सियासत में जलेबी, चूरमा और लड्डू

– राकेश अचल


मुझे इजराइल-लेबनान युद्ध पर नहीं लिखना। मैं फिलहाल चिराग पासवान पर भी नहीं लिखना चाहता। मैं जलेबी और चूरमा पर लिख रहा हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि मौजूदा कडवी सियासत के दौर में जलेबी और चूरमा ज्यादा बेहतर विषय है लिखने के लिए। फिलहाल जलेबी और चूरमा पर हिन्दू-मुसलमान की छाप भी नहीं पडी है, इसलिए वे अब तक समरसता का बोध कराने वाले मिष्ठान हैं।
आप मानें या न मानें लेकिन हकीकत ये है कि कडवाहट से भरे नेताओं को भी मिष्ठान प्रिय होते हैं, भले ही नेता मधुमेह के शिकार हों। मिष्ठान सामने आ जाए तो पीछे नहीं हटते। देश के पूर्व प्रधानमंत्री और ग्वालियर के सपूत अटल बिहारी बाजपेयी को बहादुरा के लड्डू और गुलाब जामुन प्रिय थे, हालांकि वे चाची के मंगौडों के भी मुरीद थे। मुझे लगता है कि भाजपा ने यहीं से मंगौडे तलने की बात शुरू की थी। जब तक अटलजी रोग शैय्या पर नहीं गए थे तब तक इन लड्डुओं और मंगौडों का सेवन करते रहे। बाजपेयी जी से मिलने वाले उनके रिश्तेदार हों या और कोई यदि उन्हें बहादुरा के लड्डू भेंट करते थे तो उनके मुखमण्डल पर एक स्निग्ध मुस्कान तैरने लगती थी। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा जलेबी कि शौकीन थे। वे राष्ट्रपति भवन में आगंतुकों को भी जलेबी ही खिलते थे।
हाल ही में तिरुपति के प्रसादम में मिलने वाले लड्डुओं के विवाद के बावजूद ग्वालियर में न बहादुर के लड्डुओं के प्रेमियों की संख्या कम हुई है और न लखनऊ में ठग्गू के लड्डुओं की। लड्डू हैं ही ऐसी मिठाई जिसे हर जाति और धर्म के लोग खाते हैं। लड्डू मेरे हिसाब से मिठाइयों का राजा है। कायदे से उसे अब तक राष्ट्रीय मिष्ठान घोषित कर देना चाहिए था। मुमकिन है कि महाराष्ट्र सरकार ने जैसे हाल ही में गाय को राज्य माता का दर्जा दिया है, वैसे ही आने वाले दिनों में कोई लड्डू प्रेमी सरकार लड्डू को भी राज्य या राष्ट्र मिष्ठान का दर्जा दे दे। हमारे यहां दर्जा देना या पेरोल देना बहुत आसान काम है।
हरियाणा विधानसभा के चुनाव प्रचार में गोहाना पहुंचे लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता और भाजपा के सिर पर चढे भूत राहुल गांधी भी जलेबी नाम के एक मिष्ठान के मुरीद हो गए। गोहाना की चुनवाई सभा के मंच पर राहुल गांधी ने मातूराम हलवाई की जलेबी का स्वाद चखा। दीपेन्द्र हुड्डा ने राहुल गांधी को अपने हाथों ये जलेबी खिलाई। राहुल को इसका स्वाद इतना पसंद आया कि उन्होंने एक डिब्बा अपनी बहन प्रियंका गांधी के लिए पैक करवा लिया। उन्होंने अपनी रैली में भी इस जलेबी का जिक्र किया। बता दें कि लाला मातूराम की जलेबी कोई सामान्य जलेबी नहीं है, इनका आकार सामान्य जलेबी से ज्यादा बडा है। एक जलेबी 250 ग्राम तक की होती है।
जलेबी केवल हम भारतीयों को ही नहीं बल्कि भारत के बाहर तमाम इस्लामिक राष्ट्रों की जनता को भी प्रिय है। वे इसे हिन्दू मिठाई मानकर इसका तिरस्कार नहीं करते। जानकार बताते हैं कि जलेबी भारतीय उपमहाद्वीप व मध्य पूर्व की एक लोकप्रिय मिठाई है। यह किसी कर्ण कुण्डल की तरह ऐसी रसभरी होती है कि आप इसे खाए बिना रह नहीं सकते। कोई इसे दूध में डालकर खाता है तो कोई रबडी डालकर, किसी को जलेबी दही के साथ खाना पसंद है। लेकिन खाते सब है। कहीं जलेबी बहुत छोटे आकर की बनती है तो गोहाना में 250 ग्राम की एक। सागर में तो जलेबी में मावा भरा जाता है। इसका स्वाद में मीठी और खमीर की वजह से हल्की सी खट्टी जलेबी की लोकप्रियता ऐसी है कि हमारे यहां सुंदर महिलाओं का नाम तक जलेबी बाई रखा जाता है। जलेबी की लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि हमारे यहां जलेबी बाई फिल्मी गीत भी है, बेव सीरीज भी है और कार्टून श्रंखला भी।
जलेबी की धूम मैंने अपनी अनेक विदेश यात्राओं में भी देखी, भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, ईरान के साथ समस्त अरब देेेशों में भी यह जानी-पहचानी है। मैंने तो स्पेन में भी जलेबी खाई। अमेरिका में तो जलेबी आसानी से मिल जाती है। जलेबी की तारीफ कर इसके जरिए रोजगार की बात कर राहुल गांधी भले ही अपने विरोधियों द्वारा ट्रोल किये जा रहे हों, लेकिन इससे जलेबी का तो भला ही हुआ। वैसे भी हमारे रामजी सभी का भला करते हैं।
जलेबी के बाद आइये बात करते हैं चूरमा की। चूरमा राजस्थान का अघोषित राज्य मिष्ठान है और इसकी धूम देश-विदेश तक है। हाल ही में हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी भी चूरमा खाकर न सिर्फ गदगद हो गए, बल्कि उन्हें अपनी दिवंगत मां की याद भी आ गई। भारत के स्टार जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपडा की मां ने ये चूरमा भेजा था। मोदीजी ने चूरमा न सिर्फ खुद खाया बल्कि जमैका के प्रधानमंत्री को भी खिलाया और भावुक होकर नीरज की मां श्रीमती सरोज देवी को एक आभार पत्र भी लिख दिया। आपको याद होगा कि मोदीजी सामान्य तौर पर किसी कि पत्र का जबाब नहीं देते। मल्लिकार्जुन खरगे तक के पत्र का जबाब उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से दिलवाया था, लेकिन नीरज की मां को मोदीजी ने खुद पत्र लिखा। ये चूरमे की ही ताकत तो थी। मोदीजी ने लिखा- ‘आज इस चूरमे को खाने के बाद आपको पत्र लिखने से खुद को रोक नहीं सका। भाई नीरज अक्सर मुझसे इस चूरमे की चर्चा करते हैं, लेकिन आज इसे खाकर मैं भावुक हो गया। आपके अपार स्नेह और अपनेपन से भरे इसे उपहार ने मुझे मेरी मां की याद दिला दी।’
अब आप समझ ही गए होंगे कि मिष्ठान चाहे कोई भी हो बहुत ताकतवर चीज है। मिष्ठान शुष्क से शुष्क आदमी को भी सरस बना सकता है। मिष्ठान कडवाहट मिटाने का सबसे बढिया विकल्प है, आप इसे कडवाहट का ‘ऐंटी डोज’ भी कह सकते हैं, शायद इसीलिए हमारे यहां तीज-त्यौहारों पर मिठाइयों का आदान-प्रदान किया जाता है। मैं तो कहता हूं कि मिष्ठान बिना जग सूना है। सियासत में बढती कडवाहट और अदावत को मिष्ठान के जरिए दूर किया जा सकता है, फिर मिष्ठान चाहे लड्डू हो, जलेबी हो, चूरमा हो या बंगाल का रसोगुल्ला। मैं तो कहता हूं कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर स्वच्छता पखवाडा मानते हुए आम जनता को रसोगुल्ला वितरित करना चाहिए था। यदि ऐसा होता तो प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के तमाम लोग संदेशखाली और कोलकाता जैसे मुद्दे उठाना भूल जाते।
देश में पुरखों की विदाई के बाद देवी स्वरूपा दुर्गा का आगमन हो चुका है। हमें इन नौ दिनों में मिष्ठान के जरिए सौहार्द की वापसी की कोशिश करना चाहिए। मुहब्बत की दुकान खोलने से आपको ऐतराज हो सकता है किन्तु मिष्ठान की दुकान खोलने से नहीं। यदि यही मिष्ठान हमारे लिए रोजगार पैदा करने लगे तो भी क्या बुरा है। मिष्ठान भी किसी मंगौडे से कम नहीं है। हम तो आठ अक्टूबर को हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के सभी नए विधायकों से मिठाई खाएंगे।