– राकेश अचल
जिस आदमी को आपने बुक्का फाडकर हंसते हुए संसद से सडकों तक, देश से दुनियाभर में देखा हो, उसे रोता हुआ देखना पडे तो दिल कांप जाता है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के एक्जिट पोल नतीजों को देखकर मुझे आशंका है कि कल तक हंसने वाले हमारे तमाम सुर्खरू चेहरे लटक न जाएं, रो न पडें। मुझसे ये मंजर देखा नहीं जाएगा। हकीकत ये है कि मैं मतदान के बाद किए जाने वाले एक्जिट पोल पर यकीन नहीं करता। यकीन तो राजनीतिक दल और नेता भी नहीं करते, लेकिन कभी-कभी ये पोल चौंका देते हैं। पिछले साल लगभग इन्हीं दिनों हुए राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ के विधानसभा चुनावों में तमाम एक्जिट पोल औंधे मुंह गिरे थे और तीनों राज्यों में हमारी अपनी भाजपा की सरकारें बन गई थीं। सर्वे करने वालों ने मतदाताओं के मन में तो झांकने की कोशिश की थी किन्तु मशीनरी के मन में झांकने में नाकाम रहे थे।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में एक चुनावों से पहले भाजपा का घोषित-अघोषित राज रहा है। हरियाणा में पहले खट्टर साहब थे, चुनावों से पहले सैनी आ गए। जम्मू-कश्मीर में पहले सत्यपाल मलिक राज्यपाल हुआ करते थे, बाद में मनोज सिन्हा बना दिए गया। सत्यपाल को सत्य बोलने की सजा मिली और मनोज सिन्हा को यूपी छोडने का ईनाम। लेकिन दोनों ने जम्मू-कश्मीर में भाजपा के लिए उसी तरह फील्डिंग की जैसे कि हरियाणा में चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्रियों ने की, अब अचानक दोनों जगह पासा पलटता नजर आ रहा है। ये किसी टोटके की वजह से हुआ या जनता इन सब हुक्मरानों से आजिज आ गई, ये कहना मुश्किल है।
आप मानें या न मानें, लेकिन मुझे लगता है कि अभी चुनाव नतीजे आने तक भाजपा हार नहीं मानेगी। उसे हार मानना भी नहीं चाहिए। उसने पहले तीन राज्यों में हार कहां मानी थी, जो अब मान ले! आपको याद है न आम चुनावों के बाद भले ही भाजपा 400 पार नहीं कर पाई थी। उसने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। भाजपा को लंगडा जनादेश मिला तो उसने आनन-फानन में जेडीयू और टीडीपी की बैशाखियां लगाना स्वीकार कर लिया था। मुझे आशंका है कि भाजपा हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में भी अंत तक अपने लिए बैशखियां तलाश करेगी। अब ये बात अलग है कि बैशखियां मिलना ही बंद हो जाएं।
पहले जम्मू-कश्मीर की ही बात कर लेते हैं, क्योंकि यहां दस साल बाद चुनाव हुए हैं और तब हुए हैं जब इस इलाके को राज्य का दर्जा हासिल नहीं है। केन्द्र की सरकार ने पांच साल पहले जम्मू-कश्मीर की जनता को सबक सीखने के लिए आतंकवाद रोकने के नाम पर न सिर्फ राज्य का दर्जा छीना था, न सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत मिले खास दर्जे को छीना था बल्कि उसके तीन टुकडे भी कर दिए थे और जाफरान के खेतों पर राज्यपाल के रूप में अपने पहरेदार बैठा दिए थे। जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन पहली बार नहीं लगा। पहले भी यहां नौ बार राष्ट्रपति शासन रह चुका है। सबसे ज्यादा राष्ट्रपति शासन तो कांग्रेस के जमाने में लगाया गया, लेकिन कांग्रेस ने कभी कश्मीरियों से उनका राज्य का दर्जा नहीं छीना। जम्मू-कश्मीर के महाराजा डॉ. कर्ण सिंह से लेकर मनोज सिन्हा तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे, लेकिन जैसा हाल अबकी बार है वैसा पहले कभी नहीं हुआ।
जम्मू-कश्मीर में भाजपा अलावा कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी समेत अन्य छोटे-छोटे दलों ने लोकतंत्र की बहाली के इस अभियान में हिस्सा लिया था। एक्जिट पोल के नतीजों के अनुसार, केन्द्र प्रशासित प्रदेश में बीजेपी को 27 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है। इसके अलावा कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन को 41 सीटें मिल सकती हैं। सबसे ज्यादा नुकसान महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को होने के आसार जताए गए हैं। पिछले चुनाव में पीडीपी को दोहरे अंकों में सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार पार्टी को महज सात सीटें मिलने के आसार हैं। पीडीपी से ज्यादा ताकतवर निर्दलीय हो सकते हैं, उनके खाते में 15 सीटें जाने की संभावना है। यहां पांच विधायकों के मनोनयन का अधिकार केन्द्र ने पहले ही राज्यपाल को दे दिया है।
अपने लम्बे, लचर अनुभव के आधार पर मैं एक ही बात कह सकता हूं कि जम्मू-कश्मीर में चाहे जिस गठबंधन की सरकार बने लेकिन मुख्यमंत्री फिलहाल डॉ. फारुख अब्दुल्ला ही होंगे। वे सत्ता में आने का अमरीका के राष्ट्रपति जो वायडन का कीर्तिमान भांग करेंगे। डॉ. फारुख 85 के हैं और फिट हैं। वे जितने हिन्दुओं में लोकप्रिय हैं उतने ही मुसलमानों में। वे जितने सहज कांग्रेस के साथ हो सकते हैं उतने ही भाजपा के साथ भी। वे हालत के मुताबिक ढलने में सिद्धहस्त हैं, इसलिए मैं उन्हें अभी से मुबारकबाद देकर फारिग होना चाहता हूं। टूटे हुए सूबे की जनता डॉ. फारुख के बेटे उम्र अब्दुल्ला को शायद बर्दाश्त नहीं करेगी।
अब आइए हरियाणा की बात करें। हरियाणा में असली महाभारत हुई है। यहां के एक्जिट पोल में सब एकराय हैं, चाहे वे सर्वेयर गोदी मीडिया के हों या दूसरे। सबका कहना है कि हरियाणा में कांग्रेस की जो हवा चली थी वो पहले आंधी बनी और बाद में सुनामी में तब्दील हो गई। अब मुमकिन है कि आठ अक्टूबर को हरियाणा में भाजपा का सूपडा साफ हो जाए। इंडिया टुडे-सी वोटर के सर्वे के मुताबिक, हरियाणा में कांग्रेस को 50 से 58 सीटें मिलने का अनुमान है। बीजेपी को 20 से 28 सीटें मिल सकती हैं।
दोनों विधानसभाओं के नतीजे आने के बाद ही असली तस्वीर सामने आएगी। इससे पहले मतगणना में भाजपा सरकार की मशीनरी कितना, क्या खेल कर पाएगी कहना कठिन है, क्योंकि अंतर बहुत ज्यादा माना जा रहा है, लेकिन ‘जानी न जाए निसाचर माया’। भाजपा कब कहां ऑपरेशन लोट्स चला दे, कब कहां नवनिर्वाचित छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों को अपनी अदृश्य चुंबक से अपनी और खींच ले, कोई जानता है क्या? वैसे इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे जहां देश में लड्डुयों के बजाय जलेबियों का भविष्य उज्ज्वल करेंगे, वहीं भाजपा के लिए हर जगह वैशखियों की जरूरत को बढने वाले होंगे। जब तक नतीजे आएंगे तब तक आइये मिलकर गाते हैं- ‘इबतदाये इश्क में हम सारी रात जागे, अल्ला जाने क्या होगा आगे? आपको यदि ये गाना पसंद न हो तो आप- देख सकता हूं मै कुछ भी होते हुए। नहीं मैं, नहीं देख सकता तुझे रोते हुए’ भी गा सकते हैं।