– राकेश अचल
लिखना तो नहीं चाहिए, लेकिन लिख रहा हूं, क्योंकि नहीं लिखूंगा तो अपराध बोध सताता रहेगा। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के नतीजे ठीक वैसे ही आए हैं जैसे मै सोच रहा था। मैंने पहले ही कहा था कि जब हथेली पर आम उगाया जा सकता है तो बर्फ में कमल भी खिलाया जा सकता है। कमल बर्फ में भी खिला है और मैदान में भी। इसके लिए बधाई दूंगा सत्तारूढ भाजपा को और उस प्रबंधन को जो जनादेश और हवाओं पर भी भारी पडा। बधाई जीते हुए सभी दलों के प्रत्याशियों को और संवेदना जीत कर भी हारे सभी दलों के तमाम प्रत्याशियों को।
हरियाणा में लोकतंत्र जीता या हारा? इस मुद्दे पर बहस अब बेमानी है। बेमानी इसलिए है क्योंकि अब भारत के चुनाव उस दौर में आ चुके हैं जहां ईमान की परिभाषा ही बदल गई है। एक जमाना था जब दुनिया भारत के चुनाव इसलिए दिलचस्पी से देखती थी, क्योंकि यहां चुनाव एक यज्ञ की तरह था। लेकिन अब चुनावों में न दुनिया की दिलचस्पी रही और न आने वाले दिनों में आम जनता की दिलचस्पी रहेगी। जनता अगर भाजपा को 400 पार करने से रोकेगी तो उसे पलटकर जबाब मिलेगा। जबाब मिल रहा है।
अब भारत के चुनावों में आप किसी एक को निशाने पर नहीं रख सकते। अब चुनाव में मशीनें, केंचुआ और जादूगर तक शामिल हो गए हैं। हमने बचपन में सुना था कि जादूगर या उनकी प्रजाति के लोग बरसात में पानी बांध देते हैं, शादियों के मौसम में आंधियों को रोक देते हैं, लेकिन बुढापे में हम और आप ऐसा होते देख रहे हैं। पिछले साल राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में कांग्रेस की आंधी को जादू से रोक दिया गया। 2024 के आम चुनाव में जादू कम चला, लेकिन हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में ये जादू फिर पुरअसर नजर आ रहा है। जहां भाजपा को हारना था, वहां भाजपा अप्रत्याशित तरीके से जीती है। भाजपा को जीत का मंत्र मिल गया है। हवाएं लाख भाजपा के खिलाफ चलें लेकिन भाजपा आगे भी सभी चुनाव जीतेगी।
भाजपा चुनाव जीत रही है इसका मतलब ये तो नहीं कि भारत में चुनाव होना बंद हो जाएंगे। चुनाव तो होंगे लेकिन अब चुनावों में वैसा उत्साह नहीं होगा जैसा अभी तक होता आया था। भाजपा को कांग्रेस बनने के लिए अभी और कई चुनाव जीतना हैं और वो जीतेगी। कांग्रेस चुनाव जीतती थी अपने संगठन और विचारधारा के कारण। अपने नारों के कारण, अपनी विरासत के कारण, लेकिन अब इन्हीं वजहों से कांग्रेस हार भी रही है। कांग्रेस हार रही है इसका सीधा सा अर्थ ये है कि अब भाजपा से कोई दूसरा दल लोहा ले भी नहीं सकता। अब कांग्रेस के वजूद का संकट नहीं है, संकट उन क्षेत्रीय दलों के वजूद का है जो पिछले चार दशक में दक्षिण की तरह गोबर पट्टी में भी कुकुरमुत्तों की तरह उग आए थे।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधान सभा के चुनावों में कांग्रेस तो जैसे-तैसे भाजपा के प्रबंधन और जादू के बावजूद अपने वजूद को बचाने में कामयाब हो गई, लेकिन क्षेत्रीय दलों का या तो सूपडा साफ हो गया या वे चुनाव लडते हुए बुरी तरह से जख्मी कर दिए गए। ये सब इसलिए हुआ क्योंकि इन दलों ने न गठबंधन का महत्व समझा और न जनमानस की अपेक्षाओं को पहचाना। दूसरे प्रदेशों की तो जाने दीजिये लेकिन हरियाणा के चुनावी महाभारत में तमाम सरे लाल चित हो गए। भाजपा जिस परिवारवाद को लेकर चुनावी मैदान में उतरी थी उसने अपना काम कर दिखाया। लेकिन जम्मू-कश्मीर में सबसे बडे अब्दुल्ला खानदान को भाजपा चाहकर भी चित नहीं कर पाई या उसने जान-बूझकर अब्दुल्ला परिवार से पंगा नहीं लिया ये आने वाले दिनों में पता चलेगा।
विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ दल पर बेईमानी का आरोप मैं इसलिए नहीं लगाऊंगा, क्योंकि ऐसा करने से ईमानदारी को आघात पहुंचेगा। ईमानदारी से भाजपा का दूर-दूर का रिश्ता नहीं है। कांग्रेस को उसी समय सावधान हो जाना चाहिए था जब हरियाणा के नबाब सिंह सैनी ने ये रहस्योदघाटन कर दिया था कि उन्होंने जीत का इंतजाम कर लिया है। चुनाव से एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दस मोदी ने भी सैनी की बात कोई पुष्टि की थी। चुनाव जीतने के लिए इंतजाम करना भाजपा का मौलिक अधिकार है। कांग्रेस को भी ये अधिकार है, लेकिन सत्ता उसके पास नहीं है, इसलिए वो चाहकर भी अपनी जीत सुनिश्चित नहीं कर सकती थी। लेकिन इन चुनाव परिणामों से एक बात जाहिर है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस का काम और बढ गया है।
अगले महीने महाराष्ट्र में भी विधानसभा के चुनाव हैं। बिहार और झारखण्ड में भी विधानसभा के चुनाव होना है। भाजपा जिस तरीका-ए-वारदात से मप्र, छग और राजस्थान के बाद हरियाणा जीती है उसी तरीके से महाराष्ट्र और बिहार भी जीत सकती है। झारखण्ड को वो छोड भी देगी, क्योंकि ऐसा कर वो अपनी ईमानदारी को प्रमाणित करना चाहेगी। महाराष्ट्र में इस समय सब कुछ बिखरा-बिखरा लग रहा है। ये बिखराव बिहार में भी साफ दिखाई दे रहा है किन्तु इन दोनों राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं। ऐसे में भाजपा इन दोनों राज्यों में भी अपना जादू किए बिना मानेगी नहीं और आप लिखकर रख लीजिए कि इन दोनों राज्यों में घाटे में कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के सहयोगी दल रहेंगे।
मुमकिन है कि आप भाजपा के जादू से प्रभावित न हों, लेकिन मैंने तो मान लिया है कि यदि इस देश में कांग्रेस भाजपा को नेस्तनाबूद नहीं कर सकती तो कोई दूसरा दल ऐसा नहीं है जो भाजपा का बाल भी बांका कर सके। भारत के चुनावों का पैटर्न अचानक नहीं बदला है। ये पैटर्न रूस के उस पैटर्न जैसा है जहां कोई भी चुनाव हो पुतिन की पार्टी को ही जीत मिलती है। भारत में भी इक्का-दुक्का चुनावों को छोड अब भाजपा ही जीत रही है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को भाजपा से ईष्र्या करने के बजाय, हार मानने के बजाय नई ऊर्जा और नए साहस के साथ चुनाव लडना चाहिए। आखिर एक न एक दिन हर जादू बेअसर होता है। फिर चाहे वो बंगाल का कला जादू हो या लाल जादू। लोकतंत्र में कोई भी जादू ज्यादा दिन नहीं ठहरता। कांग्रेस का भी नहीं ठहरा तो भाजपा का जादू कोई अमरौती खाकर थोडे ही आया है। मैं उस चर्चित शेर को तोड-मरोडकर लिख रहा हों कि
सरफरोशी की तमन्ना यदि तुम्हारे दिल में है।
सोचना मत जोर कितना बाजुए कातिल में है।।