जन्म-मरण के बंधन से छूट जाने का ही नाम मोक्ष है : विहसंत सागर

पंच कल्याणक में महामुनिराज शांतिकुमार को हुआ मोक्ष

भिण्ड, 14 जून। मेडिटेशन गुरू उपाध्याय विहसंत सागर महाराज एवं मुनि विश्वसाम्य सागर महाराज ससंघ सानिध्य में 13 जून तक निराला रंग विहार मेला ग्राउण्ड में चल रहे 1008 मज्जिनेन्द्र जिनबिंब शांतिनाथ पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में के अंतिम दिन मंगलवार को सुबह भगवान का नित्याभिषेक, पूजन कार्यक्रम किया गया। तत्पश्चात पंच कल्याणक में महामुनिराज शांतिकुमार को मोक्ष की प्राप्ति हुई, जिसमें उनका शरीर कपूर की भांति देखते-देखते ही उड़ गया।
इस अवसर पर मेडिटेशन गुरू उपाध्याय विहसंत सागर महाराज ने प्रवचन में कहा कि शास्त्रों और पुराणों के अनुसार जीव का जन्म और मरण के बंधन से छूट जाना ही मोक्ष है। इसे विमोक्ष, विमुक्ति और मुक्ति भी कहा जाता है। भारतीय दर्शनों में कहा गया है कि जीव अज्ञान के कारण ही बार-बार जन्म लेता और मरता है। इस जन्म-मरण के बंधन से छूट जाने का ही नाम मोक्ष है। जब व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार हो जाता है तो वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा कि जैन धर्म में मोक्ष का अर्थ पुदगल कर्मों से मुक्ति है। जीव की आत्मा जन्म-मरण के चक्र से निकल जाती है और लोक के अग्र भाग सिद्ध शिला में विराजमान हो जाती है। सभी कर्मों का नाश करने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष के उपरांत आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख और अनंत शक्ति में आ जाती है। ऐसी आत्मा को सिद्ध कहते हंै। मोक्ष प्राप्ति हर जीव के लिए उच्चतम लक्ष्य माना गया है।
मोक्ष के पश्चात निकली गजरथ यात्रा
उपाध्याय विहसंत सागर महाराज के ससंघ सानिध्य में चल रहे पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतिम दिन मंगलवार को गजरथ यात्रा निकाली गई। जिसमें भगवान शांतिनाथ को गजरथ में बिठाकर निराला रंग विहार की तीन परिक्रमा लगाई गई। जिसमें तीन हाथी, दो रथ बैण्डबाजों के साथ हजारों श्रृद्धालु उस गजरथ यात्रा के साथ भक्ति करते हुए चल रहे थे। गजरथ के पश्चात भगवान के महामस्तकाभिषेक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
महाराज ससंघ का हुआ बरासों की ओर विहार
मेडिटेशन गुरू विहसंत सागर महाराज ससंघ का मंगल विहार बरासों के लिए हुआ। जो प्रतिमाएं पंच कल्यातणक में प्रतिष्ठित हुई है एवं पाषाण से भगवान बनी है, वह प्रतिमाएं बुधवार को सुबह बरासों जैन मन्दिर में विधि विधान से मुनिराज के सानिध्य में विराजमान की जाएंगी एवं शिखरों पर कलश भी स्थापित किए जाएंगे।