मा के निधन की खबर आज सुबह जब साथी प्रवीण खारीवाल ने दी तो यकायक भरोसा नहीं हुआ, लेकिन जब अन्यान्य सूत्रों से इस खबर की पुष्टि हो गई तो दिल बैठ गया। मनीष को इतनी जल्दी जाना नहीं चाहिए था। वे पुलिस में रहते हुए भी भारतीय मनीषा के अघोषित प्रतिनिधि थे।
कोई तीन दशक पुरानी बात है। मनीष ग्वालियर में हमारे पडौस में रहने आए थे। उन्हें ग्वालियर के थाटीपुर में हमारे घर के पीछे ही एक एफ टाइप बंगला आवंटित हुआ था। मिश्र डबरा में एसडीओ रह चुके थे और पदोन्नत होकर एडिशनल एसपी के रूप में ग्वालियर आए थे। अविवाहित थे, दिलखुश थे और मुझे सदैव भाई साहब कहकर संबोधित किया करते थे। मैं अक्सर मनीष से कहा करता था कि आप गलत नौकरी में आ गए हैं। आपका व्यक्तित्व पुलिस के चाल, चरित्र और चेहरे से मेल नहीं खाता। वे हंसकर टाल जाते और कभी-कभी कहते पुलिस के इसी चेहरे को तो बदलना है भाई साहब!
मनीष के पिता केएस शर्मा मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव रहें। लेकिन उन्हें इसका कोई दम्भ न था। वे बेहद सहज और मितभाषी थे। मनीष के विवाह में मै ग्वालियर से भोपाल गया था। तत्कालीन पुलिस महानिदेशक अयोध्यानाथ पाठक और मनीष के पिताजी की जोडी का जलवा था। पाठक जी मेरे पुराने मित्र थे। उनके साथ ही हम पुलिस के मेहमान थे। लौटते में हमने मनीष की शादी के उपलक्ष्य में चांदी का एक सिक्का मिला था जो आज भी हमारे संग्रह में है और मनीष की हमेशा याद दिलाता रहता है। आज भी जब मनीष के जाने की दुखद खबर पढी तो वो सिक्का हमारे हाथ में था।
मनीष में असाधारण प्रतिभा थी। मनीष शंकर शर्मा को एक उम्दा रणनीतिकार माना जाता था। अपने तीन दशक की नौकरी में वे प्रदेश में कम विदेश में ज्यादा सक्रिय रहे। मनीष ने दुनिया के चार महाद्वीपों में सेवाएं दीं। वे वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध सक्रिय बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी मनीष शंकर शर्मा को अनेक राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। मनीष ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल सिक्युरिटी, काउंटर टेरेरिज्म एंड पब्लिक पॉलिसी में मास्टर्स डिग्री हासिल की थी। मुझसे उम्र में कोई आठ साल छोटे मनीष शंकर शर्मा ने इंदौर के डेली कॉलेज से स्कूलिंग और भोपाल स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज से ग्रेजुएशन किया था। मनीष ने बिडला इंस्टीट्यूट, पिलानी से मार्केटिंग में एमबीए भी किया। 1992 बैच में उनका आईपीएस में चयन हुआ।
मनीष वर्ष 1997 में करीब एक साल के लिए उन्हें संयुक्त राष्ट्र मिशन के तहत बोस्निया और हर्जेगोविना में प्रतिनियुक्ति पर चले गए। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मिशन से लौटने के पश्चात वे रायसेन, सतना, छिंदवाडा और खण्डवा आदि जिलों में एसपी रहे। इस दौरान मनीष ने अपनी जवाबदेह कार्यशैली, दूरदर्शिता, क्राइम कंट्रोल, लॉ एण्ड ऑर्डर में सुधार और व्यवहार कुशलता से अलग पहचान कायम की, खासकर कमजोर तबके को न्याय दिलाने की इनकी प्रतिबद्धता जग-जाहिर थी। फरवरी 2005 में मनीष शंकर शर्मा केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली आ गए, जहां मिनिस्ट्री ऑफ सिविल एविएशन के अंतर्गत उन्हें करीब तीन वर्षों के लिए एयरपोर्ट अथॉरिटी का सिक्योरिटी डायरेक्टर बनाया गया। यहां देशभर के 114 एयरपोर्ट की सुरक्षा की जिम्मेदारी इनके ऊपर थी। अगस्त 2008 में भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने उन्हें टी बोर्ड इंडिया के लिए वेस्ट एशिया एंड नॉर्थ अफ्रीका का डायरेक्टर बनाया गया। अपने करीब तीन साल की पोस्टिंग के दौरान इन्होंने टी बोर्ड के वैश्विक व्यापार को बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सितंबर 2011 में मनीष मप्र कैडर लौट आए।
मुझे याद आता है कि मनीष ने आईजी भोपाल के तौर पर पुलिस सर्विस रिफॉर्म पर जोर दिया और पुलिस सर्विस में समय से प्रमोशन, पुलिसकर्मियों की समस्या के समाधान और पुलिसकर्मियों को सुविधा पर विशेष ध्यान दिया। जिससे वे जनता के साथ पुलिसकर्मियों में भी लोकप्रिय हुए। मई 2017 में उनकी पदोन्नति एडीजीपी के पद कर हुई। मनीष शंकर शर्मा ने आईएसआईएस की स्थापना, उसके मकसद, कार्यप्रणाली, वित्तीय संसाधनों पर वृहद अध्ययन किया, साथ ही इसपर काबू पाने के लिए एक वैश्विक रणनीति का तरीका भी बनाया। मनीष एक बेहतरीन वक्ता और लेखक भी हैं। विश्व भर में आतंकवाद प्रबंधन आदि विषयों पर उन्होंने उम्द संबोधन किया है। वैश्विक आतंकवाद की प्रसिद्ध पुस्तक ‘ग्लोबल टेररिज्म-चैलेंजेस एंड पॉलिसी ऑप्शंस’ में योगदान देने वाले वे एकमात्र भारतीय लेखक हैं।
मनीष शंकर शर्मा को कई अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय सम्मान, पदक और पुरस्कार मिले। वे यूनाइटेड नेशंस पीस मेडल, नेशनल लॉ डे अवार्ड, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस अवार्ड, भारत के दस चुनिंदा आईपीएस अधिकारियों को मिलने वाला रोल ऑफ ऑनर और पद्मश्री ‘आरएन जुत्शी मेडल’ से सम्मानित हुए । वर्ष 2015 में सैन डिएगो की सिटी काउंसिल ने मनीष शंकर शर्मा का विशेष रूप से अभिनंदन कर और 20 जुलाई का दिन शहर में ‘मनीष शंकर शर्मा डे’ के तौर पर मनाया गया, उन दिनों मैं खुद अमेरिका में था, मैंने अटलांटा से उन्हें बधाई दी थी। इन्हें अमेरिकी संसद के ‘हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव’ ने भी सम्मानित किया है।
इतनी उपलब्धियों के बावजूद मनीष का मन स्थिर नहीं हो पाया। पिछले कुछ वर्षों से मनीष कुछ उखडे-उखडे से नजर आने लगे थे। पता नहीं कौना था जो उन्हें उदासीनता की और धकेल रहा था। हाल ही में मनीष को एडीजे रेल के पद पर पदस्थ किया गया था। एक लम्बे समय बाअद उन्हें कोई जिम्मेदारी सौंपी गई थी। एडीजी रेल बनने के बाद भी उनके जीवन की रेल बेपटरी ही बनी रही। वे मानसिक अवसाद से बाहर नहीं आए। उनका खूब इलाज भी कराया गया, लेकिन बीती रात उन्होंने इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया। मेरे प्रिय पुलिस अधिकारियों में से मनीष दूसरे ऐसे पुलिस अधिकारी रहे हैं जो असमय चले गए। इससे पहले मेरे एक और पडौसी मोहम्मद अफजल भी इसी तरह असाध्य बीमारी की वजह से कालकवलित हो गए थे। मनीष के परिजनों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदनाएं और मनीष के प्रति विनम्र श्रृद्धांजलि।