‘गाय’ क्यों बनी महाराष्ट्र की राजमाता

– राकेश अचल


आप मानें या न मानें लेकिन मुझे ये लग रहा है कि देश के तमाम चौपाये गाय की किस्मत से जल-भुन रहे होंगे, क्योंकि उसे महाराष्ट्र की सरकार ने राजमाता घोषित कर दिया है। राजमाता कहिये या राज्य माता अर्थ एक ही है। ये सम्मान पाने के लिए पुराने सामंतों परिवारों की महिलाएं तरस जाया करती थीं। पशुओं में तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि कलिकाल में जाकर गाय किसी राज्य की राजमाता बन जाएगी। मै देश-दुनिया के तमाम चौपाया परिवार की और से गाय को इस सम्मान के लिए दिल से बधाई देता हूं।
‘गाय’ देश का सबसे निरीह चौपाया है, लेकिन भारतीय समाज में ‘गाय’ को माता का दर्जा हांसिल है तो एक बडे हिस्से में उसके मांस को बडी लज्जत के साथ भक्षण भी किया जाता है। सनातनी तो गाय की पूंछ पकड कर वैतरणी पार करने का यकीन रखते हैं। पहले ये विश्वास मनुष्यों तक सीमित था, लेकिन अब सियासत में भी सियासी दल चुनावी वैतरणी पार करने के लिए ‘गाय’ को ठीक उसी तरह राजमाता बना रहे हैं जैसे कि ‘गधे’ को वक्त पडने पर बाप बनाया जाता है।
वैसे ‘गाय’ और ‘गधे’ की राशि एक ही है किन्तु दोनों के बीच लोई तुलना, कोई बराबरी नहीं है। गाय को माता बनाया जाता है और गधे को बाप। ये सिद्धांत मेरे या आपके नहीं बल्कि भारतीय समाज के हैं। ये मानयताएं भी सनातन ही समझिए। जबसे मनुष्य ने गाय और गधे को अपना सहचर बनाया है, शायद तभी से ये मान्यताएं, ये कहावतें समाज में प्रचलित हैं। अब यदि ये प्रचलित हैं तो निश्चित ही इनका कोई आधार भी रहा होगा। फिलहाल बात गाय की हो रही है। गाय और गधे में केवल एक ही समानता है कि दोनों बडे ही धैर्यवान हैं। हालांकि दोनों को लात मारना आता है।
गाय पर हमारे पुरखा पत्रकार स्व. राजेन्द्र माथुर ने भी लिखा और साथी गिरीश पंकज ने भी। महात्मा गांधी ने गाय के बजाय बकरी को प्राथमिकता दी, लेकिन उनकी कांग्रेस ने गाय को ही नहीं उसके बछडे को और उसके पति बैल को भी सम्मान दिया। एक जमाना था जब कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोडी होता था और बाद में ये गाय-बछडा भी बना। इस सात्विक चौपाये ने कांग्रेस की हमेशा मदद की। कांग्रेस को अनेक बार चुनावी वैतरणी पार कराईं। कांग्रेस को हुए फायदे को देखकर अब महाराष्ट्र सरकार ने गाय को अपने सूबे की राजमाता घोषित कर दिया। महाराष्ट्रा में इस मर्तबा भाजपा की हालत पतली है। नबंवर में वहां विधानसभा के चुनाव होना हैं। ये चुनाव केवल कमल दिखाकर जीते नहीं जा सकते। किसी चेहरे को दिखाकर भी बात बनती नहीं दिखाई दे रही है, ऐसे में गाय ही भाजपा और उसकी गठबंधन सरकार का एक मात्र सहारा है।
गाय सबका सहारा होती है। जब हम सब छात्र हुया करते थे तब गाय हमारा भी सहारा थी। परीक्षा में हर बार गाय पर निबंध लिखने का विकल्प होता था और हम बच्चे किसी और विषय पर निबंध लिखने के बजाय गाय पर निबंध लिखना पसंद करते थे। गाय केवल एक पशु ही नहीं बल्कि हमारी मान्यता भी है। हमारे समाज में गाय को सबसे सीधा चौपाया माना जाता है। उसके इसी स्वभाव की वजह से कहावत तक बन गई। हमारे यहां अक्सर सीधे पुरुष और महिला को गाय ही कहा जाता है। कृषि प्रधान देश में एक जमाने में गाय को सचमुच राजमाताओं जैसा सम्मान मिलता था, क्योंकि वे कृषि के लिए बैल जनती थीं। उस जमाने में जिस किसान के घर जितनी ज्यादा गायें और जितनी ज्यादा बैल जोडियां होती थीं, उसे उतना समृद्ध माना जाता था। घर-घर में गौशालाएं थीं। तब गायों को सडकों पर गलियों में आवारगी करने की न छूट थी और न मजबूरी।
कालांतर में भारत कृषि प्रधान देश तो है किन्तु आज न किसानों का सम्मान है और न गायों का। अब खेती बैलों की जोडियों से नहीं मशीनों से होती है। बैलों की जगह ट्रेक्टरों ने ले ली है। कटाई मजदूरों के पेट पर हार्वेस्टर लात मार चुके हैं। ऐसे में गायों और बैलों का बेरोजगार और महत्वहीन होना स्वाभाविक है। अब गाय और बैल पाले कौन? आज कि समय में तो आदमी के लिए अपना पेट पालना ही मुश्किल हो रहा है। 85 करोड लोग पेट पालने कि लिए सरकार पर निर्भर हैं। सरकार अपने वोटर पाले या गाय? यहां तक कि गाय को राजमाता का सम्मान देने वाले भाजपा के कार्यकर्ता और नेता तक गाय या बैल नहीं पालते। उन्हें या तो आवारगी के लिए सडकों पर छोड दिया जाता है या वे कत्लगाहों के काम आते है। जहां उनके मांस को डिब्बों में बंद कर बाजारों में बेच दिया जाता है। आप हैरान होंगे कि गाय-बैल का मांस बेचने वाले विधर्मी नहीं बल्कि सनातन धर्म के मानने वाले ही हैं। महाराष्ट्र सरकार ने गाय को राज्यमाता का दर्जा दे दिया है। यह बडा कदम चुनाव से पहले उठाया गया है। सरकार ने कैबिनेट बैठक में यह फैसला सुनाते हुए कहा कि वैदिक काल से भारतीय संस्कृति में देशी गाय की स्थिति, मानव आहार में देशी गाय के दूध की उपयोगिता रही है।
यह फैसला जारी करते हुए कहा गया कि वैदिक काल से भारतीय संस्कृति में देशी गाय की स्थिति, मानव आहार में देशी गाय के दूध की उपयोगिता, आयुर्वेद चिकित्सा, पंचगव्य उपचार पद्धति तथा जैविक कृषि प्रणालियों में देशी गाय के गोबर एवं गोमूत्र के महत्वपूर्ण स्थान को ध्यान में रखते हुए देशी गायों को अब से ‘राज्यमाता गौमाता’ घोषित करने की मंजूरी दी गई है। हम महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को इस फैसले कि लिए बधाई देते हैं। हमें उम्मीद है कि देश में मणिपुर की जनता बचे या न बचे लेकिन अब महाराष्ट्र में तो गाय बच ही जाएगी। देश के जिन राज्यों में डबल इंजिन की सरकारें हैं वे भी आज नहीं तो कल गाय को राजमाता का दर्जा दे ही देंगी। भारत को कोई भी नागरिक, कोई भी मतदाता गाय को दिए गए इस सम्मान का विरोध नहीं कर सकता। करना भी नहीं चाहिए। आखिर गौशालाओं के नाम पर पलने वाले नेता और बाबा भी तो बहुत हैं।
देश भले ही मंगल ग्रह पर पहुंच गया हो, लेकिन विकास की हकीकत ये है कि आज भी सडक परिवहन का एक बडा भाग आज भी बैलगाडी पर निर्भर है। देहाती ईंधन का अधिकांश भाग तथा शहरी ईंधन का लगभग 20 प्रतिशत भाग गोबर का होता है। गौ-दुग्ध में समस्त पोषक तत्व पाए जाते हैं। हरिजनों, पिछडे वर्ग के लोगों और वनवासियों की आय का साधन भी गौ-वंश है। गाय से प्राप्त ऊर्जा पर्यावरण प्रदूषण फैलाने की जगह उसे रोकती है तथा दुग्ध पाउडर व रासायनिक खादों के रूप में देश से बाहर जाने वाली देशी मुद्रा की बचत करती। गाय केवल सियासत कि ही नहीं धार्मिक नेताओं कि काम भी आती है। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती हिन्दुओं के लिए पूज्य गायों की रक्षा के लिए देशभर में एक लाख ‘गौ ध्वज’ स्थापित करने कि अभियान में लग गए हैं। हमारे प्रधानमंत्री को आपने हाल में ही एक बछिया को किस (चुम्मा) करते हुए देखा ही होगा।
सरकारी आंकडों कि मुताबिक इस समय देश में गायों की संख्या 19 करोड से ज्यादा है। एक समय था, जब देश की जनसंख्या 38 करोड हुआ करती थी और गौवंश 117 करोड हुआ करता था। आंकडे बताते हैं कि बीफ एक्सपोर्ट में भारत अब विश्व में दूसरे नंबर पर पहुंच गया है। भारत ‘मिथुन’ और ‘जलीय भैंस’ का निर्यात कर रहा है। सन 2023 में भारत ने 1475 टन बीफ और बछडे का मांस एक्सपोर्ट किया है। खैर जो है सो है। अब यदि राजमाता बनने कि बाद हमारी गायों को राजमाताओं जैसा सुख भी मिलने लगे तो सबसे ज्यादा खुशी मुझे होगी। क्योंकि मुझे भी गाय बहुत पसंद है, मैं यदि फ्लैट में न रह रहा होता तो एक गाय जरूर पालता।