आजादी अपनी फिर से खतरे में है

– राकेश अचल


घबडाहट, चिंता कतरे कतरे में है
आजादी अपनी फिर से खतरे में है
आजादी के दुश्मन अब अंग्रेज नहीं
आजादी के दुश्मन अब सब नेता हैं
अहंकार में गले गले तक डूब चुके
आजादी के दुश्मन सब अभिनेता हैं
जनसेवा का नाम ध्यान में सत्ता है
टारगेट पर दिल्ली है, कलकत्ता है
धर्म ध्वजा लेकर निकले हैं ये रण में
रक्तपात के बीज बो दिए कण-कण में
विद्यालय के, अस्पताल के दुश्मन हैं
मत कर लेना, हर सवाल के दुश्मन हैं
दुश्मन हैं ये पंचायत के संसद के
दुश्मन हैं ये नाजुक अपनी सरहद के
केवल इन्हें सियासत करना आता है
रिश्तों में बस नफरत भरना आता है
संविधान को महज खिलौना समझा है
राजनीति को जादू टोना समझा है
जंग व्यवस्था के पतरे पतरे में है
आजादी फिर से अपनी खतरे में है