आजादी की अमर गाथा

अशोक सोनी ‘निडर’


सौ बरस अभी ना बीते थे, सन बयालीस पावन आया।
लोगों ने समझा नया जन्म, लेकर सन सत्तावन आया।।
मन में खुशियों की मची धूम, फिर शोर हुआ आजादी का।
फिर जाग उठा वह सुप्त देश, चालीस कोटि आवादी का।।
लाखों वलिदान ले चुकी है, आजादी आने वाली है।
अब देर नहीं रह गई तनिक, काली खप्पर खाली है।।
है कहीं दमन दाबानल से, उपचार क्रांति का होता है।
रह रह कर उबल उबल पड़ता, यह ऐसा अदभुत सोता है।।
फिर भडक़े जहां जहां जब तब, जल उठे क्रांति के अंगारे।
आजादी की बलिवेदी पर, बलि हुए देश लोचन सारे।।
अपमानित सैनिक मेरठ के, फिर स्वाभिमान से भडक़ उठे।
घनघोर बादलों से गरजे, बिजली बनकर वे कडक़ उठे।।
तब धूं-धूं करके धधक उठी, जनता की अंतर ज्वालाएं।
वीरों की कहें कहानी क्या, आगे बढ़ आई बालाएं।।
आंखों में खून उतर आया, तलवारें म्यानों से निकली।
टोलियां जवानों की बाहर, खेतों खलिहानों से निकली।।
लोहा इस भांति लिया सबने, रंग फीका हुआ फिरंगी का।
हिन्दू मुस्लिम हो गए एक, रह गया न नाम दुरंगी का।।
जिन वीरों ने आजादी की खातिर, अपने प्राणों को वारा था।
है नमन आज उन वीरों को, शत-शत बार हमारा है।।

कवि- राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार उप्र के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी/ उत्तराधिकारी संगठन मप्र के प्रदेश सचिव हैं।