अब अजमेर वाले ख्वाजा साहब की बारी

– राकेश अचल


देश की संसद तीन दिन से ठप्प है, लेकिन ये कोई खबर नहीं है। खबर ये है कि देश की 6 लाख मस्जिदों और दरगाहों पर कब्जा हासिल करने के महा अभियान के तहत अब अजमेर वाले ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह हम हिन्दुओं के निशाने पर है। अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में संकट मोचन महादेव मन्दिर होने का दावा करते हुए अजमेर सिविल कोर्ट में लगाई गई याचिका को कोर्ट ने सुनने योग्य माना है। यह याचिका हिन्दू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से याचिका लगाई गई।
आपको पता ही होगा कि राजस्थान के अजमेर में स्थित ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यह दरगाह गुलाबी शहर जयपुर से करीब 135 किलो मीटर दूर, चारों तरफ अरावली की पहाडियों से घिरे अजमेर शहर में स्थित है। अजमेर शरीफ की दरगाह के नाम से यह पूरे देश में प्रसिद्ध है। इस दरगाह से सभी धर्मों के लोगों की आस्था जुडी हुई है। इसे सर्वधर्म सदभाव की अदभुत मिसाल भी माना जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह में हर मजहब के लोग अपना मत्था टेकने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी ख्वाजा के दर पर आता है कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है, यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होती है।
देश के भाग्यविधाता प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी का तो पता नहीं, लेकिन ख्वाजा की मजार पर देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू, भाजपा के दिग्गत नेता और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी, देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा समेत कई नामचीन और मशहूर शख्सियतों ने अपना मत्था टेका है। आप इस फेहरिश्त में मेरा नाम भी बाबस्ता कर सकते हैं। मैं भी दो मर्तबा इस दरगाह पर सपरिवार माथा टेक आया हूं, हालांकि मैं पक्का सनातनी हूं। ख्वाजा के दरबार में अक्सर बडे-बडे राजनेता एवं अभिनेता आते रहते हैं और अपनी अकीदत के फूल पेश करते हैं एवं आस्था की चादर चढ़ाते हैं। आपने अनेक फिल्मों में इस दरगाह को देखा होगा।
तकरीबन 559 साल पुरानी इस दरगाह को लेकर अजमेर के न्यायालय ने वाद को स्वीकार करते हुए दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मामलात व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण धरोहर को नोटिस जारी करने के आदेश जारी करने का फैसला दिया है। वादी विष्णु गुप्ता की ओर से हरदयाल शारदा की ओर से लिखी पुस्तक का हवाला देते हुए वाद प्रस्तुत किया गया था, जिसमें उन्होंने अजमेर की दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा किया है। इस मामले में अगली सुनवाई 20 दिसंबर 2024 को की जाएगी। मुमकिन है कोई शंकराचार्य इस मामले में गवाह बनकर पेश हो जाए।
हम हिन्दुओं की नई पीढ़ी बहुत जागरूक है, इसलिए जो काम उनके पुरखे 500 साल पहले नहीं कर पाए, उसे वे अब अंजाम दे रहे हैं। याचिकाकर्ता का दावा है कि दरगाह की जमीन पर पहले भगवान शिव का मंदिर था। मंदिर में पूजा और जलाभिषेक होता था। याचिका में अजमेर निवासी हरविलास शारदा द्वारा वर्ष 1911 में लिखी पुस्तक का हवाला दिया गया है। पुस्तक में दरगाह के स्थान पर मंदिर का जिक्र है। पुस्तक कहती है कि दरगाह परिसर में मौजूद 75 फीट लंबे बुलंद दरवाजे के निर्माण में मन्दिर के मलबे के अंश तहखाने में गर्भगृह होने का प्रमाण मिल जाएगा।
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की इस दरगाह को मंदिर बताते हुए इससे पहले हिन्दू सेना की तरफ से मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष याचिका पेश की गई थी। हालांकि, न्यायाधीश प्रीतम सिंह ने ये कहकर सुनवाई से इनकार कर दिया था कि यह उनके क्षेत्राधिकार से बाहर है। इसके बाद जिला अदालत में याचिका पेश की गई। मुझे लगता है कि इस तरह की फुटकर याचिकाओं पर सुनवाई के बजाय अब खुद सरकार को याचिकाकर्ता बनकर देश की तमाम मस्जिदों, दरगाहों, ईदगाहों और ताजमहल तक का सर्वे करने के लिए अदालत से दरख्वास्त करना चाहिए, क्योंकि हम हिन्दुओं का पक्का विश्वास है कि हर मस्जिद, दरगाह और ईदगाह के नीचे कोई न कोई मंदिर जरूर है।
अयोध्या की बाबरी मस्जिद को गिराने से शुरू हुआ ये अभियान बीच में थम गया था, लेकिन अब एक के बाद एक शहर में ऐसी याचिकाएं लगाई जा रही हैं। पहले ज्ञानवापी का सर्वे हुआ। फिर संभल में सर्वे हो चुका है और दंगा भी संभल में 4 लोग मारे भी जा चुके हैं। अब मथुरा और अजमेर की बारी है। अजमेर की दरगाह में पडे-पडे ख्वाजा साहब भी शायद उकता गए होंगे। सरकार को चाहिए कि वो देश में मौजूद उन्नत तकनीक का इस्तेमाल कर अजमेर की दरगाह को जमीन से निकाल कर नीलम कर दे। दुनिया का कोई न कोई इस्लामिक देश ख्वाजा साहब की दरगाह को खरीद लेगा और अपने मुल्क में ससम्मान स्थापित कर लेगा।
इस मुद्दे पर एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी भडके हुए हैं, जिसमें उन्होंने सरकार और अदालतों के कानूनी कर्तव्यों पर सवाल उठाए हैं। आज-कल सवाल संसद में हंगामे के कारण उठाए नहीं जा सकते, इसलिए ये सवाल एक्स के पटल पर उठाए जाते हैं। एक्स का पटल संसद से ज्यादा महत्वपूर्ण होता जा रहा है। ओवैसी ने एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, सुल्तान-ए-हिन्द ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भारत के मुसलमानों के सबसे अहम औलिया इकराम में से एक हैं। उनके आस्तान पर सदियों से लोग जा रहे हैं और जाते रहेंगे इंशाअल्लाह। कई राजा, महाराजा, शहंशाह, आए और चले गए, लेकिन ख्वाजा अजमेरी का आस्तान आज भी आबाद है। उन्होंने कहा कि 1991 का इबादतगाह कानून साफ तौर पर यह कहता है कि किसी भी इबादतगाह की मजहबी पहचान को नहीं बदला जा सकता। ओवैसी ने यह भी आरोप लगाया कि हिन्दुत्व तंजीमों का एजेंडा पूरा करने के लिए कानून और संविधान का उल्लंघन किया जा रहा है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस पर चुप है।
अब ओवैसी को कौन समझाये कि हमारे वजीरेआजम हर संवेदनशील मुद्दे पर चुप ही रहते हैं। वे मणिपुर के मामले पर आखिर डेढ साल से चुप ही हैं न? वजीरेआजम केवल तभी बोलते हैं जब उन्हें अपने मन की बात करना होती है। वे तभी बोलते हैं जब उनके घर के बंद कमरे में उनके सामने कैमरा हो। वे संसद में चुने हुए प्रतिनिधियों के सामने नहीं बोलते। उन्हें निर्वाचित सांसद गुंडे, मवाली नजर आते हैं। तकलीफ की बात ये है कि केन्द्र की सरकार ऐसे प्रयासों का संज्ञान ही नहीं ले रही बल्कि उनका साथ दे रही है। सरकार ये मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि इस तरह गडे मुर्दे उखाडने से देश के सदभाव को भारी नुक्सान हो रहा है। यदि सरकार मुस्लिम आस्थाओं का सम्मान कर रही होती तो खुद देश की सबसे बडी अदालत में खडी होकर दरख्वास्त करती कि देश में किसी भी धार्मिक स्थल के सर्वे की किसी याचिका को मजूर न किया जाए। लेकिन मोदी युग में ये होना नामुमकिन है। इस युग में जो होना चाहिए वो ही तो हो रहा है।
जग-जाहिर है कि ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती एक प्रसिद्ध सूफी संत होने के साथ-साथ इस्लामिक विद्धान और दार्शनिक थे। उनकी ख्याति इस्लाम के महान उपदेशक के रूप में भी विश्व भर में फैली हुई थी। उन्होंने अपने महान विचारों और शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया एवं उन्हें भारत में इस्लाम का संस्थापक भी माना जाता था। उन्हें ख्वाजा गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता था। उनकी अदभुत एवं चमत्कारी शक्तियों की वजह से वे मुगल बादशाहों के बीच भी काफी लोकप्रिय हो गए थे। उन्होंने अपने गुरु उस्मान हरूनी से मुस्लिम धर्म की शिक्षा ली एवं इसके बाद उन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई यात्राएं की एवं अपने महान उपदेश दिए। ख्वाजा गरीब नवाज ने पैदल ही हज यात्रा की थी। ऐसा माना जाता है कि करीब 1192 से 1195 के बीच में वे मदीना से भारत यात्रा पर आए थे, वे भारत में मुहम्मद से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे, ख्वाजा साहब भारत आने के बाद शुरुआत में थोडे दिन दिल्ली रुके और फिर लाहौर चले गए एवं अंत में वे मुइज्ज अल-दिन मुहम्मद के साथ अजमेर आए और यहां की वास्तविकता से काफी प्रभावित हुए। इसके बाद उन्होंने अजमेर रहने का ही फैसला लिया।
बहरहाल मेरा मश्विरा है कि यदि आपने ये दरगाह न देखी हो तो फौरन वक्त निकलकर देखा आएं, क्या पता आने वाले दिनों में ये दरगाह रहे भी या न रहे। यहां फिर नए सिरे से कोई मंदिर तामीर कर दिया जाए। यही बात आगरा के ताजमहल के बारे में लागू होती है। किस दिन कोई सिरफिरी भीड ताजमहल को भी नेस्तनाबूद कर सकती है।