– राकेश अचल
‘कपोत’ एक पुराना शब्द है। आज-कल कम ही प्रचलन में है, क्योंकि 176 साल पुराना ये डाकिया अब किसी काम का नहीं रहा। अब न इसे उडाने वाले हाथ रहे और न इसे पालने वाले लोग। अब ये कपोत यानि आपका कबूतर बहुमंजिला इमारतों के लिए सबसे बडी समस्या बन गया है। बावजूद इसके ये आज भी प्रासंगिक बना हुआ है, क्योंकि आज भी दुनिया में अशांति है। जहां अशांति होती है वहां या तो सत्ताधीशों के हाथों के तोते उडते हैं या वे शांति स्थापना के लिए श्वेत कपोत उडा रहे होते हैं।
इस समय दुनिया में एक दर्जन से अधिक छोटे-बडे युद्ध चल रहे हैं। इनमें सबसे चर्चित युद्ध रूस और यूक्रेन का है। रूस-यूक्रेन युद्ध को लंबा अरसा हो गया है। रूस ने 24 फरवरी 2024 को यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने का आक्रमण शुरू किया था। इसमें अब तक 40 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं और 60 लाख देश छोडकर जा चुके हैं। बडे पैमाने पर बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य क्लीनिक व स्कूल क्षतिग्रस्त हुए हैं। इस युद्ध को समाप्त करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी सतत प्रयत्नशील हैं, हालांकि वे अपने देश में मणिपुर जैसे छोटे राज्य को जलने से नहीं बचा पाए हैं।
भारत शांति का पक्षधर भी है और प्रवक्ता भी। स्वतंत्रता के पहले से ही भारत इस काम में लगा है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने शांति की जो अलख जलाई थी उसे मोदी जी भी जलाये रखने की कोशिश कर रहे हैं, भले ही उनकी पार्टी और खुद वे नेहरू के कामकाज से इत्तेफाक नहीं रखते और संसद से लेकर सडक तक नेहरू को ही नहीं बल्कि उनके वंशजों को गरियाते रहते हैं। उनके सिरों पर नाकामयाबी का ठीकरा फोडते रहते हैं। लेकिन मोदी जी आज विश्व मंच पर सक्रिय हैं, शांति स्थापना के लिए सक्रिय हैं। इसलिए उनकी सराहना की जाना चाहिए। मोदी जी को इन शांति प्रयासों के पहले ये भी याद रखना चाहिए कि किसी भी शुभ काम का श्रीगणेश अपने घर से किया जाता है। जो उन्होंने नहीं किया।
रूस-यूक्रेन युद्ध में कौन दोषी है और कौन नहीं, इसकी विवेचना की जरूरत नहीं है। पूरी दुनिया आक्रांता को पहचानता है। इस युद्ध में देश की तमाम महाशक्तियां विभाजित नजर आ रही हैं, एक भारत है जो तटस्थ है और दोनों पक्षों के संपर्क में है। रूस ने भी भारत को आश्स्वस्त किया है कि मोदी जी जब तक रूस की धरती पर हैं, तब तक रूस यूक्रेन पर हमला नहीं करेगा। अब मोदी जी तो एक-दो दिन में वापस लौट आएंगे। इससे पहले यदि दोनों पक्षों में समझौता न हुआ तो रूस के हमले दोबारा शुरू हो जाएंगे। सवाल ये है कि क्या भारत और भारत के प्रधानमंत्री आज स्थिति में हैं कि वे रूस को हमला करने से रोक लें?
युद्ध अपराध है और मानवता के लिए सबसे बडा खतरा भी। दुनिया ने दो विश्व युद्ध देख लिए हैं और तीसरे के मुहाने पर खडी है। जिस तरह से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मारकाट मची है उसे देखते हुए नहीं लगता कि तीसरा विश्व युद्ध बहुत दिनों तक रोका जा सकेगा। क्योंकि आज विश्व फलक पर जो नेता हैं उनमें से अधिकांश युद्ध प्रेमी हैं। खुद भारत ने अपने पडौसी पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक कर अपना युद्ध प्रेम दिखा दिया था। लेकिन युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। भारत जो नसीहत रूस और यूक्रेन को दे रहा है उस पर भारत को पहले अमल करना चाहिए। आज भारत का एक भी पडौसी न मित्र है और न शुभचिंतक। मालदीव जैसे छोटे राष्ट्र तक पिछले दिनों भारत पर आंखें तरेर चुके हैं।
बहरहाल रूस के राष्ट्रपति और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की कल की तरह आज भी आमने-सामने खडे है। भारत बिना किसी के आमंत्रण के दोनों के बीच खडा हो गया है। यदि भारत इस युद्ध को समाप्त करने में कामयाब हो जाता है तो ये एक बडी उपलब्धि होगी। भारत के लिए भी और महामना मोदी के लिए भी। इसके लिए उन्हें शांति का नोबुल पुरस्कार देने कि लिए अभियान भी चलाया जा सकता है। लेकिन यदि भारत अपनी कोशिश में कामयाब नहीं होता तो ये एक बडी विफलता भी होगी, भारत की भी और मोदी जी की भी। तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने मोदी जी पहले के मुकाबले बहुत कमजोर हैं। उनकी सरकार बैशाखियों पर टिकी है। उनकी अपनी और उनकी पार्टी की साख संकट में है। उनकी सरकार रूस-यूक्रेन युद्ध के रुकने से पहले या बाद में कभी भी गिर सकती है। उनकी सरकार को हाल ही में चार बडे कदम वापस लेना पडे हैं।
रूस के भारत वंशियों के बीच महामना मोदी जी ने जहां खुद को महात्मा गांधी के चरणों में नतमस्तक किया, वहीं अपनी ये इच्छा भी जाहिर कर दी कि लोग चाहें तो उन्हें भी ‘बापू’ कहकर संबोधित कर सकते हैं। सवाल ये है कि वे जिन पुरखों को गरियाते हैं। जिन्हें देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार मानते हैं, उनके नाम से खुद को संबोधित क्यों कराना चाहते हैं? सवाल ये भी है कि क्या कोई व्यक्ति दस साल सत्ता में रहने भर से किसी देश का बापू बन सकता है? बापू बनने के लिए महात्मा गांधी बनना पडता है। लाठियां खाना पडती हैं। जेलों में रहना पडता है। फकीराना जीवन जीना पडता है। एक लम्बे संघर्ष के दौर का सामना करना पडता है। क्या महामना ये सब कर चुके हैं?
गोया कि मैं अपने देश से बहुत प्रेम करता हूं, इसलिए मोदी जी का भी सम्मान करता हूं, क्योंकि आखिर वे हैं तो हमारे प्रधानमंत्री। यदि मोदी जी की आत्मा को उन्हें बापू कहने से संतोष मिलता है तो कम से कम मैं तो उन्हें मोदी बापू कह सकता हूं। वे 75 साल के होने को हैं। वे यदि सामान्य गृहस्थ जीवन में होते तो वे कम से कम अपने घर के बापू तो बन ही चुके होते। उनके आंगन में भी उन्हें बापू पुकारने वाले धमाचौकडी कर रहे होते। लेकिन वे तो रणछोड निकले, घर-त्यागी निकले। हमारे असली बापू ने तो बिना गृह-त्यागी बने ही आजादी के आंदोलन का नेतृत्व किया। जाहिर है कि घर और घरवाले कोई बाधा नहीं होते, वे तो सहायक होते हैं।
बहरहाल आज लम्बी-चौडी बात करने का मन नहीं है। इसलिए यहीं रुकते हैं। कामना करते हैं रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के रुकने की। लेकिन हमें ये देखना ही होगा की मोदी जी के हाथ से कपोत उडते हैं या तोते? दोनों के उडने का मतलब अलग-अलग है। इसलिए आप सब आसमान पर नजर रखिये। देखिये कि कौन सा परिंदा उडता दिखाई दे रहा है। श्वेत या हरा? अभी भगवा परिंदों की तो बात ही नहीं हो रही।