दुनिया के हर गम से क्यों दूर है संगम?

– राकेश अचल


देश में 144 साल बाद प्रयागराज में हो रहे महाकुम्भ में मौनी अमावस्या पर हुई भगदड में मारे गए लोगों का संगम को कोई गम नहीं है। संगम से इधर लाशें उठीं और उधर नंग-धडंग साधू, सन्यासी और शंकराचार्य पवित्र शाही स्नान और अमृत स्नान के लिए संगम में कूद पडे, किसी के चेहरे पर कोई शोक नहीं, कोई करुणा नहीं, कोई वेदना नहीं। सब स्नान के बाद सुखानुभूति करते नजर आ रहे थे। न सरकार विचलित दिखाई दी और न आम जनता। जैसे संगम में कुछ हुआ ही नहीं। जितना बेमिसाल ये महाकुम्भ है उतनी ही बेमिसाल है हमारी हृदय हीनता।
महाकुम्भ में सरकार कहती है कि कुल 30 लोग मारे गए, लेकिन लोगों को इस आंकडे पर यकीन नहीं है। सरकार इन मौतों के लिए खुद को जिम्मेदार मानती नहीं है, उसने जिम्मेदार लोगों का पता लगाने के लिए हादसे की न्यायिक जांच की घोषणा कर दी है। मरने वालों के परिजनों को 25-25 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने की घोषणा भी कर दी है, इसलिए कहीं कोई खरखसा नहीं। न मीडिया को ये हादसा कोई हादसा लगा और न धर्म के ठेकदारों को। न कोई निलंबित हुआ और न किसी को हटाया गया। यहां जो भी मौजूद है किसी ने इस हादसे के बाद घर वापसी नहीं की, खासतौर पार संतों, महंतों और शंकराचार्यों ने। वे तो पूरे कुम्भ में नहा-धोकर, अमृतपान कर ही अपने डेरों में लौटेंगे। जिन्हें मरना था वे मर गए, उनके लिए क्या रोना-धोना?
कुम्भ में कोई पहली बार तो भगदड हुई नहीं है, पहली बार तो लोग मरे नहीं हैं। पहले भी भगदड हुई। पहले भी लोग मरे और कोई दस-बीस नहीं 800 लोग तक मरे। तब भी न तत्कालीन मुख्यमंत्री संपूर्णान्द ने इस्तीफा दिया, न वीरभद्र प्रताप सिंह ने, और तो और न अखिलेश यादव ने। फिर कोई मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस्तीफे की मांग किस मुंह से कर सकता है? करना भी नहीं चाहिए? क्योंकि योगी जी ने थोडे ही किसी से कहा था कि भगदड करो और कुचल मरो! लोग अपनी मौत मरे हैं। पुण्यभूमि में मरे हैं। उन्हें तो कृतज्ञ होना चाहिए योगी जी का, कि उन्होंने लोगों को कुम्भ में मरने का अवसर दिया। मरने वालों को सीधे मोक्ष मिलेगा। इसी मोक्ष के लिए तो नंग-धडंग नागाओं से लेकर सती-सावित्री ममता कुलकर्णी तक जप-तप और कल्पवास कर रहे हैं।
एक बात अच्छी है कि हम लोग इतने धर्मभीरु हैं कि मरने वालों केलिए टसुए नहीं बहाते। हम मृतकों के परिजनों के लिए टसुए बहाने वाले परिजनों को रूमाल खरीदने के लिए 25-25 लाख रुपए की सहायता दे देते हैं। ये हमारी सरकार की दरियादिली नहीं तो और क्या है? उत्तर प्रदेश की उत्तरदायी सरकार ने मृतकों के शव उनके गृह गांव तक भेजने के लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था कर सचमुच उपकार किया है, अन्यथा मृतकों के परिजन क्या करते? उन्हें अपने परिजनों के शव गंगा के हवाले ही करना पडते। मरने वाले श्रृद्धालुओं के प्रति ये सदभाव प्रणम्य है। उत्तर प्रदेश के ही मुलायम सिंह यादव जब केन्द्र में रक्षा मंत्री थे तब उन्होंने भी सीमा पर शहीद होने वाले जवानों को ससम्मान घर तक भेजने की व्यवस्था की थी। इस महाकुम्भ में मुलायम सिंह की प्रतिमा भी विराजमान है।
महाकुम्भ में हुई भगदड से उत्तर प्रदेश सरकार को कोई सबक नहीं लेना है, ये हादसे तो आगे भी होंगे। हादसे होते ही होने के लिए हैं। हादसे न हों तो फिर इस तरह के आयोजनों का अर्थ ही क्या है। हमारे यहां भगदड में लोग मरते हैं। मक्का-मदीना में प्यास से भी मरते हैं। जिन्हें जैसे मरना है, वो पहले से निर्धारित होता है। इसमें हम-आप या सरकार क्या कर सकती है? बेहतर हो कि अब जहां भी कुम्भ हों वहां की सरकारें अभी से एक सुरक्षित और पुख्ता योजना पर काम शुरू कर दें, ताकि भविष्य में इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति न हो। हादसे रोकने के लिए हमारे पास तमाम तकनीकें भी हैं, लेकिन ये तब नाकाम हो जाती हैं जब सरकारें ही धार्मिक उन्माद पैदा करती हैं। आयोजकों को इस तरह के आयोजनों को ‘मेगा इवेंट’ के रूप में प्रचारित करने से भी बचना चाहिए। बचना चाहिए वीआईपी संस्कृति से। नहीं तो उन्हें ऊपर वाला भी नहीं रोक सकता। हादसों के बाद न्यायिक जांचों की घोषणाओं से जिम्मेदार लोग नहीं मिलने वाले। जब तक जांच रिपोर्ट आएगी तब तक लोग इस हादसे को भूल चुके होंगे, हादसों को भुलाने में चार घण्टे भी तो नहीं लगते, बचेंगे तो आगे भी हादसे होंगे।