आचार्यश्री ने पंच कल्याणक में प्रतिमा को सूर्यमंत्र देकर बनाया भगवान

समवशरण में निकली भगवान की दिव्या ध्वनि, संकायों का किया समाधान

भिण्ड, 22 फरवरी। भारत गौरव गणाचार्य विराग सागर महाराज के ससंघ 40 पिच्छियों के सानिध्य एवं प्रतिष्ठाचार्य संदीप शास्त्री द्वारा विधि विधान से नवीन त्रिमर्ति चौबीसी जिन मन्दिर मेहगांव का श्री 1008 मज्जिनेन्द्र आदिनाथ जिनबिंव पंच कल्याणक वेदी प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव, विश्वशांति महायज्ञ के अवसर पर गणाचार्य विराग सागर महाराज ने मंगल उद्बोधन में बताया कि महाराजा आदिनाथ ने जब दीक्षा ली थी, तो उन्होंंने बाहर की संपूर्ण धन संपत्ति छोड़ दी और अध्यात्म वैभव की खोज में ध्यानलीन हो गए।
आचार्यश्री ने कहा कि दीक्षा के बाद महामुनि आदिनाथ स्वामी ने छह माह के उपवास ग्रहण किए, तत्पश्चात सात माह नौ दिन तक महामुनि आदिनाथ स्वामी की विधि नहीं मिल सकी, अंत में वैशाख शुक्ला तृतीया के दिन हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस और सोम ने भक्तिपूर्वक भगवान का पारणा कराया। तीर्थंकर मुनिराज दीक्षा के बाद मौन रहते हैं, उनकी दिव्यध्वनि तभी खिरती है, जब उन्हें केवलज्ञान प्राप्तत हो जाता है। आज ज्ञान कलयाणक के अवसर पर भगवान की प्रथम दिव्य देशना खिरी थी भगवान के गणधर ने दिव्यआध्वलनि को आम लोगों तक प्रसारित किया। तीर्थंकर भगवान की दिव्य देशना समवशरण में विराजमान सभी प्राणियों को अपनी-अपनी भाषा में समझ आती है। भगवान की दिव्य आभामण्डल के परिवेश में आने वाले संपूर्ण प्राणी अपने बैर-भाव को छोड़कर शांत हो जाते है। समवशरण में विराजमान गणधर स्वझरूप गणाचार्य भगवन ने भक्तों के अनेकों प्रश्नों के समाधान किए, जिसे सुन भक्त हृदय आनंद विभोर हो उठे। इस अवसर पर पूर्व नप अध्यक्ष ममता भदौरिया एवं समाज के प्रबुद्धजन बड़ी संख्या में उपस्थित थे। गणाचार्य विराग सागर महाराज ने बताया कि 23 फरवरी को दोपहर दो बजे मौ के लिए विहार होगा।