गलत कार्य करने से पूर्व क्षणभर के लिए अवश्य सोचना चाहिए : प्रधान न्यायाधीश गुप्ता

सामाजिक संस्था सुप्रयास द्वारा लोक जागरुकता कार्यक्रम आयोजित

भिण्ड, 27 दिसम्बर। हम चाहे जितने भी छोटे हों, 10 वर्ष की उम्र में यह समझ तो आ ही जाती है कि क्या सही है क्या गलत है। गलत संगति में दूसरों के उकसाने में आकर हम कानून का उल्लंघन कर बैठते हैं और अपने लिए तथा समाज के लिए विषम परिस्थितियों को पैदा करते हैं। इसलिए हमें कोई भी गलत कार्य करने के पूर्व एक क्षण भर के लिए सोचना चाहिए और कोई भी कदम उठाने के पूर्व अपने माता-पिता बडे भाई बहन तथा शिक्षकों से परामर्श अवश्य करना चाहिए। यह उदगार किशोर न्याय बोर्ड भिण्ड की प्रधान न्यायाधीश अंकिता गुप्ता ने सामाजिक संस्था सुप्रयास द्वारा आयोजित लोक जागरुकता कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। सुप्रयास द्वारा मॉडल सीनियर सेकेण्डरी स्कूल भिण्ड में किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 तथा लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के संबंध में लोक जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।
इस अवसर पर बाल संरक्षण अधिकारी भिण्ड अजय सक्सेना ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम को बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्पीडन तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिए साल 2012 में लागू किया गया था। इसके अंतर्गत जो कोई, गुरुतर लैंगिक हमला करेगा, वह ऐसे कारावास से जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। बच्चे की पहचान का खुलासा करना जो यौन अपराधों का शिकार है या जो कानून का उल्लंघन करता है, बच्चे के सम्मान के अधिकार, शर्मिंदा न होने के अधिकार का मौलिक उल्लंघन है।

किशोर न्याय बोर्ड भिण्ड की सदस्य मीनाक्षी शर्मा ने कहा कि बालकों की (देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 का मुख्य उद्देश्य विधि से संघर्षरत बच्चों तथा देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की बाल मैत्री प्रक्रिया के तहत उनके सर्वोतम हित को ध्यान में रखते हुए उनकी समुचित देखरेख, पुनर्वास, संरक्षण, उपचार एवं विकास सुनिश्चित करना है। मॉडल सीनियर सेकेण्डरी स्कूल की संचालिका सुषमा जैन ने कहा कि सुप्रियस भिण्ड के इस लोक जागरुकता कार्यक्रम से विद्यालय के बच्चों तथा शिक्षकों को जेजे एक्ट तथा पोक्सो के प्रावधानों के बारे में सरल और सहज रूप से आवश्यक जानकारी प्राप्त हुई है।
सुप्रयास के सचिव तथा किशोर न्याय बोर्ड भिण्ड के सदस्य डॉ. मनोज जैन ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम 2015 को अब मोडिफाइड कर दिया गया है, अब इसमें सीआरसी के अनुरूप किशोर को 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के रूप में फिर से परिभाषित किया गया है। पहले के कानून में किशोर को 16 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया था। व्यक्तिगत देखभाल और पुनर्एकीकरण के माध्यम से अपराधी और पीडित के पुनर्वास का प्रावधान करता है। किशोर न्याय अधिनियम-2015 के तहत अपराधों की इन सभी श्रेणियों में से केवल जघन्य अपराध करने वाले किशोर अधिनियम की धारा 15 के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन के लिए पात्र हैं। यह प्रावधान किशोर न्याय बोर्ड द्वारा प्रारंभिक मूल्यांकन के बारे में है जैसा कि धारा 2(10) में परिभाषित किया गया है। प्रारंभिक मूल्यांकन एक जांच प्रक्रिया है जो किशोरों द्वारा किए गए अपराध के संबंध में उनकी मानसिक और शारीरिक क्षमता निर्धारित करती है। अधिनियम की धारा 15 के अधीन कानून के साथ विवाद करने वाले किशोरों के प्रारंभिक मूल्यांकन को अनिवार्य करती है। अपराध करने के लिए एक किशोर की शारीरिक और मानसिक क्षमता का निर्धारण किया जाता है। इस तरह के प्रारंभिक मूल्यांकन के परिणाम के आधार पर बोर्ड एक उचित आदेश पारित करता है कि क्या एक किशोर पर अदालत में एक वयस्क के रूप में मुकद्दमा चलाया जा सकता है।