– राकेश अचल
दिशाहीन, कसैली, विषैली सियासत पर लिखते-लिखते अब ऊब होने लगी है। इसलिए आज श्राद्ध पक्ष पर लिख रहा हूं। भारत में श्राद्ध पक्ष का बहुत महत्व है। मान्यताएं हैं, अस्थाएं हैं। हमारे पूर्वजों ने पूर्वजों की आत्मशांति और उनके प्रति श्रृद्धा व्यक्त करने के लिए पूरे 16 दिन मुकर्रर किए हैं। पंचभूत में विलीन हमारे पूर्वजों की देह हम नदियों में प्रवाहित कर देते हैं किन्तु उनकी आत्माओं के बारे में हमारे पास कोई प्रबंध नहीं है। हमें लगता है कि पूर्वजों की आत्माएं भटकती हैं। उन्हें भूख-प्यास भी लगती है इसलिए ब्राह्मणों, कौवों एवं पशु-पक्षियों के जरिए हम उन्हें भोजन, वस्त्र और न जाने क्या-क्या पहुंचाने की कोशिश करते हैं और जब थक जाते हैं, पक जाते हैं तो पिण्ड दान कर देते हैं।
स्थापित मान्यताओं के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना, क्योंकि ये आज का विषय नहीं है। मेरा तो आग्रह ये है कि हम इस श्राद्ध पक्ष में यदि कुछ तर्पण करना ही चाहते हैं, पिण्ड दान करना ही चाहते हैं तो हमें नफरत क, ईष्र्या का, घृणा का पिण्ड दान करना चाहिए ताकि समाज, देश, आस-पडोस सुख से रह सके। सुख अब दिनों-दिन अलभ्य होता जा रहा है। लोग सुख देने के बजाय उसे छीनने की स्पद्र्धा में जुटे हुए हैं। भारत में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में ये छीना-झपटी चल रही है। छीना-झपटी का चरम युद्ध में तब्दील होजाता है। दुनिया में कहां-कहां ये नफरत युद्ध में तब्दील हो चुकी है ये आप सभी जानते हैं।
बात नफरत की चली तो मुझे भारतीय राजनीति की कुछ महिलाओं की याद आ गई। दिल्ली की नई-नवेली मुख्यमंत्री आतिशी भाजपा की नफरत से परेशान हैं। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की कुर्सी खाली रखकर कामकाज करने का फैसला किया तो भाजपा को उदरशूल होने लगा। भाजपा के तमाम भद्र नेता मुख्यमंत्री आतिशी पर राशन-पानी लेकर चढ बैठे। उनका कहना है कि ये चमचत्व की पराकाष्ठा है, जबकि आतिशी कहती हैं कि वे दिल्ली में भरत राज का अनुकरण कर रही हैं। कलियुग में भरत राज का अनुकरण अविश्वनीय है, क्योंकि यहां तो भरत के रूप में चम्पाई सोरेन का उदाहरण हैं, जो सत्ता कि लालच में अपने ही दल को लात मार चुके हैं। आतिशी चम्पाई सोरेन नहीं हैं, आतिशी हैं। उनका सम्मान किया जाना चाहिए।
नफरत की आग भाजपा की कलाकार संसद सुश्री कंगना रावत के दिल में भी धधक रही है। वे भी सन्निपात की शिकार दिखाई देती हैं। वे कब, क्या बोलेंगीं, ये उनका दल भाजपा भी नहीं जानता और इसीलिए कुछ दिन पहले ही कंगना के एक बयान से भाजपा ने अपने आपको लग कर लिया था। अब वही कंगना रनौत फिर सुर्खियों में है। उन्होंने कहा है कि हिमाचल प्रदेश सरकार कर्ज लेती है और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की गोद में डाल देती है। इस तरह वह कांग्रेस की झोली भर रही है। सोनिया गांधी ने राज्य के खजाने को खोखला कर दिया है और हिमाचल की ये दुर्दशा हुई है। हिमाचल के बच्चों के भविष्य पर कुल्हाडी मारी जा रही है। यह देखकर उन्हें बहुत दुख होता है। उनका दुख कब सुख में बदलेगा हम और आप नहीं जानते।
हरियाणा कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी शैलजा भी इस समय अपनी पार्टी और भाजपा की नफरत का शिकार हैं, नाराज हैं। चुनाव प्रचार में नजर नहीं आ रहीं। भाजपा ने उन्हें कांग्रेस छोड भाजपा में आने का न्यौता दिया है, लेकिन सैलजा ने विभीषण बनने से इंकार कर दिया है। उनका कहना है कि उनकी देह कांग्रेस के झण्डे में ही लिपटकर विदा होगी। ऐसा समर्पण अब कहां देखने को मिलता है। नफरत की राजनीति के शिकार देश के अल्पसंख्यक भी हैं और वे लोग भी जो तिरुपति तिरुमला देवस्थान में लड्डुओं के लिए देशी घी के नाम पर कुछ और सप्लाई करते आए हैं। लेकिन इस नफरत से किसका नुक्सान है और किसका फायदा ये समझना बहुत कठिन है। इसलिए मैं बार-बार कहता हूं कि श्राद्ध पक्ष में पितरों कि साथ उन लोगों कि लिए भी दान-पुण्य करना चाहिए जो नफरत की गिरफ्त में है। नफरत से मोक्ष दिलाने कि लिए कोई नया विधि-विधान आवश्यक हो तो उसका भी इस्तेमाल किया जा सकता है। क्योंकि मेरी मान्यता है कि जब तक समाज में, देश में, दुनिया में नफरत है कोई सुख से नहीं रह सकता। न गरीब और न अमीर। सुख की जरूरत सभी को है, नफरत से मुहब्बत करने वाले लोग बहुत कम हैं और अब दुनिया में हर जगह उनकी शिनाख्त हो चुकी है। नफरत से मुहब्बत करने वाले अल्पसंख्या में हैं, इसलिए उनसे डरने की नहीं सावधान रहने की जरूरत है।
देश के अल्पसंख्यकों से नफरत करने वाली इकलौती राजनितिक पार्टी भाजपा कुर्सी कि लालच में जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में अल्पसंख्यकों कि प्रति उदारता दिखती नजर आ रही है। भाजपा के बडे नेता और इस दशक के सरदार पटेल हमारे केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घाटी के मुसलमानों को ईद और मोहर्रम पर रसोई गैस के दो सिलेण्डर मुफ्त देने का वादा कर अपने कांग्रेसी होने का एक और प्रमाण दे दिया है। कांग्रेस पर यही भाजपा अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की नीति अपनाने का आरोप लगाती आई है, लेकिन अब खुद अल्प संख्यकों का तुष्टिकरण करने के लिए विवश हैं। लेकिन ये अच्छी खबर है श्राद्ध पक्ष में भाजपा का दिल कुछ तो बदला।