रिश्वत लेने वाले आरोपी को चार वर्ष का सश्रम कारावास

– आंगनबाडी में दीदी का पद दिलाने की एवज में ली थी रिश्वत

सागर, 24 अगस्त। विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) जिला सागर आलोक मिश्रा के न्यायालय ने आंगनबाडी में दीदी का पद दिलाने की एवज में रिश्वत लेने वाले आरोपी विजय कुमार चौधरी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 के तहत तीन वर्ष सश्रम कारावास एवं पांच हजार रुपए अर्थदण्ड, धारा 13(1)(बी), सपठित धारा 13(2) के अंतर्गत चार वर्ष सश्रम कारावास एवं पांच हजार रुपए जुर्माने की सजा से दण्डित किया है। मामले की पैरवी प्रभारी उपसंचालक (अभियोजन) धर्मेन्द्र सिंह तारन के मार्गदर्शन में सहायक जिला अभियोजन अधिकारी लक्ष्मी प्रसाद कुर्मी ने की।
जिला लोक अभियोजन सागर के मीडिया प्रभारी के अनुसार घटना संक्षिप्त में इस प्रकार है कि छह अक्टूबर 2017 को आवेदक विवेक तिवारी ने पुलिस अधीक्षक लोकायुक्त कार्यालय सागर को संबोधित एक लिखित शिकायती आवेदन इस आशय का दिया कि उसकी पत्नी ने नयाखेडा आंगनबाडी में दीदी के पद के लिए 20 दिन पहले परियोजना 02 एकीकृत बाल विकास सेवा कार्यालय सागर में आवेदन किया था, जहां आवेदक ने कार्यरत अधिकारी विजय बाबू से संपर्क किया तो उसकी पत्नी को दीदी का पद दिलाने हेतु दो हजार रुपए रिश्वत की मांग की, वह अभियुक्त को रिश्वत नहीं देना चाहता, बल्कि रंगे हाथों पकडवाना चाहता है। आवेदन-पत्र के साथ आवेदक की पत्नी का सहमति पत्र भी संलग्न किया गया। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विपुस्था लोकायुक्त कार्यालय सागर ने उक्त आवेदन पर अग्रिम कार्रवाई हेतु निरीक्षक उपमा सिंह को अधिकृत किया गया। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकार्डर दिया गया, इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकार्ड करने हेतु निर्देशित किया, तत्पश्चात आवेदक द्वारा मांग वार्ता रिकार्ड की गई एवं अन्य तकनीकि कार्रवाईयां कर ट्रेप कार्रवाई आयोजित की गई। नियत दिनाक को आवेदक द्वारा अभियुक्त को राशि दी गई व थोडी देर बाद आवेदक का इशारा मिलने पर ट्रेपदल के सभी सदस्य कार्यालय में दाखिल हुए तथा आवेदक द्वारा हाथ के इशारे से बताए जाने पर प्रथम कक्ष/ कंप्यूटर कक्ष में कुर्सी पर बैठे व्यक्ति अर्थात अभियुक्त विजय चौधरी को अपने घेरे में लिया। निरीक्षक उपमा सिंह ने अपना व ट्रेपदल का परिचय देकर अभियुक्त का परिचय प्राप्त करने के उपरांत, अभियुक्त से रिश्वत राशि के बारे में पूछे जाने पर उसने रिश्वत राशि आवेदक से लेकर कार्यालय के कंप्यूटर कक्ष में रखे रजिस्टर में रख देना बताया। तत्पश्चात अग्रिम कार्रवाई प्रारंभ की गई। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किए गए, घटना स्थल का नक्शा मौका तैयार किया गया, अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 एवं धारा 13(1)(डी), सपठित धारा 13(2) एवं 420 भादंवि का अपराध आरोपी के विरुद्ध दर्ज कर विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेश किया। जहां विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया। विचारण उपरांत विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम सागर आलोक मिश्रा के न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुए उपरोक्त सजा से दण्डित किया है।