शिवराज बनाम कमलनाथ

– राकेश अचल


इस बार मध्य प्रदेश विधानसभा का चुनाव ‘महाराज बनाम शिवराज’ न होकर ‘शिवराज बनाम कमलनाथ’ हो गया है। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह या भाजपा के केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अब मुकाबले से बाहर है। एक दलबदलू है तो दूसरे ‘मिस्टर बंटाधार’ के नाम से बदनाम। ऐसे में कमलनाथ ही हैं जो मौजूदा सत्ता के लिए समस्या हैं। पोस्टर बनाने वाले यदि मुझसे परामर्श करते तो मैं उन्हें कमलनाथ के बारे में घटिया पोस्टर बनाने से रोकता, कोई दूसरा परामर्श देता, क्योंकि कमलनाथ शिवराज सिंह चौहान की तरह करप्शन चार्जों के शिकार नहीं है। कमलनाथ को सही अर्थों में ‘कडक़नाथ’ कहा जाना चाहिए। 19 महीने की कांग्रेस सरकार के वे सबसे ज्यादा कडक़ मुख्यमंत्री साबित हुए। इतने कडक़ कि उनके मित्र स्व. माधवराव सिंधिया के पुत्र और पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल होना पड़ा।
राजनीति में कडक़नाथ होना स्वीकार नहीं किया जाता। राजनीति पोल्ट्री फॉर्म की वायलर मुर्गों जैसी हो गई है लिजलिजी, फुसफुसी। इस तरह की राजनीति में हमारे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान माहिर हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह माहिर थे। एक जमाने में मध्य प्रदेश से कांग्रेस का किला ध्वस्त करने वाली पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने ‘लेडी कडक़नाथ’ बनने की कोशिश की तो उन्हें नौ महीने में ही सत्ता से हटना पड़ा था। कडक़नाथ प्रवृत्ति की वजह से कमलनाथ नौ की बजाय 19 महीने में सत्ताच्युत हो गए थे। कहने का अर्थ ये है कि पोस्टरबाजी से युद्ध की दिशा बदलती नहीं है, हां थोड़ी देर कि लिए भ्रमित अवश्य होती है।
पोस्टर बरसात के पहले पानी में ही बदरंग हो जाते हैं और पानी पड़ चुका है। भाजपा को कमलनाथ बनाम कडक़नाथ का मुकाबला करने और उन्हें परास्त करने के लिए कोई दूसरी तकनीक इस्तेमाल करना पड़ेगी। मुमकिन है कि कमलनाथ के खिलाफ ताजा पोस्टरबाजी के खिलाफ कांग्रेस में ही छिपकर बैठे उनके अपने प्रतिद्वंदी हों, किन्तु अभी इसके लिए उंगलियां भाजपा की ओर ही उठ रही हैं। मुझे याद है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हों या केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया या केवल सांसद रहे अनूप मिश्रा, सबके सब कभी न कभी इस पोस्टर युद्ध का निशाना बन चुके हैं। ये सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। मेरा सुझाव है कि केन्द्रीय चुनाव आयोग को राजनीति की इस शैली को भी मान्य कर इसका खर्च चुनाव खर्च में जोड़ लेना चाहिए। हालांकि पोस्टर युद्ध पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। पोस्टरों से जो गंदगी फैलती है वो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसलिए इसका विरोध भी किया जाना चाहिए।
मित्रों को बता दूं कि वैसे पोस्टर का आविष्कार सियासत के लिए नहीं, बल्कि राजकाज और व्यापार के लिए किया गया था। पोस्टर एक प्रकार का शब्दों, चित्रों और नक्शों का एक युग्म होता है, जिसके माध्यम से लोगों को किसी विषय से संबंधित जानकारी प्रदान कि जाती है। ताकि लोग उस विषय के बारे में जान सकें और लोगों में उस विषय के बारे में जागरुकता बनी रहे, यह एक प्रकार का मार्केटिंग का साधन होता है।
पोस्टर का उपयोग करके किसी गंभीर विषय के बारे में अवगत कराया जाता है, जिससे लोग उस विषय के प्रति सतर्क रहें एवं इसका उपयोग करके बड़े बड़े ब्रांड्स अपने प्रोडक्ट या सर्विस की मार्केटिंग करके अपने प्रोडक्ट या सर्विस की बिक्री बढ़ाने के लिए करते हैं, जिससे उन्हे मुनाफा होता हैं। दूसरी तरफ राजकाज में सरकारें और सामाजिक संगठन इसका उपयोग करके किसी गंभीर विषय से संबंधित जानकारी को लोगों तक पहुंचाते हैं, ताकि लोग उस विषय के प्रति जागरुक हो सकें, मतलब अगर हम इसे आसान भाषा में समझें तो पोस्टर शब्दों, चित्रों और नक्शों की मदद से बनाया गया एक प्रकार का जाहिर नोटिस यानी आम सूचना होती है। पहले पोस्टर हाथ से बनाए जाते थे, अब यही काम मशीनें कर रही हैं।