– राकेश अचल
राज्यसभा में पांचवीं बार पहुंची सातवें दशक की गुड्डी’ यानि आज की जया बच्चन और राज्यसभा के सभापति जगदीप घनकड के बीच हुए वाक्य युद्ध के बाद लगता है कि राजनीति में कडवाहट का नया अध्याय शुरू होगा। इस नए अध्याय में जया बच्चन का तो कुछ नहीं बिगडेगा लेकिन जगदीप धनकड हमेशा के लिए एक नाकाम सभापति के रूप में दर्ज हो जाएंगे, भले ही विपक्ष द्वारा लाया जाने वाला अविश्वास प्रस्ताव सदन में पारित हो या न हो।
संसद के उच्च सदन के सभापति लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला की ही तरह कठपुतली साबित हुए हैं। दोनों अपने आपको भाजपा कार्यकता होने की ग्रंथि से मुक्त नहीं हो पाए। काश यदि ऐसा हो जाता दो सदन को और देश को ऐसे बुरे दिन नहीं देखना पडते। समस्या ये है कि हम धनकड का समर्थन करें या जाया बच्चन का? जया बच्चन अपनी जगह सही हैं और धनकड को तो सही होना ही है, क्योंकि वे सभापति हैं। लेकिन दुनियाभर के देहभाषा विशेषज्ञ बता सकते हैं कि राज्यसभा में इस कडवाहट के लिए जिम्मेदार कौन है?
राज्यसभा के सभापति जगदीप घनकड ने घाट-घाट का पानी पिया है, लेकिन वे उम्र और अनुभव में जया बच्चन से 19 ही बैठते हैं। जगदीप जी, जया से तीन साल छोटे हैं। वे केन्द्र में एक बार मंत्री रहे हैं, लेकिन जया बच्चन राज्यसभा में पांचवीं बार आई हैं। धनकड साहब 1978 से सार्वजनिक जीवन में हैं और जया बच्चन 1968 से। मैंने उनकी पहली फिल्म ‘महानगर’ भी देखी है और आखरी फिल्मी ड्रामा ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ भी देखी है। जब मैं युवा था तब मेरी निकटता एक पत्रकार के रूप में जया बच्चन के पिता स्व. तरुण भादुडी से भी थी। वे बताया करते थे कि जया बचपन से तुनक मिजाज रही है, लेकिन लडती हमेशा मुद्दों को लेकर है।
धनकड को मैं एक केन्द्रीय मंत्री के रूप में याद नहीं कर पा रहा हूं। वे 1990-91 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की अल्पजीवी सरकार के संसदीय कार्यमंत्री थे। धनकड की असल पहचान पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बनने के बाद हुई। राज्यपाल के रूप में जगदीप धनकड ने जिस तरह से भाजपा कार्यकर्ता के रूप में बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी से टक्कर ली, उसने उन्हें सुर्खियों में ला दिया। बंगाल में उनकी कोशिशों के बावजूद ममता सत्ताच्युत नहीं हो पाईं, लेकिन धनकड की ईनाम स्वरूप देश का उपराष्ट्रपति बना दिया गया। इस नाते वे राज्यसभा के सभापति बन गए, लेकिन वे ये याद नहीं रख पाए कि एक राज्यपाल की भूमिका और एक सभापपति की भूमिका में जमीन-आसमान का भेद है। धनकड को मैं लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला के मुकाबले ज्यादा योग्य मानता हूं। ये मेरी निजी राय है। वे वाकपटु हैं, विनोदी हैं, सहनशील हैं, लेकिन बिरला और धनकड में जो समानता है वो ये है कि दोनों अपने आपको मोशा की जोडी का वफादार साबित करने की होड में स्तरहीन साबित हो गए हैं।
शुक्रवार को राज्यसभा में धनकड और जया बच्चन की तकरार जिसने भी देखी उसे ये समझने में कोई दिक्कत नहीं हुई होगी कि धनकड आपे से बाहर थे। जया बच्चन ने जो मुद्दा उठाया था उसे सहजता से सुलटाया जा सकता था। उसके लिए किसी कानून की नहीं बल्कि हिकमत अमली की जरूरत थी। लेकिन धनकड लगातार इस बात पर अडे रहे कि जया बच्चन का जो नाम रिकार्ड में दर्ज है वे उसी का उल्लेख कर रहे हैं। सवाल ये है कि क्या वे ऐसा सबके साथ करते हैं? क्या कभी उन्होंने नरेन्द्र मोदी को रिकार्ड में दर्ज नरेन्द्र दामोदर दास मोदी या गृहमंत्री अमित शाह को उनके पूरे नाम से संबोधित किया? शायद नहीं किया और कर भी नहीं सकते, क्योंकि वे सरकार के एजेंट के रूप में काम करते दिखाई देते हैं। देश ने उन्हें सभापति के पद पर बैठकर आरएसएस का समर्थन करते हुए देखा है। धनकड जितने अविश्वसनीय बंगाल के राज्यपाल के रूप में थे, उतने ही अविश्वसनीय राज्यसभा के सभापति के रूप में भी हैं।
हमारे यहां कहते हैं कि ‘अभी भी बेटी बाप की है’ अर्थात यदि धनकड अपने व्यवहार के लिए खेद प्रकट कर दें तो मुमकिन है कि विपक्ष उन्हें माफ कर दे, लेकिन यदि वे इतना भी नहीं करते तो तय है कि विपक्ष उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है। सत्ता पक्ष धनकड को बचाने के लिए विपक्ष के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा है। लेकिन ये समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि इससे कटुता और बढेगी और भविष्य में सदन को चलना मुश्किल हो जाएगा। धनकड के व्यवहार को लेकर जया बच्चन इस बार अकेली नहीं हैं। समूचा विपक्ष उनके समर्थन में सदन का बहिष्कार कर चुका है। जया बच्चन ने भी साफ कह दिया है कि इस मुद्दे पर वे निजी रूप से कोई फैसला नहीं लेंगी, जो करना है विपक्ष को करना है। विपक्ष के नेता जो कहेंगे सो होगा। यानि पेंच उलझ गया है।
आज और कल का दिन इस मुद्दे का सम्यक हल निकालने के लिए सत्तापक्ष और खुद धनकड के पास है। धनकड को समझ लेना चाहिए कि अकड से काम नहीं चलेगा। उन्हें इस मामले में अपना आदर्श पूर्व सभापति स्व. डॉ. शंकरदयाल शर्मा के व्यवहार को बना लेना चाहिए। अन्यथा किरकिरी धनकड की ही होने वाली है। जया बच्चन का कुछ नहीं बिगडने वाला। इस मामले में भाजपा के नेतृत्व से कोई अपेक्षा करने का कोई अर्थ नहीं है। देखिये राज्यसभा में कटुता की बेल मुरझाती है या और फैलती है? मेरी मुश्किल है कि मैं न जया बच्चन को सराहना चाहता हूं और न धनकड साहब को। जया जी को भी समझना चाहिए की वे 1971 वाली जया नहीं हैं। वे 2024 की जया बच्चन हैं।