नई सियासत में ठण्ड रखने की जरूरत

– राकेश अचल


देश में आठ अक्टूबर से नई सियासत शुरू हो गई है। चुनावी मानसून जा रहा है, सर्दी आ रही है। ऐसे में सभी दलों के नेताओं को ठण्ड रखने की जरूरत है, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि इस समय देश में किसी भी दल में एक भी ऐसा सर्वमान्य नेता नहीं है जो सभी से कह सके कि ‘ठण्ड रखो भाई ठण्ड’। देश की सियासत पर लिखना नंगी तलवार पर चलने जैसा है। जरा से फिसले की जख्मी हुए। सियासत की तलवार समस्यों का खत्मा करने के बजाय एक-दूसरे का खत्मा करने में लगी है। हर बार लगता है कि हम सुधर रहे हैं, लेकिन हार बार हमारे कयास गलत निकलते हैं। तब कहना पडता है- ‘रग-रग में नफरत घुल गई जमाने की, होड लगी है केवल गाल बजाने की’।
सब जानते हैं कि नफरत मनुष्यता की सबसे बडी दुश्मन है, लेकिन कौन है जो इससे बचा है। भारतीय राजनीति में तो नफरत अभी केवल एक दशक पुरानी है, दुनिया में जो बडी शक्तियां हैं उनके बीच तो ये नफरत सनातन है। इस नफरत को मुहब्बत से दूर किया जा सकता है, किन्तु नफरत के बाजार में मुहब्बत की दुकाने खुलते ही उनके ऊपर ताले जड दिए जाते हैं। इसके लिए जनता नहीं बल्कि हमारे नेता जिम्मेदार हैं। उनकी जबान और जुबान दोनों नफरत में डूब चुकी हैं। प्रकृति में होने बदलाव की खबर तो मौसम विभाग से मिल जाती है, लेकिन सियासत में होने वाले बदलाव की खबर देने वाला कोई विभाग अभी तकबना ही नहीं है। मौसम विभाग की खबर है कि राजधानी में शुक्रवार को तापमान में सीजन की पहली बडी गिरावट देखी गई। न सिर्फ न्यूनतम तापमान बल्कि अधिकतम तापमान में भी गिरावट आई। कई इलाकों में तापमान 20 डिग्री से भी नीचे पहुंच गया। इन इलाकों में हल्की ठण्ड का अहसास होने लगा है। आने वाले दिनों में ठण्ड और अधिक तेजी से बढ सकती है। उंचाई वाले पहाडी इलाकों से आ रही ठण्डी हवाओं की वजह से तापमान में यह गिरावट हो रही है।
देश की जनता ऐसी ही ठण्डक पूरे देश में देखना चाहती है। दुर्भाग्य ये है कि हरियाणा और जम्मू-काश्मीर विधानसभाओं के चुनावों के बाद देश की सियासत में गर्माहट बढ गई है, जबकि बढना चाहिए थी ठण्ड। पता नहीं क्यों कोई ठण्ड रखना ही नहीं चाहता। सबके दिमाग में गर्मी चढी हुई है। कोई इस गर्मी का इलाज करने और करवाने कि लिए राजी नहीं है। सियासी दिमागों की गर्मी का खमियाजा भुगतना पडता है अंतोगत्वा देश की जनता को। दिल्ली की तरह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का मौसम बदलने को तैयार ही नहीं है। यहां सर्दी कि बजाय गर्मी दस्तक देती दिखाई दे रही है। लखनऊ के गोमतीनगर स्थित जेपी एनआईसी जाकर जयप्रकाश नारायण को श्रद्धांजलि दिए जाने को लेकर शुरू हुआ सियासी बवाल आप सभी के सामने है। सुरक्षा कारणों का हवाला देकर जब यूपी की योगी सरकार ने शुक्रवार को लोक नायक जयप्रकाश नारायण की जयंती के मौके पर सपा मुखिया अखिलेश यादव को जेपी एनआईसी जाने से रोका तो अखिलेश ने अपने घर के आगे ही जेपी की मूर्ति पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। अखिलेश ने कहा कि समाजवादी लोग जेपीएनआईसी में जाकर जयप्रकाश नारायण को श्रद्धांजलि देने जाते थे, पता नहीं क्या कारण है कि सरकार हमें रोक रही है। उन्होंने कहा कि यह विकासवादी नहीं, विनाशकारी सरकार है। जबकि योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि राज्य सरकार अखिलेश यादव की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। बारिश का मौसम है और उस जगह की सफाई नहीं हुई है, इसलिए कुछ भी हो सकता है।
यूपी में इस गर्मी की वजह कुछ और है, दरअसल वहां विधानसभा की 10 सीटों के चुनाव होने है। देश में जब-जब चुनाव आते हैं तब-तब ठण्ड के बजाय गर्मी बढती है, भले ही चुनाव किसी भी मौसम में कराए जाएं। हरियाणा और जम्मू-काश्मीर के विधानसभा चुनाव और यूपी के विधानसभा उपचुनाव का सियासी महत्व एक जैसा है। इन विधानसभा चुनावों में हार-जीत का भाजपा और समाजवादी पार्टी की साख पर तो असर पडता है, साथ ही देश की समूची विपक्षी राजनीति भी इनसे प्रभावित होती है। यूपी आम चुनावों से ही सत्तारूढ दल को आतंकित करने लगा है। एक जमाने में जैसे बिहार ने लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोका था, वैसे ही जून में यूपी ने मोदी जी का रथ रोक दिया था, अन्यथा वे आसानी से 400 पर का नारा सार्थक कर सकते थे।
राजनीति के मिजाज में आज-कल पहलवानों का जलजला है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस की सरकार नहीं बनी, लेकिन ओलम्पियन पहलवान विनेश फोगट विधायक जरूर बन गई। यूपी में तो समाजवादी दल पहलवानों से भरा पडा है। इस दल के संस्थापक स्व. मुलायम सिंह स्वयं एक पहलवान थे। राजनीती में गौधन, गजधन, बाजधन और कालाधन के साथ ही बाहुबल भी बडे काम की चीज है। ये लोकसभा चुनावों में प्रमाणित हो चुका है। हमें उम्मीद करना चाहिए कि यूपी के विधानसभा उपचुनावों से सियासत में भी गुलाबी ठण्ड का असर दखेगा। हम और आप केवल उम्मीद कर सकते हैं, बांकी का काम तो नेताओं को ही करना है। ऐसे में हमें सियासी मौसम का अनुमान लगाने वाले रामविलास पासवान की बहुत याद आती है।
देश में जबसे नमकीन के पैकेट्स में ड्रग्स का कारोबार होने लगा है, तब से एक अलग तरह की गर्मी बढ रही है। ड्रग्स का कारोबार तिरुपति के विवादास्पद प्रसादम से भी बडा है। दिल्ली में पकडी गई ड्रग्स तो केवल आठ हजार करोड की है। हमारी सियासत और सत्ता को दर्ज के कारोबार से कभी कोई आपत्ति नहीं रही। यदि रही होती तो गुजरात में मुद्रा पोर्ट पर पकडी गई ड्रग्स की महाखेप के बाद कोई न कोई तो नपता? कोई नहीं नपा, इसीलिए ड्रग्स के कारोबारियों ने गुजरात से निकलकर भोपाल में अपना कारखाना खोल लिया। लगता है कि अब सियासत में नफरत का नशा ज्यादा असर नहीं कर रहा, इसीलिए अब ड्रग्स को प्राथमिकता दी जा रही है। बहरहाल बात मौसम की हो रही है। मैंने तो राजधानी में ठण्ड की दस्तक सुनते ही अपने गर्म कपडों को धूप दिखाना शुरू कर दी है। आप भी इस मौसम में एहतयात बरतिए, अन्यथा खांस, जुकाम, नजला हो सकता है। अपना ख्याल रखिए।