– राकेश अचल
मामला गंभीर है, लेकिन इसकी आहट अभी आसानी से नहीं सुनी जा सकती। इसे सुनने के लिए आपको कान लगाना पड़ेंगे। भारत के बाहर कृष्ण भक्ति के प्रचार के लिए गठित संस्था ‘इस्कॉन’ यानि अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ अब विदेश के बजाय भारत में राजनीतिक औजार बनने लगा है। 1966 में इस संगठन की स्थापना करते हुए कृष्ण भक्ति में लीन श्रीकृष्ण कृपा श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपादजी ने इसके दुरुपयोग की कल्पना भी नहीं की होगी। इस्कान की स्थापना सन 1966 में न्यूयॉर्क सिटी में की गई थी। इस्कॉन की कृष्ण भक्ति के प्रति विदेश में आम आदमी आकर्षित हो तो खास बात है, लेकिन गोरी चमड़ी के आकर्षण में बंधे हम भारतीय भी इस संगठन के सदस्यों को नाचते, गाते देखकर अभिभूत हो जाते हैं, भूल जाते हैं कि ये संगठन एक धार्मिक-व्यावसायिक संगठन बन चुका है। धार्मिक संगठन का व्यावसायिक होना तो एक बार स्वीकार्य हो भी सकता है, लेकिन अब ये संगठन राजनीति का औजार भी बन रहा है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
भगवान योगिराज कृष्ण इस्कॉन के आभारी और कृतज्ञ हो सकते हैं, क्योंकि इस्कॉन के साधारण नियम और सभी जाति-धर्म के प्रति समभाव के चलते इस संगठन के अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हर वह व्यक्ति जो कृष्ण में लीन होना चाहता है, उनका यह संघ स्वागत करता है। स्वामी प्रभुपादजी के अथक प्रयासों के कारण दस वर्ष के अल्प समय में ही समूचे विश्व में 108 मन्दिरों का निर्माण हो चुका था। इस समय इस्कॉन समूह के लगभग 400 से अधिक मन्दिरों की स्थापना हो चुकी है। इस्कॉन के संस्थापक प्रभुपद ने ऐसा भी कहा था कि ‘ये सभी मन्दिर अध्यात्मिक अस्तपाल हैं’। बीमारी को ठीक करने के लिए जिस तरह एक मरीज अस्पताल जाता है, उसी तरह एक भक्त को भगवान के दर्शन के लिए मन्दिर आना चाहिए और भगवान के कीर्तन सुनने चाहिए, जिससे उसके विचार अच्छे हो जाते हैं, वो भगवान की भक्ति में लीन हो जाता है।
आज स्थिति बदल गई है, लोग मन्दिर जाएं या न जाएं, इस्कॉन मन्दिर को लोगों तक पहुंचा रहा है। भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा पर एक तरह से इस्कॉन ने अपना कब्जा कार लिया है और देश में जहां-तहां रथयात्राएं शुरू करा दी हैं। इस्कॉन यानि अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अनुषांगिक संगठन बनता जा रहा है। चुनावी साल में भाजपा को जहां-जहां भीड़ की जरूरत है वहां-वहां इस्कॉन ने रथयात्राओं का आयोजन करने में भाजपा की मदद की है। इन रथयात्राओं में भाजपा के नेता रथारूढ़ होते हैं, पुरी के राजा बनाकर भगवान की रथयत्रा के मार्गों पर झाडू लगते हैं, भाषण देते हैं। निहितार्थ आप खुद समझ लीजिये।
इस्कॉन के मन्दिरों की भव्यता और संघ के सदस्यों की कृष्णभक्ति ने एक समय मुझे भी आकर्षित किया। मैं भी आम भारतीयों की तरह श्रृद्धा भाव से इस्कॉन के तमाम मन्दिरों में गया। भारत में भी और भारत के बाहर अमेरिका में भी। इन मन्दिरों में भगवान कृष्ण एक ब्राण्ड भर हैं, बांकी सब उनके नाम पर व्यापार है। पूजा-प्रसाद से लेकर कपड़े-लत्ते, मूर्तिया, साज-सज्जा का सामान का पूरा बाजार इन मन्दिरों में इस तरह से बनाया और सजाया जाता है कि भक्त अपनी आती ढीली करके ही मन्दिर के बाहर निकले। मुंबई में इस्कॉन के भव्य-दिव्य रेस्टोरेंट है। 550 रुपए में भरपेट भोजन करने वाले ये वातानुकूलित रेस्टोरेंट कभी घाटे में नहीं चले। ये इस्कॉन में ही संभव है, क्योंकि भारतीय धार्मिक प्रतिष्ठान तो भण्डारे पर ध्यान देते हैं रेस्टोरेंटों पर नहीं। भारत में सिख समाज के लंगरों की इस्कॉन के भोजनालयों के भोजन से तुलना नहीं की जा सकती। करना भी नहीं चाहिए।
बात इस्कॉन के राजनीतिक औजार बनने की। मैं इस्कॉन पर कोई आरोप नहीं लगा रहा। इस्कॉन के आरएसएस में बदलने के अनेक प्रमाण हैं। अभी मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में ही इस्कॉन ने भाजपा के लिए एक रथयात्रा का आयोजन किया। भगवान के रथ पर जगन्नाथ के अलावा मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के पुत्र का कब्जा था। रथ से किसी नेता को भाषण देते हुए कृष्ण भक्तों ने पहली बार देखा। रथयात्रा के पथ को पुरी के राजा की तर्ज पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेन्द्र सिंह तोमर ने बुहारा। ग्वालियर के पास एक गांव कुलैथ में दशकों से रथयात्रा निकाली जाती है, लेकिन शहर में पहली बार ये उपक्रम हुआ। ऐसा मप्र के अलावा अनेक राज्यों में हो रहा है।
इस्कॉन के स्थापित सात उद्देश्यों में इसके राजनीतिक औजार बनाए जाने का कोई उद्देश्य कभी नहीं रहा, लेकिन समय के साथ सब कुछ बदलता है। इस्कॉन भी बदल रहा है। बंगाल के मायायर से संचालित इस्कॉन की माया अपरम्पार है। इस्कॉन हाल ही में गांधी शांति पुरस्कार के लिए चयनित गीता प्रेस की तर्ज पर श्रीकृष्ण के भक्ति साहित्य और गीता को बेचने में असंख्य युवाओं को लगाए हुए है। ये युवक सडक़ों, रेलों, बस अड्डों, मेला-मदारों में इस्कॉन के प्रकाशन को बेचने में अपना पसीना बहते नजर आते हैं, फिर भी गीता प्रेस का मुकाबला इस्कॉन अब तक नहीं कर पाया है। इस्कॉन के मायाजाल में जो कृष्ण भक्त एक बार फंसा, उसका बाहर निकलकर आना कठिन है। अनेक मेधावी इंजीनियर, डॉक्टर, प्रोफेसर और वैज्ञानिक शांति की खोज में कृष्ण भक्ति की और आकर्षित हुए और जब तक उन्हें हकीकत का पता चला तब तक खेल हो चुका था।
बहरहाल मैं भी दूसरों की तरह कृष्ण भक्त हूं। इस्कॉन के जन्म के पहले से कृष्ण की कृपा मेरे साथ है। कृष्ण को अंतर्राष्ट्रीय बनाने में इस्कॉन की भूमिका के प्रति कृष्ण कृतज्ञ हों या न हों किन्तु मैं कृतज्ञ हूं। मेरी आपत्ति केवल इस्कॉन के राजनीतिक औजार बनने पर है। कृष्ण भक्तों खासकर इस्कॉन के भक्तों को इसके ऊपर नजर रखना चाहिए। अन्यथा जिस तरह राम भाजपा के होकर रह गए, कृष्ण भी भाजपा के होकर रह जाएंगे। राम और कृष्ण को आम जनता का बने रहने देना आवश्यक है। कोई राजनीतिक दल इन पर अपना कॉपीराइट कराए तो हे भक्तों! सामूहिक रूप से इस प्रयोजन का प्रतिकार किया जाना चाहिए।
आपको शायद यकीन न हो किन्तु इस्कॉन अब एक बहुर्राष्ट्रीय कंपनी की तरह है। इसके 10 लाख सामूहिक सदस्य, 11 हजार से ज्यादा सदस्य इस्कॉन के हैं। 50 हजार से ज्यादा आजीवन संरक्षक सदस्य हैं। इस्कॉन की संरचना बेहद चुस्त दुरुस्त है। ये एक कॉर्पोरेट वल्र्ड की तरह काम करती है। मन्दिर के हर दिन के कार्य की जिम्मेदारी वहां के प्रेसिडेंट की होती है। वह लोकल गवर्निंग बोर्ड कमिशन के प्रति जवाबदेह होता है। प्रेसिडेंट के अंतर्गत ही मन्दिर के सभी सदस्य कार्य करते हैं। गवर्निंग बोर्ड कमिशन मन्दिर की रोजमर्रा की गतिविधियों में शामिल नहीं होता है। लोकल गवर्निंग बॉडी, सेंट्रल गवर्निंग बॉडी काउंसिल के प्रति जवाबदेह होती है।
दुनिया भर में इस्कॉन के एक लाख से ज्यादा इनिशिएटर्स यानि वरिष्ठ गुरुओं/ मेडिटेटर्स की दीक्षा लेने के बाद शामिल किए गए लोग शामिल हैं, 10 लाख से ज्यादा आजीवन सदस्य हैं। दान करने वाले, कीर्तन और सत्संग सुनने की चाहत रखने वाले लोगों को ये सदस्य्ता दी जाती है। एक आजीवन संरक्षक सदस्य की फीस 35 हजार रुपए से कुछ ज्यादा है। हालांकि ये एकमुश्त रकम है। इसे चुकाने के बाद कोई भी इस्कॉन का लाइफ पेट्रॉन मेंबर बन सकता है। इसके बाद वह दुनियाभर में इस्कॉन के किसी भी मन्दिर में साल में एक बार तीन दिन तक रह सकता है, प्रसादम ले सकता है। इस फीस को चुकाने से धारा 80जी के अंतर्गत इनकम टैक्स में राहत भी मिलती है। हालांकि ये रकम इस्कॉन गंगासागर न्यास में जाती है। इस्कॉन के 50 हजार से ज्यादा ‘लाइफ पेट्रोल मेंबर्स’ भी हैं। मेरे इस आलेख से इस्कॉन से जुड़े या श्रीकृष्ण के किसी भक्त की भावनाएं आहत नहीं होना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो मैं पहले से ही क्षमाप्रार्थी हूं, लेकिन जो है सो है। मुमकिन है कि मेरी दृष्टि में कोई दोष है।