नाबालिग बालिका के साथ बलात्कार एवं हत्या करने वाले आरोपी को मृत्युदण्ड

सागर, 23 जुलाई। विशेष न्यायाधीश पॉक्सो एक्ट/ नवम अपर सत्र न्यायाधीश सागर के न्यायालय ने धारा 302 भादवि में आरोपी वीरेन्द्र पुत्र निरपत आदिवासी उम्र 24 वर्ष निवासी अंतर्गत थाना सानौधा, जिला सागर को मृत्युदण्ड से दण्डित किया है। प्रकरण में राज्य शासन की ओर से पैरवी उप-संचालक (अभियोजन) अनिल कुमार कटारे ने की।
लोक अभियोजन के मीडिया प्रभारी/ एडीपीओ सौरभ डिम्हा एवं सहायक मीडिया प्रभारी/ एडीपीओ अमित जैन ने प्रकरण की जानकारी देते हुए बताया कि सात अप्रैल 2019 को थाना प्रभारी सानौधा को ग्राम बोधा पिपरिया के पास जंगल में डेड बॉडी पड़ी होने की सूचना मिली। सूचना तस्दीक हेतु थाना प्रभारी द्वारा घटना स्थल पर जाकर देखा की मृतका की डेडबॉडी पड़ी हुई थी। मृतिका के पिता ने बताया कि उसकी लड़की है, जो एक दिन पहले अभियुक्त वीरेन्द्र के साथ साइकिल पर गई थी, लेकिन घर नहीं लौटी। सूचनाकर्ता द्वारा अभियुक्त और अभियोक्त्री को तलाश किया किंतु वे दोनों नहीं मिले, तभी गांव के निवासी मदन ने बताया कि परान नाला के पास उसकी बच्ची मरी हुई पड़ी है। सूचना प्राप्त होने पर मर्ग कायम किया गया। विवेचना के दौरान एफएसएल टीम के साथ डॉग स्क्वाड को घटना स्थल पर भेजा गया था। मर्ग जांच के दौरान मृतका की दादी और उसके पिता के कथन लेख किए गए तथा मृतका का पीएम किया गया था एवं धारा 376(2)(आई), 302 भादवि एवं 3/4 तथा 11/12 पॉक्सो एक्ट का प्रकरण पंजीबद्ध कर प्रथम सूचना रिपोर्ट लेखबद्ध की गई थी। आरोपी वीरेन्द्र को अभिरक्षा में लेकर पूछताछ करने पर उसने स्वीकार किया कि वह अभियोक्त्री को साइकिल पर बैठाकर ले गया था और साइकिल और कपड़े उसने घर पर छुपाकर रखे हैं। मेमोरेण्डम के आधार पर जब्ती एवं गिरफ्तारी की कार्रवाई हुई थी। प्रकरण में आरोपी का डीएनए टेस्ट कराया गया था। विवेचना पूर्ण कर अभियोगपत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया गया था।
प्रकरण में अभियोजन की ओर से 23 अभियोजन साक्षियों को परीक्षित कराया गया था। जिसमें अभियोजन द्वारा डॉग स्क्वाड की भी साक्ष्य कराई गई। विचारण में अभियोजन ने अपना मामला युक्तियुक्त संदेह से परे प्रमाणित किया। मामले में अभियोजन यह प्रमाणित करने में सफल रहा कि आरोपी अपनी जान-पहचान के नातेदार की पुत्री जिसकी उम्र 13 वर्ष से कम थी के साथ निर्जन स्थान नाले के पास जंगल के निकट ले जाकर उसके साथ कू्ररतापूर्वक बलात्कार किया गया और उसका मुंह तथा गला दबाकर निर्मम हत्या की गई। दण्ड के प्रश्न पर उभय पक्ष को सुना गया, जिसमें बचाव पक्ष के अधिवक्ता द्वारा तर्क किया गया कि आरोपी नवयुवक है, पूर्व की दोषसिद्धि का कोई इतिहास नहीं है। इस प्रकरण में क्षणिक मानसिक विकृति के चलते अपराध हुआ है यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी समाज के लिए खतरा हो सकता है।
अभियोजन की ओर से उप-संचालक अनिल कटारे ने तर्क रखा कि आरोपी का कृत्य विरलतम से विरल है और आरोपी मृत्युदण्ड का पात्र है, ऐसी स्थिति में यदि छोड़ा जाता है तो वह समाज के लिए खतरा होगा। आरोपी द्वारा जिस प्रकार से वर्वरता पूर्वक बालिका के साथ बलात्संग और हत्या का अपराध किया है व शारीरिक क्षतियां की हैं। किसी भी प्रकार से दया का पात्र नहीं है। यह भी तर्क दिया कि जहां ऐसे अपराध करने से समाज की पूरी आत्मा कांप गई है वहां पर समाज की न्याय के प्रति आस्था बनी रहे ऐसी स्थित में आरोपी को मृत्यु दण्ड दिया जाना आवश्यक है। और समर्थन में न्यायदृष्टांत प्रस्तुत किए गए।
न्यायालय ने अपने निर्णय में व्यक्त किया कि आरोपी ने अपनी काम पिपासा को शांत करने के दौरान अपनी निर्दयता से बालिका को न केवल अमानवीय पीड़ा पहुंचाई, बल्कि इस दौरान उसके जननांग एवं गले को भी चोटिल किया। यह सोच पाना मुमकिन नहीं है कि उस मासूम बच्ची ने कितनी पीड़ा सहन की होगी। आरोपी को विचारण के दौरान भी पक्षतावा न होना यह दर्शाता है कि बेहद ठण्डे दिमाग से कृत्य को अंजाम दिया गया। आरोपी के कृत्य से संपूर्ण समाज की सामूहिक आत्मा कांप गई है, जन आक्रोश भी हुए, वर्तमान में जिस प्रकार अबोध बच्चियों के साथ निर्ममता पूर्वक बलात्संग के मामले बढ़ रहे हैं, ऐसे मामलों में प्रभावी रोकथाम के लिए आवश्यक है कि ऐसे मामलों में आरोपियों को कठोर से कठोर दण्ड दिया जाए। अन्यथा एक दिन दहेज जैसी कुरीतियों के समान इस प्रकार के अपराध कन्याभ्रूण हत्याओं की नीव बनने लगेगी।
न्यायालय ने अपने निर्णय में व्यक्त किया कि व्यक्ति अपने रिश्तेदार का इस प्रकार की घटना को लेकर कैसे विश्वास करेगा, समाज में ऐसी घटनाओं को लेकर एक दूसरे के प्रति घृणा एवं अविश्वास का भाव उत्पन्न होगा। प्रकरण की गंभीरता और पीडि़ता की साथ की गई वीभत्सता को देखते हुए न्यायालय द्वारा अभियुक्त वीरेन्द्र आदिवासी को धारा 363 भादवि में सात वर्ष का सश्रम कारावास, धारा 366ए में 10 वर्ष का कठोर कारावास एवं 376(3), 376(2)(एफ) भादवि सहपठित धारा 6 पॉक्सो एक्ट में आजीवन कारावास तथा धारा 302 भादवि में मृत्युदण्ड की सजा से दण्डित किया है।