– राकेश अचल
आषाढ निकल गया, सावन शुरू हो गया है। वो ही सावन जो लाखों का होता है और दो टकियों की नौकरी के फेर में बर्बाद हो जाता है। इस सावन का पहला सोमवार भोले बाबा के नाम है। मंगलवार इस देश की बैशाखा सरकार के नाम होगा, क्योंकि मंगलवार को सरकार देश की जनता के लिए एक लंगडा बजट लेकर आने वाली है। मेरी पशोपेश ये है कि मैं लिखूं तो आखिर किस मुद्दे पर लिखूं? क्योंकि हमारे देश में मुद्दे घडी-घडी बदलते हैं। जब तक एक मुद्दे के बारे में सोचो तब तक दूसरा मुद्दा सिर तानकर खडा हो जाता है।
उत्तर प्रदेश में भोला भंडारियों के लिए सरकार के तुगलगी फरमान के बारे में लिख चुका हूं। सरकार को सामाजिक समरसता से ज्यादा फिक्र भोले के भक्तों का धर्म भ्रष्ट होने की थी, सो मुजफ्फर नगर के सभी रेहडी, ठेले वालों तक को अपने-अपने नाम लिखकर टांगने का फरमान दे दिया गया। इस मामले में चूंकि सुप्रीम कोर्ट तक बात पहुंच चुकी है, इसलिए मैंने इस मुद्दे को छोड दिया है। इस मुद्दे पर अब फैसला या तो सुप्रीम कोर्ट करेगा या फिर आने वाले दिनों में सूबे की जनता। जनता को आने वाले दिनों में विधानसभा की 10 सीटों के लिए होने वाले उप चुनावों में मतदान करना है।
आपको पता है कि भोले बाबा के सामने शायद हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा कभी आया ही नहीं। बेचारे पहली बार फंसे हैं इस फेर में। वो भी योगी आदित्यनाथ की वजह से। योगी जी भी भोले बाबा के भक्त हैं और वे भी जो आज-कल मुस्लिम विरोधी कहे जाते हैं। देखना ये है कि योगी जी कितने दिन भोले के भक्तों को मुसलमानों की दुकानों से दूर रख पाते हैं? कितने दिन हिन्दू मुसलमान के यहां पंचर ठीक करने नहीं जाते? कितने दिनों मुसलमानों के ठेलों से फल, साग-सब्जी नहीं खरीदते? कितने दिन उनसे बैल्डिंग नहीं कराते? कितने दिन मुसलमानों से दूसरी सेवाएं नहीं लेते?
भोले बाबा को छोडिये अब अमित शाह साहब की बात कर लें। वे भी आज-कल खूब बम-बम कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद उनका बमकना कुछ ज्यादा ही बढ गया है। अपने बाप की उम्र के शरद पंवार पर वे खूब बमके, उन्हें भ्रष्टाचार का सरदार बता दिया। मजबूरी कुछ भी करा सकती है आदमी से। महाराष्ट्र जीतने के लिए शाह साहब सब कुछ हारने के लिए तैयार दिखाई दे रहे हैं। वे कभी अपनी पार्टी के पुराने साथी उद्धव ठाकरे पर बमकते हैं तो कभी शरद पंवार पर। कांग्रेस का भूत तो उनके सिर से उतरने का नाम ही नहीं लेता। आदमी दूध से जलने के बाद छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है, लेकिन बन्दा है कि सब कुछ गर्मागर्म पी लेना चाहता है, भले ही जबान और जुबान दोनों जलकर राख हो जाएं।
बमकने के मामले में इंडिया गठबंधन वाले भी कम नहीं है। ममता दीदी को ही लीजिए। उन्होंने बमकते हुए कह दिया है कि बांग्लादेश से जो भी शरणार्थी आएंगे उन्हें उनकी सरकार पूरा संरक्षण देगी। शरणार्थियों को शरण देना हमारे देश की सनातन नीति है, लेकिन आज-कल की सरकार की विदेश नीति से मेल नहीं खाती। सनातन कहानियों में त्रेता में राम ने बिभीषण को शरण दी और आज हम हैं कि किसी को शरण नहीं देना चाहते। और देना भी चाहते हैं तो पहले उनकी पूंछ उठाकर देखना चाहते हैं कि वे हिन्दू हैं या नहीं? जाहिर है कि शरणार्थियों के मामले में हमारे यहां देश और राजनीतिक दल एकराय नहीं हैं। हो भी नहीं सकते। होना भी नहीं चाहिए।
इधर आप आज भोले बाबा पर बेलपत्र चढाकर फारिग होंगे उधर कल 23 जुलाई को केन्द्र सरकार अपना सीतारामी बजट लेकर आपके ऊपर बमकेगी। आप बजट में राहत की उम्मीद लगाकर बैठे हैं। आपको लगता है कि सरकार का बजट बजटपूर्व की हलुवा सेरेमनी जैसा मीठा होगा, लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं है। सरकार आपकी नहीं अडानी और अम्बानी की चिंता पहले करेगी। करना भी चाहिए। आप केवल वोट देते हैं और अडानी-अम्बानी टेम्पो में भर-भरकर नोट देते हैं राजनीतिक दलों को। ये बात हम नहीं कहते, हमारे भाग्यविधाता, अविनाशी प्रधानमंत्री जीने खुद कही है। आपको यदि उनके सूत्रवाक्य सुनना हों तो गूगल खंगाल लीजिये। आज-कल आप जो भी अच्छा-बुरा बोलते हैं वो सब ‘गूगल अक्षय पात्र’ में संग्रहित हो जाता है।
देश में सर्वाधिक बमकने वाले दिल्ली के मुख्यमत्री अरविन्द केजरीवाल का बमकना आज-कल कम हो गया है, लेकिन उनकी पार्टी बमक रही है। आप का कहना है कि कोई है जो केजरीवाल को हलाल करने की कोशिश कर रहा है। केजरीवाल का स्वास्थ्य खराब है। उनका वजन गिर रहा है। लेकिन सरकार और सरकारी पार्टी इसे केजरीवाल का नाटक बता रही है। ‘खग जाने खग की भाषा’। केजरीवाल आखिर एक जमाने में सरकारी पार्टी की ‘बी’ टीम की तरह काम करते थे। वे आज-कल आईएनडीआईए गठबंधन में हों, लेकिन हैं तो आधे-अधूरे ही। भगवान भोलेनाथ उनकी रक्षा करें।
एक हकीकत ये है कि 2024 के आम चुनाव तक देश राम भरोसे चल रहा था, लेकिन चुनाव के बाद देश भगवान भोलेनाथ के भरोसे चल रहा है। आने वाले दिनों में हमें देशज राजनीति में भोले की माया ही देखने को मिलेगी। फिर भले ही यूपी में विधानसभा के उपचुनाव हों या महाराष्ट्र, झारखण्ड और बिहार में विधानसभाओं के चुनाव। यूपी में बाबा विश्वनाथ हैं, तो महाराष्ट्र में भीमाशंकर और बिहार में भोले बैद्यनाथ के रूप में विराजमान हैं, भोले की मर्जी सिर्फ भोले जानते हैं। आम जनता को तो केवल कांवड ढोना है। बम-बम करना है। अब देखिये सावन में क्या गुल खिलते हैं मेघराज इन्द्र?