भाइयों के घर भले दूर हो जाएं, लेकिन मन में दूरियां बढ़ते ही परिवार रामायण से महाभारत में बदल जाता है : विहसंत सागर

सचिन तेंदुलकर मार्ग स्थित डीबी सिटी में हुए मुनिश्री के मंगल प्रवचन
शाम को पदा विहार कर थाटीपुर स्थित बलबंत नगर पहुंचे

ग्वालियर, 21 अप्रैल। भाईयों के घर अलग भले ही हो जाएं, चल जाएगा, मगर मन दूर नहीं होना चाहिए। मन की दूरियां बढ़ते ही परिवार की रामायण महाभारत में बदल जाती है। पेड़ की तरह जीवन में स्वभाव बनाएं। हवा जब चलती है तो डाली पते झुकजाते हैं, मगर तना तन कर खड़ा रहता हैं। इसी प्रकार परिवार समाज को एक रखने के लिए झुकना पड़े तो झुक जाएं, मगर संस्कार, सिद्धांतों को कभी न झुकने दें। यह विचार मेडिटेशन गुरु मुनि श्री विहसंत सागर महाराज ने गुरुवार को सचिन तेंदुलकर मार्ग स्थित डीबी सिटी में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। मुनि श्री विश्वसूर्य सागर महाराज ने भी संबोधित किया।
मुनि श्री विहसंत सागर महाराज ने कहा कि पानी गरम हो जाता है, मगर वह शीतलता के गुण को कभी नहीं छोड़ता है। ज्ञानी कहते हैं कि वाणी ऐसी बोलिए जिससे सामने वाले का और स्वयं का मन शीतल हो जाए। उन्होंने कहा कि नपा-तुला खाओ, नपा-तुला बोलो, जिससे जीवन अनमोल बन जाएगा।
जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि प्रवचन से पहले धर्मसभा का शुभांरभ संगीतकर शुभम जैन सैमी ने मंगल चरण गायकर किया। मुनिश्री के चरणों मे प्रदेश के बीज निगम के अध्यक्ष मुन्नलाल गोयल, गौरव जैन, सौरभ जैन, संजय जैन, दिनेश जैन व अन्य समाजजनों ने श्रीफल भेंटकर मंगल आशीर्वाद लिया। मुनिश्री ने शाम को डीबी सिटी से पद विहार कर थाटीपुर स्थित बलबंत नगर पहुंचे।

भौतिकता की चकाचौंध में मानव आत्मिक सुख से दूर

मुनि श्री विहसंत सागर महाराज ने कहा कि भौतिकता की चकाचौंध में व्यक्ति का आत्मिक सुख कहीं खो सा गया है। पहले व्यक्ति के पास भले ही भौतिक सुख संसाधन कम थे, लेकिन सुख और शांति थी। आज ज्यों-ज्यों भौतिक सुख-सुविधाएं बढ़ रहीं हैं, त्यों-त्यों उसकी सुख-शांति कम होती जा रही है। तनाव की प्रवृत्ति बढ़ रही है। आत्म की उन्नति से ही देश की उन्नति होती है। भौतिक सुख के पीछे लोग मानवता को भूल बैठे हैं। यह सुख क्षणभंगुर है। मानव शरीर इसलिए मिला है कि हम इस जीवन में अपने इष्ट को आत्मसात कर सकें।

मनुष्य को घमएड नहीं, सिर्फ कर्म करना चाहिए

मुनिश्री ने कहा कि मनुष्य को घमण्ड नहीं करना चाहिए, सिर्फ कर्म करना चाहिए, क्योंकि कर्म से ही व्यक्ति महान बनता है। इस संसार में दो मार्ग हैं, सुमार्ग एवं कुमार्ग। देवता सुमार्ग पर चलते हैं और राक्षस कुमार्ग पर। गलती हर इंसान से होती है। लेकिन भगवान सबको गलती सुधारने का मौका देते हैं, राम ने रावण को भी सुधरने का मौका दिया था। विभीषण ने रावण को बहुत समझाया, लेकिन रावण अपने घमण्ड के कारण नहीं सुधरा उसका पतन हो गया। इसलिए मनुष्य को घमण्ड नहीं करना चाहिए, क्योंकि जिसने घमण्ड किया उसका पतन निश्चित हैं।