– राकेश अचल
अभी तक ये कहावत थी कि आदमी के दिमाग में कोई न कोई कीडा कुलबुलाता रहता है और इसका पता किसी दूसरे को नहीं चलता। अब ये कहावत ऑस्ट्रेलिया में एक महिला के दिमाग में में जिंदा कीडा मिलने के बाद प्रमाणित हो गई है। एमआरआई के दौरान मरीज के दिमाग में रेंगते इस कीडे को सर्जरी के जरिए निकाल दिया गया है। लेकिन तब से ये अजीबो-गरीब मामला चर्चा में है। आमतौर पर चिकित्सीय धारणा है कि मानव शरीर के भीतर कोई भी कीडा जिंदा नहीं रह सकता, अगर वो शरीर के भीतर रहने के लिए ही न बना हो।
कहावत जब वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो जाए तो आप उससे इंकार नहीं कर सकते। पुराने जमाने के लोगों को पता था कि इंसान के दिमाग में कीडा होता है और वो कुलबुलाता भी है। दुर्भाग्य से पुराने जमाने के लोग इस बात को प्रमाणित नहीं कर पाए थे क्योंकि उस जमाने में दिमाग के भीतर की तस्वीर लेने वाली एमआरआई किसी के हाथ में नहीं थी। ऑस्ट्रेलिया की जिस महिला के दिमाग में कीडा मिला है उसकी उम्र 64 साल है। किसी महिला के मस्तिष्क में जिंदा कीडा मिलने को दुनिया का पहला मामला बताया जा रहा है। पीडित महिला में निमोनिया, पेट दर्द, दस्त, सूखी खांसी, बुखार जैसे लक्षण दिख रहे थे। डॉक्टर दो साल से ही उसका स्टेरॉयड से इलाज कर रहे थे। सालभर पहले उसमें डिप्रेशन और भूलने की बीमारी के लक्षण भी दिखने लगे। मस्तिष्क का एमआरआई करने पर ये सारा खुलासा हुआ। महिला के दिमाग में मिला कीडा सांपों में मिलने वाला कीडा था, जो साग-सब्जियों से होते हुए शायद महिला के दिमाग तक पहुंच गया होगा, माना जा रहा है कि जंगली जानवरों और इंसानों का सीधा संपर्क बढने की वजह से ऐसे अजीब मामले और बढ सकते हैं।
इंसान के दिमाग में यदि कीडा न होता तो क्या दुनिया में बडे-बडे तानाशाह, बडे-बडे कलंदर और सिकंदर पैदा हो सकते थे? मेरा मानना है कि हर इंसान के दिमाग में एक न एक कीडा होता है। अब हर कीडा तो एमआरआई जांच में पकड में नहीं आ सकता। कुछ कीडे चतुर भी होते होंगे जो मशीन को भी धोखा देने में सक्षम होंगे। मनुष्य के दिमाग में कीडा न कुलबुलाए तो वो न अविष्कार की सोचे, न अपराध की। कोई तो कीडा है जो मनुष्य को मनुष्य से इतर बना देता है। आम आदमी के दिमाग में कुलबुलाने वाले कीडे शायद कमजोर और कुपोषण के शिकार होते होंगे, इसीलिए वे क्रान्ति नहीं कर पाते, जबकि खास आदमी के दिमाग का कीडा सबल, खाता-पीता होगा, इसीलिए एक से बढकर एक कृत्य, कुकृत्य करने में समर्थ होता है।
सियासत की ही बात करें और आज की ही सियासत की बात करें तो किसी को पता है कि किस नेता के दिमाग में कौन सा कीडा कुलबुला रहा है। दिमाग में कुलबुलाने वाले कीडे यदि वाकई में सांपों में मिलने वाले होते हैं तो उनका जहरीला होना भी स्वाभाविक है। ये कीडे शायद साम्प्रदायिकता, संकीर्णता, नफरत और मजहब के होते होंगे। ये ही कीडे समाज में होने वाले दंगों के लिए जिम्मेदार होंग। ये ही कीडे मणिपुर से सीरिया तक अपना रंग दिखा रहे हैं। इन कीडों का खात्मा किया जा सकता है या नहीं, ये अभी कहना कठिन है।
अब गठबंधन की राजनीति के दौर में ही देखिये किसी को नहीं पता कि बहन मायावती के दिमाग में कौन सा कीडा कुलबुला रहा है, जो वे गठबंधन की राजनीति से अपने आपको अलग रखकर राजनीति करना चाहती हैं। वे कहती हैं कि उन्हें न एनडीए के साथ जाना है और न इंडिया के साथ। माया मेम के दिमाग का कीडा निश्चित ही ताकतवर होगा जो उनसे ऐसे ट्ववीट करा रहा है, अन्यथा सबसे बूढी कांग्रेस और सबसे जवान आप पार्टी तक गठबंधन धर्म को मानने के लिए मजबूर है। यहां तक कि 43 साल की भाजपा को भी गठबंधन से इंकार नहीं है। कोई भी समझदार पार्टी आखिर गठबंधन की राजनीति से अलग या दूर कैसे रह सकती है?
सियासत को लेकर मैं जो सवाल खडे कर रहा हूं उसके पीछे मुमकिन है कि मेरे दिमाग में छिपा कोई कीडा ही हो। मुझे खुद पता नहीं होता कि अगले दिन मैं किस विषय पर कुलबुलाऊंगा। किसी को ये पता नहीं होता। हमारे प्रधानमंत्री जी के दिमाग में कौन से जंतु कुलबुलाता रहता है, कोई नहीं जानता? जान भी नहीं सकता। प्रधानमंत्रियों का दिमाग सबसे अलग होता है। सबसे अलग न होता तो प्रधान कैसे होता? एक जमाने में जब देश पर आपातकाल लागू किया गया तब किसी को अनुमान था कि इसका कीडा इन्दिरा गांधी के दिमाग में कब से कुलबुला रहा था? आज के प्रधानमंत्री ने जब देश में नोटबंदी की तो इसके पीछे निश्चित ही कोई कीडा रहा होगा, जिसका अनुमान उनके अलावा किसी और को नहीं था।
आप मानें या न मानें, किन्तु ये विचित्र सत्य है कि इंसानी दिमाग का कीडा बडा ही शक्तिशाली होता है। इतना शक्तिशाली कि भारत को अंग्रेजों की 200 वर्ष की गुलामी से एक झटके में आजाद करा लेता है। चन्द्रमा पर पहुंच जाता है। ये कीडा ही है जिसकी वजह से इंसान सूरज पर जाने के बारे में सोचने लगता है। उसे एक बार भी अपनी गति सम्पाती जैसी होने का भय नहीं लगता। सम्पाती यानि वो ही अपने जटायु का भाई। जिसने सूरज को पकडने के लिए उडान भरी और अपने पंख जला बैठा, लेकिन रामदूतों के मिलने के बाद उसके पंख पुन: प्रकट हो गए थे। मनुष्य के दिमाग में कीडा न होता तो क्या वो कोविड के विषाणु का खात्मा करने के लिए वैक्सीन बना पाता? शायद नहीं।
मानवता के इतिहास में जितनी भी क्रांतियां हुईं, नरसंहार हुए, उन सबके पीछे ये दिमागी कीडे ही हैं। इनकी शिनाख्त बहुत जरूरी है। शिनाख्त हो जाए तो उपचार भी जरूरी है। ये कीडे ही हैं जो आदमी को सपना दिखाते हैं, लुभाते है। झांसे में लेते हैं। ठगते हैं। कुर्सी के लिए आपस में लडते-लडाते हैं। गठबंधन बनाते हैं, गठबंधन बिगाडते हैं। इन दिमागी कीडों ने पूरी दुनिया को अस्त-व्यस्त कर रखा है। आम आदमी इन कीडों के कारण परेशान है। मनुष्यता को इन दिमागी कीडों से बहुत खतरा है। इन खतरों के प्रति सावधान रहने की जरूरत है। मेरा बस चले तो मैं एक चिकित्सा आयोग बनकर इन दिमागी कीडों के बारे में ही खोज कराऊं। कम से कम पता तो चले कि हमारे नेताओं के दिमाग में किस किस्म के कीडे कुलबुला रहे हैं?
राहुल गांधी के दिमाग में जो कीडा है उसने उस गरीब को पदयात्री बना दिया है। मोदी जी के दिमाग में जो कीडा है वो भारत को विश्वगुरू बनाने की जिद पर अडा है। बाबा रामदेव के दिमाग का कीडा जनता को देशी गाय का देशी शुद्ध घी खिलाने पर आमादा है। मामा के दिमाग का कीडा लाडली बहनों को रिश्वत देकर उनके कीमती वोट कबाडने की जुगत में लगा हुआ है। राजनीति के जादूगर आनंद यानि अपने राजस्थान के अशोक गहलोत के दिमाग का कीडा सचिन पायलट के पीछे पडा है। महाराज का कीडा शिवराज को गुलामी कराने पर आमादा है। यानि हर दिमाग का कीडा कुछ न कुछ कर रहा है। दिमागी कीडा कभी न खुद आराम से बैठता है और न सामने वाले को आराम से बैठने देता है।
चिकित्सक बताते हैं कि कॉकरोच हमारे शरीर के अंदर जाकर घण्टों से लेकर दिनों तक जिंदा रह सकते हैं। अक्सर ये कान के रास्ते से प्रवेश करते हैं, क्योंकि कान का अंदरुनी हिस्सा नम और अंधेरा होता है, जो इस कीडे के लिए बिल्कुल मुफीद होता है। इस हिसाब से नेताओं के कान इन कीडों के लिए सबसे प्रिय स्थान है। नेताओं के कानों में या तो रुई भरी रहती है। उन्हें जनता का आत्र्तनाद सुनाई ही नहीं देता या वे कान के कच्चे होते हैं। कॉकरोच कानों के भीतर जाकर खत्म नहीं हो जाते, बल्कि वहां अण्डे भी दे सकते हैं। कई बार ये खुले हुए जख्म से होते हुए भी शरीर के भीतर घुस जाते हैंं। शुरुआत में मरीज को संबंधित हिस्से में दर्द, सूजन और बेचैनी लगती है। सही समय पर इलाज न मिले तो हालात एनाफिलेक्टिक शॉक तक जा सकते हैं, जो कि जानलेवा है। मैं कीडों के बारे में बताकर आपको भयभीत नहीं सावधान करना चाहता हूं। आप सावधान रहें, अपना ख्याल रखें।