– राकेश अचल
मुझे पढऩे वाले, स्नेह करने वाले, चिढऩे वाले रोजाना किसी न किसी विषय पर लिखने का आग्रह करते हैं। कभी-कभी मैं अपने प्रशंसकों और विरोधियों के सुझाए विषयों पर लिखता भी हूं, लेकिन मुझे हैरानी है कि किसी ने भी मुझसे इस साल की सबसे मंहगी अनंत अंबानी की शादी पर लिखने का आग्रह नहीं किया। आज मैं खुद इस विषय पर लिख रहा हूं।
धीरूभाई अंबानी के पौत्र अनंत अंबानी की शादी भारत में होने वाली शायद सबसे मंहगी और विशेष शादी है। इस शादी में अनंत के पिता मुकेश अंबानी केवल आसमान के तारे तोडक़र नहीं ला पाए अन्यथा धरती पर जितना कुछ संभव था उन्होंने कर दिखाया। मैं अंबानी परिवार से वर्षों से जुड़ा हूं, हालांकि वे मुझे नहीं पहचानते। पहचानते होते तो मुझे भी अनंत की शादी का निमंत्रण पत्र भेजते। अंबानी परिवार ने अनंत की शादी पर जिस दरियादिली से द्रव्य खर्च किया है, उसे देखकर इस परिवार के प्रति मेरे मन में श्रद्धा और बढ़ गई है। मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो अनंत की शादी पर होने वाले खर्च को फिजूलखर्ची मानते हैं। मैं इस खर्च को अम्बानी परिवार का संवैधानिक और मौलिक अधिकार मानता हूं।
अम्बानी के बेटे की शादी में जो गया वो सौभाग्यशाली है और जो नहीं जा पाया वो शायद बदनसीब ही कहा जाएगा। प्रधानमंत्री से लेकर शंकराचार्य तक अनंत को शुभकामनाएं, बधाई और आशीर्वाद देने पहुंचे। ये अनंत की किस्मत है कि वे उस परिवार में जन्मे हैं जिसने दुनिया को 22 साल पहले अपनी मुट्ठी में कर लिया था। अनंत के दादा धीरूभाई अम्बानी ने मात्र 500 रुपए से अपना कारोबार शुरू किया था और आज उनके बेटे मुकेश अम्बानी के पास 12 हजार 370 करोड़ अमीरीकी डालर यानि कोई 1020 लाख करोड़ की संपत्ति है। ये अंबानियों का पुरुषार्थ है। वे आज दुनिया के बड़े से बड़े सितारे को अपनी उंगलियों पर नचा सकते हैं। भारत की सत्ता और विपक्ष और जनता-जनार्दन आखिर किस खेत की मूली है? उनकी मुट्ठी में देश की सत्ता, देश की अर्थ व्यवस्था और देश की निरीह जनता है।
अनंत की शादी की तस्वीरें देखकर जलने वालों की संख्या भी अम्बानी की अकूत संपत्ति की तरह असंख्य है, लेकिन जलने वाले जलते रहें, अम्बानी जी के ऊपर क्या असर होने वाला है? देश में प्रधानमंत्री जी से लेकर अम्बानी का संतरी भी ये हिम्मत नहीं कर सकता कि वो अम्बानी को धन का अमर्यादित प्रदर्शन करने से रोक सके। प्रतिकार की शक्ति नैतिकता से आती है और दुर्भाग्य से ये शक्ति न हमारे राजनेताओं में है और न धार्मिक नेताओं में। वे सब लक्ष्मी के दरबार में चोबदारों की तरह अपने सेंगोल लेकर उपस्थित हुए हैं। अगर उपस्थित न होते तो शायद अम्बानी परिवार उन्हें जाति बाहर कर देता। और जाति से बाहर कोई नहीं होना चाहता, न प्रधानमंत्री और न शंकराचार्य। लक्ष्मी के सामने सभी नतमस्तक होते हैं। मुझे तो लग रहा था कि जैसे अम्बानी के बेटे की शादी में दुनिया के सारे अब्दुल्ला दीवाने हो रहे थे।
अम्बानी परिवार ने किस गवैये, किस नचाइये को कितना धन दिया इसकी खबरें चटखारे लेकर छापी, दिखाई जा रही हैं। अनत और उनकी पत्नी राधिका के लंहगे से लेकर मेकअप तक के कसीदे काढ़े जा रहे हैं। इस नव दंपत्ति के साक्षात्कार ऐसे दिखाए जा रहे हैं जैसे वे भारत की संस्कृति का प्रतिनीधित्व करते हों। ये वो देश है जिसमें आज भी लोग अपने बच्चों का विवाह करने के लिए सरकारी योजनाओं पर निर्भर हैं। लेकिन इस देश में ही अम्बानी भी रहते हैं। उनके पास इतनी सम्पत्ति है कि वे यदि रोजाना तीन करोड़ रुपए भी खर्च करें तो उन्हें अपनी संपत्ति खर्च करने के लिए कम से कम 932 साल छह महीने चाहिए। यानि अम्बानी की कम से कम दस पीढिय़ां तो बिना हाथ हिलाये आनंद के साथ रह सकती हैं।
दुनिया के हर देश में अपने-अपने अम्बानी है। पूंजीवादी देशों में तो अम्बानियों का होना स्वाभाविक है, लेकिन भारत जैसे महान लोकतांत्रिक देश में किसी का अम्बानी होना एक अजूबा है। भारत में 500 रुपए की पूंजी से अरबों-खरबों की पूंजी बनाने का करिश्मा यूं ही नहीं हो जाता। इस करिश्मे में वे तमाम संवैधानिक और असंवैधानिक शक्तियां भी बराबर से सहयोगी होती हैं जिनके दर्शन आपने अनंत की शादी के प्रीतिभोज में किए। मैं किसी का नाम लेकर किसी को लांछित नहीं कर सकता। किसी को लांछित करने का कोई कारण भी नहीं है। ये एक परिवार का सुखद प्रसंग है। दुखद सिर्फ इतना है कि देश के प्रधानमंत्री हों या शंकराचार्य या विपक्ष के नेता उन गरीबों के बच्चों की शादियों में नहीं जाते जहां तडक़-भडक़ नहीं होती। गरीबों के यहां जाने और न जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है अम्बानियों के यहां न जाने से। प्रधानमंत्री जिन अम्बानी के बेटे की शादी में शरीक हुए उन्हीं के ऊपर पिछले महीने आम चुनाव के समय उन्होंने टेम्पो भर-भरकर विपक्ष को रुपया देने का आरोप लगाया था। ईडी प्रेमी सरकार भी अम्बानी के घर ईडी भेजने का साहस नहीं कर पाई।
देश के एक सामान्य नागरिक और अम्बानी परिवार के उपभोक्ता की हैसियत से मैं अनंत और राधिका के सुखद और उज्ज्वल जीवन के लिए अपनी शुभकामनाएं और बधाई प्रेषित करते हुए अनंत से आग्रह करूंगा कि जब उनके हाथ में अम्बानी परिवार की सत्ता आए तो वे अपनी शादी में हुए धन के बेहूदा प्रदर्शन की पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे। प्रेरणा लेंगे उस गांधी परिवार से जिसने अपनी बेटी की शादी में मात्र 350 लोगों को आमंत्रित किया था। यद्यपि गांधी परिवार चाहता तो अम्बानी से ज्यादा भीड़-भड़क्का, चमक-दमक कर सकता था। मुझे याद है कि प्रियंका की शादी में कांग्रेस के ही तमाम सांसदों को न्यौता नहीं दिया गया था। हमारे माननीय के तो कोई बाल-बच्चा है नहीं, इसलिए उनके ऊपर इस तरह की फिजूलखर्ची का कोई आरोप लगाया नहीं जा सकता, लेकिन उन्होंने अपने मन की हसरत अपने शपथ ग्रहण समारोह में देश-दुनिया के तमाम लोगों को आमंत्रित कर पूरी कर ली थी।
लब्बो-लुआब ये है कि भारत में अनंत जैसी शादियों पार प्रतिबंध की जरूरत है, क्योंकि आज भी इस देश में 80 करोड़ से ज्यादा जनता सरकार द्वारा मुहैया कराए जा रहे पांच किलो अन्न पर निर्भर है। अम्बानी जैसी फिजूलखर्ची इन गरीबों का अपमान है, उन्हें नीचा दिखने की कोशिश है। देश में यदि शादियों की फिजूल खर्ची रोकने के लिए कोई कानून प्रभावी नहीं है तो नए कानून बनाए जाएं। सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग इस तरह के फूहड़ धन प्रदर्शन से जुड़े आयोजनों में जाने से अपने आपको रोकें, अन्यथा देश में उल्टी गंगा हमेशा बहती रहेगी और हमारा संविधान टुकुर-टुकुर ये सब देखता रहेगा।