– राकेश अचल
ओडिशा के बालासोर में भीषण रेल हादसे में अब तक 280 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि हजारों लोग घायल हैं। लेकिन इस भीषण हादसे के लिए दोषी कौन है, ये शायद ही कभी पता चल सके। भारत विकास दर के मामले में चीन को पछाड़ चुका है, आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ चुका है, लेकिन चीन के बराबर न भारतीय रेल को सुरक्षित बना सका और न ही गति दे सका। भारत के लिए बुलेट ट्रेन कल भी सपना थी और आज भी सपना है।
देश में सुरक्षित रेल यात्रा उपलब्ध कराने के बजाय भारत की सरकार देश के विभिन्न राज्यों में डबल इंजन की सरकारें बनाने में जुटी हुई है, फलस्वरूप भारतीय रेल लगातार बेपटरी हो गई है। भारत में रेल मंत्री कौन है, क्या कर रहा है? ये कोई नहीं जानता, क्योंकि नई रेलों को हरी झण्डी दिखाने का मौलिक अधिकार भी प्रधानमंत्री जी ने अपने पास रख लिया है।
बालासोर में दो रेलें आपस में नहीं भिड़ीं, बल्कि तीसरी रेल भी दो से भिड़ गई। जाहिर है कि ये कंप्यूटर की नहीं मानवीय भूल का दुष्परिणाम है, लेकिन जिम्मेदारी तय करने में जितना समय लगेगा उतने में पता नहीं कितनी और रेल दुर्घटनाएं हो चुकी होंगी। अच्छी बात ये है कि अघोषित रेल मंत्री की हैसियत से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुर्घटना स्थल पर पहुंचे और उन्होंने वहीं से फोन पर कैबिनेट सचिव और स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया से सीधे बात की। उन्होंने अधिकारियों से लोगों के अच्छे इलाज की व्यवस्था करने का निर्देश देनक फोन लगा दिया। उन्होंने अधिकारियों को बेहतर व्यवस्था करने का निर्देश दिया है। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घटना स्थल का दौरा किया।
भारत में रेल हादसों का लंबा इतिहास रहा है। अब तक की सबसे घातक रेल दुर्घटना बिहार में हुई थी, इसमें रेल दुर्घटना 750 यात्री मारे गए थे। फिरोजाबाद रेल दुर्घटना 358 लोग मारे गए थे। ओडिशा में ही एक अन्य ट्रेन टक्कर में 295 लोग मारे गए थे, गैसल ट्रेन दुर्घटना में 285 लोग हताहत हुए थे। खन्ना रेल आपदा में 212 और फ्रीगंज ट्रेन हादसे में 200 लोगों क जान गई थी। 1964 रामेश्वरम चक्रवात के कारण पंबन ब्रिज दुर्घटना में 150 लोग मारे गए थे। ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस ट्रेन पटरी से उतरने से 148 मारे गए थे। भारत में रेल हादसों की नैतिक जिम्मेदारी अपवादों को छोडक़र कोई रेल मंत्री लेता नहीं। दुनिया की नजरों में महाभ्रष्ट लालूप्रसाद यादव अकेले ऐसे रेल मंत्री रहे जिनके कार्यकाल में भारतीय रेल मुनाफे का कारोबार बना था। भाजपा की मौजूदा सरकार ने तो रेल मंत्रालय को ही आभाहीन बना दिया। पहले रेल का अलग बजट बनाया और संसद में पेश किया जाता था, लेकिन अब यह सब बंद है। देश को रेल की सेहत का कुछ अता-पता नहीं है।
मुझे याद आता है कि रेलवे के लिए बजट 2023 में 2.4 लाख करोड़ का ऐलान किया गया था। सरकार का दावा है कि ये 2013-14 के रेलवे बजट के मुकाबले नौ गुना ज्यादा है, यानी कांग्रेस काल के मुकाबले रेलवे बजट अब तक नौ गुना बढ़ चुका है। हालांकि, रेलवे के लिए अलग से कोई खास घोषणाएं नहीं की गई है। सरकार का दावा है कि भारतीय रेलवे का बजट पिछले कुछ सालों से तेजी से आगे बढ़ रहा है। बुलेट ट्रेन और वंदे भारत ट्रेनों के रूप में तेजी से विस्तार देखने को मिल रहा है।
खास बात ये है कि रेलवे के लिए अलग से कोई खास घोषणाएं नहीं की गई, जिससे ये माना जा रहा है कि रेलवे अपनी पुरानी योजनाओं को ही पूरा करने पर जोर देगी। रेलवे बजट पर विशेषज्ञों का कहना था कि मोदी सरकार का जोर रेलवे इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने और हाई स्पीड ट्रेनों को हकीकत के और नजदीक पहुंचाने पर होगा। रेल सेवा पिछले नौ साल में लगातार मंहगी हुई है। सुविधाएं बढ़ाने के साथ ही रियायतें छीनी गईं। कोरोनाकाल की आड़ में ये सब हुआ, लेकिन नतीजा ठनठन गोपाल ही है। देखा जाए तो सरकार रेलों, रेल्वे स्टेशनों के नाम बदलने के जरिए अपने वोट बैंक को साधती रही। सरकार ने निजीकरण के नाम पर लूट को ही बढ़ावा दिया। ये आरोप नहीं, हकीकत है। जो रेल कल तक आम आदमी की रेल थी वो अब पहले जैसी नहीं रही। आम आदमी के लिए रेल में हादसों के अलावा कुछ नहीं है।
जो लोग नहीं जानते उनके लिए ये जानकारी महत्वपूर्ण हो सकती है क्योंकि भारतीय रेल भारत सरकार-नियंत्रित सार्वजनिक रेलवे सेवा है। भारत में रेलवे की कुल लंबाई 67 हजार 415 किमी है। भारतीय रेलवे रोजाना 231 लाख यात्रियों और 33 लाख टन माल ढोती है। भारतीय रेलवे में 12 हजार 147 लोकोमोटिव, 74 हजार तीन यात्री कोच और दो लाख 89 हजार 185 वैगन हैं और 8702 यात्री ट्रेनों के साथ प्रतिदिन कुल 13 हजार 523 ट्रेनें चलती हैं। यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेलवे सेवा है। 12.27 लाख कर्मचारियों के साथ भारतीय रेलवे दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी व्यावसायिक इकाई है।