– अशोक सोनी ‘निडर’
रात मैंने एक स्वपन्न देखा, मैंने देखा कि एक 25-30 वर्ष का युवक हाथ में चाकू लिए मेरी ओर बढ़ा आ रहा है। मैंने हड़बड़ा कर पूछा, क.. क.. कौन है? क्या चाहिये। चाकूधारी ने मेरी गरदन पर चाकू रखते हुए कहा- बोल बे, घर का राशन कार्ड कहां छिपा रखा है? मैंने हैरानी से पूछा- सर, आप भी कमाल के लुटेरे हैं। राशन कार्ड तो कब का आउट डेटिड हो चुका है। इससे तो आज-कल राशन तक बराबर नहीं मिलता, क्या करेंगे इसे लेकर। सामने से आवाज आई- चुप बे, ज्यादा बोला तो यहीं डाल दूंगा, विदेशी है। एक ही बार में आठ-आठ को सुला सकता है। चुपचाप राशन कार्ड दे दे वर्ना…। मैंने देखा, सामने एक दैत्य सरीखा नौजवान तंमचा हाथ में लिए मेरी ओर चला आ रहा है। मैं बैड से उठकर राशन कार्ड ढूंढने लगा। चाकूधारी नौजवान, तंमचाधारी नौजवान से बोला- साले को बाहरी दुनिया की खबर ही नहीं है। सारी दुनिया कंट्रोल रेट पर प्याज लेने के लिए सुबह से लाइन में लगी है और ये नींद में बेखबर है। मैं राशन कार्ड ढूंढता रहा, पर वह नहीं मिला। हार कर मैंने चाकूधारी से कहा- सर मिल नहीं रहा। टिंकू ने न जाने कहां रख दिया। आप कल आइये, मैं ढूंढकर रखूंगा। तंमचाधारी ने कान पर तंमचे की नली रख कर धमकाते हुए कहा- बकता है साला। चुपचाप बता दे राशन कार्ड कहां छिपाया है। वर्ना यहीं काम तमाम कर दूंगा। मुझे भयभीत करने के मकसद से उसने दो हवाई फायर किए, मेरे मुंह से चीख निकल आई। मैं उठ बैठा। रसोई से रोने की आवाज आ रहीं थी। मैंने जाकर देखा कि श्रीमती जी फर्श पर बैठी रो रही थीं। चारों ओर दालों के खाली डिब्बे बिखरे पड़े थे। मैंने श्रीमती जी से पूछा- क्या हुआ शीला? तुम रो क्यों रही हो? और यह सब क्या है? मुझे देखकर वे और जोर से रोने लगीं- हम लुट गए, बर्बाद हो गए टिंकू के पापा। चोर घर की सारी दालें उड़ा ले गए। अब हम सारा महीना क्या खाएंगे? दांई ओर पड़े दो किलो के डिब्बे को गोद में लेते हुए वे सिसकीं- हाय, मूंग की दाल भी ले गए निगोड़े। मम्मी ने कितने प्यार से मेरे बर्थ-डे पर दाल देते हुए कहा था- शालू, तुम्हें यह दाल बड़ी पंसद है न। दो किलो पैक कर रही हूं। यह बात मैंने तुमसे छिपाई थी। सोचा था सरप्राइस दूंगी। हाय मैं क्या करूं। वे मुझसे लिपट गईं। मौका देखकर मैंने उन्हें अपने आगोश में ले लिया। वे पिछले चार दिन से शर्ट पर लिपिस्टिक के दाग के चलते नाराज चल रही थीं। मैंने मन ही मन लुटेरों को थैंक्यू कहा। मैंने उनके बालों में हाथ फेरते हुए सांतवना दी- प्रिय, दिल छोटा न करो। इस महंगाई में जिंदा रहे तो मैं प्रॉमिस करता हूं कि इस एनिवर्सरी पर तुम्हें मूंग की दाल अवश्य खिलाऊंगा। वे शांत हो गईं। कहने लगीं और कान के झुमके। मैंने कहा- वह तो तुम आज ही ले सकती हो डार्लिंग। मैं शर्ट की लिपिस्टिक भुला देना चाहता था। वे मुझसे दूसरी बार फिर लिपट गई और मैं आज मिलने वाली पगार से खर्चों का तारतम्य बैठाने लगा। शाम को मैं अपनी सजी-संवरी बीवी के साथ ज्वैलर्स लेन में स्थित ‘भरोसे लाल एण्ड संस‘ की दुकान पर पहुंचा। दुकान के शो केसेज देखकर मैं हैरान रह गया। नौ लखा हार की जगह लहसूनों की माला लटकाई हुई थी। लिखा था- सच्चे-श्वेत लहसून। प्राइज टैग था- 30 रुपए प्रति पीस। नीले, लाल, सफेद पत्थरों की जगह अरहर, मूंग और मलका की दालों ने ले रखी थी। रेट था- पांच रुपए प्रति दाना। सामने बासमती राइस का दाना आकर्षक पैकिंग के साथ सजाया हुआ था, टैग था- सौ रुपये मात्र। टमाटर व अदरक, चांदी के बर्तनों की जगह शो केस में सजाए गए थे। सामने इलैक्ट्रानिक बोर्ड था जिस पर लिखा था- डायमंड प्याज। आज का भाव- 40 रुपए प्रति पीस। श्रीमती जी हैरान थीं। मैंने भीतर जाकर भरोसे लालजी से पूछा- सेठजी, यह क्या, आपने सोने का धंधा बंद कर दिया? वे बोले- हां भायो, अब सोने में आमदनी कहां। महंगाई के कारण पब्लिक के पास पैसा बचता कहां हैं जो सोना खरीदे। अब दो दाल सब्जी ही सोना है। आज-कल लोग दहेज में यही दे रहे हैं। आप बताएं आपको क्या चाहिए? मैंने कहा- हम तो झुमके लेने आए हैं। वे बोले- भायो, झुुमको तो अब यहां पूरी लाइन में कहीं नहीं मिलेंगे। सारा धंधा दाल और सब्जियों का ही है। काम चोखो व नगद है। कोई झिकझिक नहीं। टैक्स अधिकारी पांच-सात किलो दाल में मान जाता है। कोई खतरा नहीं। यहां अब राम-राज्य हो गया है। नए भारत का निर्माण हो रहा है।
शनिवार को मेरे मित्र राधेश्याम किसान मण्डी में मिल गए। उनके हाथ में बीस किलो का थैला था। मैंने पूछा- कहो प्यारे, कहां की सैर हो रही है? वे बोले- यार, पिंकी की सगाई है। फ्रैश सब्जियां लेने निकला हूं। मैंने हैरान होते हुए पूछा- वो तो ठीक है पर इतना बड़ा थैला! इसे भरने में तो तुम्हारी सारी ग्रैच्यूटी लग जाएगी। शायद लोन भी लेना पड़े। वे उल्लू की तरह आंखें फाड़ कर बोले- क्या मतलब! मैंने सामने लगे रेट लिस्ट की ओर इशारा करते हुए कहा- वह देखो सामने रेट लिस्ट लगी है। वे चश्मा लगाते हुए उस ओर देखने लगे। लिखा था- मटर 80 रुपये किलो, प्याज 120 रुपए किलो, टमाटर 70 रुपए किलो, लहसुन 250 रुपए किलो अदरक 150 रुपए किलो, आलू 40 रुपए किलो, हरी मिर्च 40 रुपए किलो, आदि-आदि। उनकी आखों में आंसू आ गए। वे चक्कर खाकर गिरने लगे। मैंने उन्हें संभालते हुए कहा- घबराओ नहीं मित्र, वह देखो, फ्रूट वालों के पीछे फाइनेंसर बैठे हैं। चलकर देखते हैं। वे मेरे पीछे हो लिए। वहां पहुंचे तो देखा- सरकारी तथा गैर सरकारी बैंकरों के अलावा निहायत घाघ से दिखने वाले कुछ फाइनेंसर भी अपनी-अपनी दुकान सजाए बैठे हैं। एक सरकारी बैंक का बैनर था- फ्रूट व वैजीटेबल लोन मेला। नीचे सुनहरे अक्षरों में लिखा था- हमारे यहां विवाह के अवसर पर ‘प्रीतिभोज’ में प्रयोग होने वाली सब्जियों, दालों व फ्रूट के लिए सस्ते ब्याज दर पर लोन दिया जाता है। बैनर के नीचे अत्यंत बारीक अक्षरों में लिखा था- कंडीशन अप्लाई। दूसरे बैंक का बैनर था- वैजीटेबल व दाल लोन केवल 24 घण्टे में, नो प्रोसैसिंग फीसख् नो हिडन चार्जिस। एक प्राइवेट कंपनी के बैनर पर लिखा था- अनाज व फैश वैजीटेबल लोन। पहले आइये, पहले पाइये के आधार पर। ब्याज दर केवल आठ फीसदी मात्र प्रति माह। पहले दस कस्टमर को एक-एक चांदी का सिक्का मुफ्त। मैंने राधेश्याम से पूछा- कहो भाईजान क्या विचार है? उन्होंने सिसकते हुए पूछा- यार सुना है सरकार कंट्रोल रेट पर सब्जियां व दालें बेच रही है। मैंने कहा- बिल्कुल ठीक सुना है। इसी गांधी मैदान पर सोम व मंगलवार को सरकारी दुकानें लगती हैं। जहां आधार व वोटर कार्ड पर पूरी चैकिंग के बाद मटर के दानों के आकार के प्रति व्यक्ति एक किलो प्याज, टमाटर, स्टॉक रहने तक साठ रुपए प्रति किलो के हिसाब से मिलते हैं। वे बोले- काफी रश रहता होगा। मैंने कहा- हां रश तो होता है। लेकिन उससे तुम्हें क्या? यहां चारों ओर दलाल खड़़े रहते हैं। जो दस रुपए ज्यादा लेकर तुरंत काम कर देते हैं। बीस रुपए प्रति किलो के हिसाब से अधिक रेट देकर तुम उन मासूम बच्चों से भी यह काम करवा सकते हो जो पिज्जा हट व नूडल बार के बाहर भीख मांगते हुए दिखाई दे जाते हैं। वे पार्ट टाइम यही काम करते हैं। आज-कल इनके पेरेंटस रिलैक्स हैं। वे अर्थशास्त्र के खिलाड़ी हो गए हैं, उन्हें मालूम हो गया है कि जितने हाथ होंगे, कमाई उतनी ही अधिक होगी। बाजारी हवा देखकर राध्ेाश्याम को हार्टअटैक का अंदेशा होने लगा। उन्होंने दोनों हाथ ऊपर कर के ईश्वर से फरियाद की- प्रभों, इस बार नाक बचा लो। सवा सौ का प्रसाद चढ़ाऊंगा। बादलों में तीव्र गडग़ड़ाहट हुई- रिश्वत देता है मलिच्छ। राधेश्याम रोने लगे- प्रभू, आप ही बताइये कि कमर तोड़ महंगाई में मैं बरातियों के खाने का प्रबंध कैसे करुंगा? बादलों से आवाज आई-घास-पात से मूर्ख।