– राकेश अचल
आषाढ़ का पहला दिन अर्थात वर्षा ऋतु का पहला दिन। कालिदास का मेघदूत भी यही कहता है और मोहन राकेश का नाटक ‘आषाढ़ का पहला दिन’ भी। मोहन राकेश ने ये नाटक जब लिखा तब मैं अपनी मां के गर्भ में था, लेकिन जब इस नाटक को संगीत नाटक अकादमी का पुरस्कार मिला तब मेरा जन्म हो चुका था। मैंने आषाढ़ और उसके पहले दिन के बारे में तब जाना जब मैं 14 साल का हो गया था। तब से अब तक मैं और मेरी तरह शायद हर आदमी आषाढ़ के पहले दिन का बेताबी से इन्तजार करता है।
देह जलाने वाली गर्मी झेलने के बाद हर जीव को शीतलता की आवश्यकता होती है। ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के दौर में आषाढ़ के पहले दिन की महत्ता और ज्यादा बढ़ गई है। विश्व में मौसम सुखानुभति के साथ आपदा बनकर भी आते हैं। ज्यादा शीत, ज्यादा गर्मी, ज्यादा वृष्टि आपदाओं का कारण बनते हैं। कोई भी मौसम हो आपदा में तब बदलता है जब हम मौसम से छेड़छाड़ करते हैं। कलियुग में ऋतुएं आपदा का वाहक ज्यादा बन गई हैं, बावजूद इसके आषाढ़ अपनी जगह है। उसके पहले दिन का इंतजार आज भी सभी को रहता है। जिन मित्रों ने कालिदास का ‘मेघदूतम’ पढ़ा है वे जानते हैं कि दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति कालिदास है और उसके जीवन में कोई न कोई उज्जयनी है। प्रियंगुमंजरी है मल्लिका है।
आषाढ़ के पहले दिन का सबसे ज्यादा इंतजार हमारे देश के अन्नदाता यानि किसान को होता है। जैसे मोहन राकेश ने आषाढ़ के पहले दिन पर नाटक लिखा तो कविवर भवानी मिश्र ने कविता लिख दी। भवानी प्रसाद मिश्र जी ने अपनी कविता में किसानों के लिए बादलों के महत्व को बताया है। मानसून के द्वारा किसान को होने वाली खुशी का वर्णन किया है। आषाढ़ के महीने में ही बारिश के आसार बनते हैं। किसान इंतजार करता रहता है क्योंकि बादलों के आने से बारिश होती है, जिससे खेतों की सिंचाई होती है। आषाढ़ का महीना अपने साथ किट-पतंग, शलभ, दादुर ध्वनि, मयूर नृत्य, कोयलों की कूक, पपीहों की पीहू-पीहू लेकर आता है। धरती ढाणी चूनर ओढ़ती दिखाई देने लगती है।
हम भारतियों के लिए हर महीने का अलग महत्व है। हिन्दू पांचांग में हर महीने की अपनी विशेषता होती है। आषाढ़ का भी महत्व इसीलिए है क्योंकि ये हमारे कैलेंडर का चतुर्थ महीना है। जेठ के बाद आता है। ज्योतिष के मुताबिक आषाढ़ मास का नाम पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र ऊपर रखा गया है। आषाढ़ मास का नाम पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र ऊपर रखा गया है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को चंद्रमा पूर्वा आषाढ़ और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के मध्य में रहता है इसलिए इस मास को आषाढ़ का मास कहा जाता है। वैदिक ज्योतिष में, सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश के साथ आषाढ़ शुरू होता है।
आषाढ़ की महत्ता के बारे में मुझसे ज्यादा मेरी श्रीमती जानती है। उन्होंने ही मुझे बताया कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवरात्रि का आरंभ होता है। इसे ‘गुप्त नवरात्रि’ कहते हैं। इसकी गोपनीयता का कारण है कि यह कालऋतु परिवर्तन का समय है। प्रत्येक ऋतु परिवर्तन में विभिन्न रोग मानव पशु-पक्षियों के साथ वनस्पतियों में भी लग जाते हैं। अत: उन रोगों की निवृत्ति के लिए हम देवी माता की आराधना करते हैं जिसे एकांत स्थान में करने का विधान है, जिससे बहुत जल्द ही देवी मां प्रसन्न होती हैं और वरदान देती हैं। वे कहती हैं कि आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाली है। यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। इस दिन लोग पूरे दिन का व्रत रखकर भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराकर भोग लगाते हुए पुष्प, धूप, दीप से आरती करते हैं। गरीब ब्राह्मणों को दान भी किया जाता है। इस एकादशी के बारे में मान्यता है कि मनुष्य के सब पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आपको बता दें कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ‘गुरू पूर्णिमा’ अथवा ‘व्यास पूर्णिमा’ कहते हैं। इस दिन लोग अपने गुरू के पास जाते हैं तथा उच्चासन पर बैठाकर माल्यापर्ण करते हैं तथा पुष्प, फल, वस्त्र आदि गुरू को अर्पित करते हैं। यह गुरू-पूजन का दिन होता है, जिसकी प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को व्रत किया जाता है। यह एकादशी स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाली एवं संपूर्ण पापों का हरण करने वाली है। इसी एकादशी से चातुर्मास्य व्रत भी प्रारंभ होता है। इसी दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर तब तक शयन करते हैं, जब तक कार्तिक शुक्ल मास की एकादशी नहीं आ जाती है।
आषाढ़ के पहले दिन यदि जलवृष्टि हो जाए तो सोने में सुहागा समझिये। पानी बरसे या न बरसे लेकिन कुछ बूंदे तो खिरकना ही चाहिए, थोड़ी-बहुत मेघ गर्जना तो होना चाहिए, बिजली चमकना चाहिए, अन्यथा आषाढ़ का पहला दिन सुखद नहीं माना जाता। यदि आषाढ़ के पहले दिन आसमान में विचरते मेघ यदि कृपणता दिखाएं तो हमारा मन खिन्न हो जाता है। इसलिए मेघों को मनाइये। ये मेघ ही हमारी उन्नति, सुख के दूत हैं। आषाढ़ का महीना जून और जुलाई का संधि माह है। यानि गर्मी विदा ले रही है और वर्षा ऋतु आ रही है। इसके लिए तैयार रहिये । इस ऋतु का स्वागत कीजिये। अपने आस-पास नए पौधे रोपिये, जल संरक्षण कीजिये। देशाटन कीजिये। इसी तरह आषाढ़ आपके जीवन में खुशियों का आधार बनेगा। यदि आप आषाढ़ का महत्व न समझे तो आपको ही नुकसान होगा।
हकीकत ये है कि सियासी नजरिये से आषाढ़ का महीना देश के लिए शुभ नहीं है क्योंकि इस महीने में ही नीट घोटाला रोज नई करवटें बदल रहा है। इस महीने में ही देश में भादंसं का नाम बदल कर भारतीय न्याय संहिता हो रहा है। नई धाराएं लागू हो रही हैं। साक्ष्यों के लिए नए विधान लागू किए जा रहे हैं। इसके लाभ भी हैं और हानि भी। इन सबके प्रति जागरूक होना ही आषाढ़ का असल सन्देश है। आषाढ़ के महीने में दिल्ली की मंत्री आतिशी पानी के लिए अनशन पर है। वित्तमंत्री जीएसटी के जरिये जनता को दुहने के नए तरीके खोज रही हैं। संसद का नया सत्र भी शुरू हो रहा है। यहां भी बादल गरजेंगे और बरसेंगे। बहरहाल आप सभी को आषाढ़ के पहले दिन की शुभकामनाएं। उम्मीद है कि आपके यहां भी जलवृष्टि का शुभारम्भ हुआ होगा।