न सुनाई देने वाला हाहाकार भी सुनिए

– राकेश अचल


आहें, चीखें और सिसकियां आदमी के दु:ख की अभिव्यक्ति के वे रूप हैं जिसे सभी वाकिफ हैं, लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है जब ये आहें, चीखें, सिसकियां हमें सुनाई नहीं देतीं, हालांकि यदि हम इन्हें सुन सकें तो इनका स्वरूप हृदय विदारक भी होता है तो कभी-कभी कारुणिक भी और कभी-कभी जुगुप्सा पैदा करने वाला। इन दिनों दुनिया भर में निवेशकों के बीच कोहराम है। कोई आहें भर रहा है, कोई चीख रहा है और कोई सिसकियां ले रहा है, लेकिन सुनाई किसी को कुछ नहीं दे रहा। सबसे बुरी हालत तो हमारे अपने देश भारत की है। जहां शेयर बाजार औंधे मुंह पडे हुए हैं और कोई किसी को ढांढस बांधने वाला नहीं है।
शेयर बाजार में गिरावट समंदर में उठने वाले ज्वर-भाटे की तरह होती है। कभी-कभी ये सुनामी का रूप ले लेती है और जब सुनामी आती है तो सब कुछ तबाह हो जाता है। दुनिया के शेयर बाजारों में इस समय पिछले 40 दिन से सुनामी आई हुई है। ट्रंप अनुशासन इसके पीछे सबसे बडी वजह है। जानकार बताते हैं कि फरवरी की 28 तारीख को दिन की शुरुआत में ही सेंसेक्स में करीब 1000 अंकों की और निफ्टी में 300 अंकों की भारी गिरावट देखने को मिली। एक झटके में निवेशकों के 7.5 लाख करोड रुपए डूब गए।
बात कोई एक दिन की नहीं है, शेयर बाजार हर दिन डुबकियां ले रहा है। फरवरी 2025 में कुल 20 दिन शेयर बाजार खुला, जिसमें 16 दिन सेंसेक्स नेगेटिव रहा। पिछले 4 महीने में सेंसेक्स में 12 फीसद से ज्यादा गिरावट हुई है। प्रयागराज के कुम्भ में तो मान लीजिए कि 62 करोड लोगों ने ही डुबकी लगाईं, लेकिन शेयर बाजार में तो इसका कोई पुख्ता आंकडा ही नहीं है।
अपने आपको विश्वगुरू बताने वाले लोग भी देश के शेयर बाजार को डूबने से नहीं रोक पाए, लेकिन एक अकेला चीन है जिसके शेयर बाजार इस सुनामी से अप्रभावित दिखाई दे रहे हैं। चीन के ‘शंघाई स्टॉक एक्सचेंज कम्पोजिट इंडेक्स’ में अगस्त 2024 से जनवरी 2025 के बीच 15 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। जबकि हॉन्गकॉन्ग के ‘हैंग सेंग इंडेक्स’ में सिर्फ एक महीने में 16 प्रतिशत का उछाल दिखा है। आपको हक है कि आप मुझसे सवाल करें कि भारतीय बाजार में 28 साल की सबसे बडी गिरावट की क्या वजह है और पडोसी देश चीन का शेयर बाजार क्यों लगातार चढता जा रहा है?
सरकारी नौकरी से सेवानिवृत होने के बाद शेयर बाजार में मगजमारी करने वाले हमारे एक मित्र हैं डॉ रंजीत भाले। वे बताते हैं कि फरवरी के आखिरी दिन निफ्टी ने गिरावट के मामले में 28 साल पुराना रिकार्ड तोड दिया है। साल 1996 के बाद से शेयर बाजार में कभी भी लगातार पांच महीने तक गिरावट नहीं देखी गई है। 1996 के बाद ये पहला मौका है जब शेयर बाजार में लगातार पांचवे महीने गिरावट देखने को मिली है।
पीएचडी उपाधि धारक डॉ. भाले भी इस सुनामी में दूसरे निवेशकों की तरह अपना बहुत कुछ गंवा बैठे हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने निफ्टी के इतिहास में ऐसी गिरावट 1990 के बाद केवल दो बार पांच महीने या उससे ज्यादा समय तक गिरावट दर्ज होते देखी थी। अपनी याददाश्त पर जोर डालते हुए डॉ. भाले बताते हैं कि सितंबर 1994 से अप्रैल 1995 तक 8 महीनों में इंडेक्स 31.4 फीसदी गिर गया था। आखिरी बार पांच महीने की गिरावट 1996 में देखी गई थी। उस समय जुलाई से नवंबर तक निफ्टी में 26 फीसदी की गिरावट आई थी। एक तरह से आर्तनाद कर रहे दुनियाभर के निवेशक इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को कोस रहे हैं, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद लगातार टैरिफ लगाने की धमकी दे रहे हैं। ऐसे में पूरी दुनिया में अनिश्चितता का माहौल है। भय और आतंक के इस माहौल में निवेशक को जहां अपना निवेश सुरक्षित नजर आता है, वो वहां जाते हैं। फिलहाल निवेशक को डॉलर और सोने में ज्यादा सुरक्षा नजर आ रही है। यही वजह है कि भारतीय बाजार से देशी और विदेशी निवेशक अपना पैसा निकाल रहे हैं, जिससे बाजार गिर रहा है। लेकिन हमारे नेता, हमारी सरकार मौन साध कर बैठी है। उसे बाजार से ज्यादा अपनी चिंता है।
किसी से भी ये बात छिपी नहीं है कि भारतीय बाजार से पैसा निकाल कर ज्यादातर निवेशक अमेरिका और चीन के बाजारों में लगा रहे हैं। चीनी बाजार से ज्यादा रिटर्न की उम्मीद है। दूसरी ओर अमेरिकी सरकार बॉन्ड के जरिए निवेशक को बेहतर रिटर्न का भरोसा दे रही है। ऐसे में जब तक अमेरिकी बॉन्ड बाजार आकर्षक बना रहेगा, विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों में बिकवाली यानी शेयर बेचना जारी रख सकते हैं।
मैंने शेयर बाजार में बहुत पहले कुछ पैसे लगाए थे, लेकिन फिर मैं इस मायाजाल से बाहर निकल आया। मेरी आपको यही सलाह है कि यदि आप शेयर बाजार का हिस्सा हैं तो अभी चुप्पी साधकर बैठे रहें। घबडाहट में कोई फैसला न करें। बाजार में ठहराव आने दें, हालांकि इसके लिए आपको लाम्बा इंतजार भी करना पड सकता है। लेकिन इंतजार ही आपको इस सुनामी से उबार सकता है। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या वित्त मंत्री निर्मला बाई, वे आपकी कोई मदद नहीं कर सकते। उन्हें खुद अपनी कुर्सी की पडी है।