शहर में बिक रहे टेसू और झेंझी, बच्चे उत्साह के साथ कर रहे खरीद

भिण्ड, 13 अक्टूबर। भारतीय लोक परंपराओं में एक से बढकर लोकाचार और मान्यताएं हैं, जिसमें दीपावली से पहले टेसू-झेंझी का खेल भी एक है। शारदीय नवरात्र और विजय दशमी के बाद छोटे-छोटे बच्चे टेसू-झेंझी का खेल खेलते हैं। टेसू-झेंझी का विवाह शरद पूर्णिमा को कराया जाता है। टेसू-झेंझी के विवाह का सीजन आते ही शहर के बाजार में टेसू और झेंझी बिकना शुरू हो गए हैं।
बच्चे हाथों में टेसू लेकर हर शाम घर-घर जाकर टेसू के प्रचलित गीत गाते हैं। मेरा टेसू झंई अडा, खाने को मांगे दही बडा… बच्चे ये गीत गाते हैं। लडके टेसू (इंसान जैसी आकृति वाला खिलौना) लेकर घर-घर घूमते हैं। टेसू के गीत गाकर पैसे भी मांगते हैं। हर घर से उन्हें अनाज या धन देकर विदा किया जाता है। पूर्णिमा के दिन टेसू तथा सांझी का विवाह रचाया जाता है। सांझी और टेसू का खेल ज्यादातर उत्तर भारत में लोकप्रिय हैं। इसे बच्चे ही नहीं, बल्कि युवा भी खेलते हैं। सांझी बनाते समय लडकियां जो गीत गाती हैं, वो वहीं की भाषा में होते हैं। आमतौर पर टेसू का स्टैण्ड बांस का बनाया जाता है। इसमें मिट्टी की तीन पुतलियां फिट कर दी जाती हैं, जो क्रमश: टेसू राजा, दासी और चौकीदार की होती हैं या टेसू राजा और दो दासियां होती हैं। बीच में मोमबत्ती या दिया रखने की जगह बनाई जाती है।
लुप्त होती जा रही है प्रथा
एक वक्त था जब दशहरे पर रावण दहन से ज्यादा टेसू और सांझी को घर लाकर उनका विवाह कराने की बच्चों में होड ज्यादा रहती थी। धीरे-धीरे यह अनोखी परंपरा अब गुमनाम होती जा रही है। समय के साथ बदलाव आया और टेसू-झेंझी के विवाह का खेल अब कहीं-कहीं या आंशिक ही दिखाई देता है। पहले हर दुकान पर ये आसानी से मिल जाता करता था। टेसू खेलने की प्रथा अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इसी वजह से इसे खेलते समय गाए जाने वाले गीत भी किसी को ठीक से याद नहीं हैं।