– राकेश अचल
अदावत की राजनीति के दौर में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव का मजाक ताजा हवा की तरह है। राजनीती में मसखरापन न हो तो राजनीति नीरस हो जाती है। हाल की राजनीती में जब से लालू यादव निष्क्रिय हुए हैं तब से कोई ऐसा जुमला सुनने को नहीं मिलता की पेट हंसी के मारे फूलने लगे। अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मजाक में कहा है कि यदि आपको बुलडोजर से इतना ही प्यार है तो आप इसे चुनाव चिन्ह बनाकर चुनाव क्यों नहीं लड जाते?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सपा की सरकार बनने पर बुलडोजर का रुख गोरखपुर की तरफ मोडने का बयान देने वाले सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव पर बुधवार को तंज कसा और कहा कि बुलडोजर चलाने के लिए ‘दिल और दिमाग’ की जरूरत होती है। अब अखिलेश यादव ने इस पर पलटवार किया है। अखिलेश ने कहा कि बुलडोजर में दिमाग नहीं बल्कि स्टीयरिंग होता है, उप्र की जनता कब किसका स्टीयरिंग बदल दे, कुछ पता नहीं। अखिलेश ने अपने एक ट्वीट में कहा, ‘अगर आप और आपका बुलडोजर इतना ही सफल है तो अलग पार्टी बनाकर ‘बुलडोजर’ चुनाव चिन्ह लेकर चुनाव लड जाइए। आपका भ्रम भी टूट जाएगा और घमण्ड भी। वैसे भी आपके जो हालात हैं, उसमें आप भाजपा में होते हुए भी ‘नहीं’ के बराबर ही हैं। अलग पार्टी तो आपको आज नहीं तो कल बनानी ही पडेगी।
अखिलेश और योगी के बीच इस तरह की चोंचें अक्सर लडती रहती हैं। अखिलेश को मजाक करना विरासत में मिला है। उनके पिता नेताजी मुलायम सिंह अक्सर मजाक-मजाक में कुछ ऐसी बातें कह जाते थे, जो हंसी का फब्बारा छुडवा देती थीं। पिछले से पिछले दशक में राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव तो अपने मजाकिया अंदाज के लिए मशहूर थे है। उनके मजाक से शायद ही कोई बचा हो। श्रीमती सोनिया गांधी हों या अटल बिहारी बाजपेयी सभी लालूजी की मजाकिया प्रवृत्ति के कायल रहे हैं। मजाक से राजनीति में जबरन का भारीपन कम हो जाता है और एक स्वस्थ्य वातावरण बनता है।
बिहार की राजनीति में मजाक करने की प्रवृत्ति रही है। नीतीश बाबू भी कम मजाकिया नहीं है। लालूजी के बेटे तेजस्वी को भी मजाक करना आता है। राहुल गांधी भी जब तब मजाक कर ही लेते हैं, मजाकिया नेताओं में मुझे कल्पनाथ राय हमेशा याद आते हैं, पीलू मोदी को जिन्होंने देखा हो वे जानते होंगे कि वे कितने बडे मजाकिया थे। कुछ नेताओं का कद-काठी और पहनावा ही आपको हंसने के लिए विवश कर देता है तो कुछ नेताओं का बुझा और लटका चेहरा देखकर आपका मूड पूरे दिन के लिए खराब हो जाता है। कुछ नेता केवल कैमरे के सामने ही मुस्कराते हैं। सबकी अपनी अपनी आदत होती है। राजनीती में मजाकिया नेताओं की वजह से ही राजनीयति रंगीन बनी रहती है। मुझे याद है कि मजाकिया, अजीबो-गरीब होने के कारण जनता में कम समय में लोकप्रिय हुए। मजाक को केन्द्र में रखकर अतीत में ऐसे ही नारे बने जिन्होंने राजनीतिक दलों के भाग्य को बदल दिया और लोगों ने हंसते-हंसते पार्टी को वोट दिया।
जनसंघ को वोट दो, बीडी पीना छोड दो।
बीडी में तंबाकू है, कांग्रेस-वाला डाकू है।।
हमारे ग्वालियर के अटल बिहारी बाजपेयी का तो हर अंदाज आपको हंसने पर मजबूर कर देता था। उनके जमाने में ही एक नारा उछाला था- ये देखो इन्दिरा का खेल, खा गई शक्कर, पी गई तेल। श्रीमती इन्दिरा गांधी जब चिकमंगलूर से चुनाव लड रही थीं उस समय कांग्रेसी कवि श्रीकांत वर्मा ने एक मजाकिया नारा गधा था- एक शेरनी, सौ लुहार, चिकमंगलुर भाई चिकमंगलुर। लालूजी को लेकर गढा गया मजाकिया नारा- ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू’ लोगों को आजतक याद है। लोकसभा अध्यक्ष के रूप में पीए संगमा का मजाकिया मूड कौन भूल सकता है? राज्यसभा के सभापति जगदीप धनकड को भी मैंने अक्सर मजाकिया मूड में देखा है।
भारत की राजनीती में जब-जब मजाक गायब हुआ है तब-तब राजनीति बेमजा हुई है। आज की राजनीती में अदावत के बढने की असल वजह मजाक का गायब होना ही है। पिछले दस साल से देश की सत्ता चलने वाली भाजपा की मौजूदा पीढी में तो मजाक करने वाले नेता हैं ही नहीं। वे मजाक के नाम पर विदोषक बन जाते हैं या उनका मजाक शालीनता की सारी सीमाएं लांघ चुका होता है, हमारी राजनीती से मजाक के गायब होने का ही नतीजा है कि पिछले कार्यकाल में दोनों सदनों से सांसदों के निलंबन का एक नया कीर्तिमान बना।