50 हजार की रिश्वत लेने वाले उपयंत्री को चार वर्ष सश्रम कारावास

निमार्ण कार्य के बिल पास करने के एवज में ली थी रिश्वत

 न्यायालय ने 50 का अर्थदण्ड भी लगाया

सागर, 24 दिसम्बर। विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, सागर श्री आलोक मिश्रा के न्यायालय ने निर्माण कार्य के बिल पास करने के एवज में रिश्वत लेने वाले आरोपी उपयंत्री आरके पाण्डेय को दोषी करार देते हुए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 की धारा 7 के तहत चार वर्ष का सश्रम कारावास व 50 हजार अर्थदण्ड एवं धारा-13(1)(डी), सपठित धारा 13(2) के तहत चार वर्ष का सश्रम कारावास व 50 पचास हजार रुपए जुर्माने की सजा से दंण्डित किया है। उक्त मामले की पैरवी सहायक जिला लोक अभियोजन अधिकारी श्याम नेमा ने की।
जिला लोक अभियोजन सागर के मीडिया प्रभारी के अनुसार घटना का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है कि एक जून 2016 को आवेदक देवांश कठल ने पुलिस अधीक्षक, लोकायुक्त कार्यालय सागर को लिखित शिकायत आवेदन इस आशय का दिया कि उसके द्वारा किए गए निर्माण कार्य के बिल पास करने के ऐवज में अभियुक्त आरके पाण्डेय उपयंत्री ने 54 हजार रुपए की मांग की है, वह अभियुक्त को रिश्वत नहीं देना चाहता, बल्कि रंगे हाथों पकड़वाना चाहता है। इसलिए कार्रवाई किए जाने का निवेदन किया। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकार्डर दिया गया, इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकार्ड करने हेतु निर्देशित किया। तत्पश्चात आवेदक द्वारा मांग वार्ता रिकार्ड कर तकनीकि कार्रवाईयां की गई एवं ट्रेप कार्रवाई आयोजित की गई। नियत दिनाक को आवेदक द्वारा अभियुक्त को राशि दी गई व आवेदक का इशारा मिलने पर ट्रेप दल के सदस्य मौके पर पहुंचे और प्रकरण में अन्य विधिवत कार्रवाईयां की गईं। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किए गए, घटना स्थल का नक्शा मौका तैयार किया गया, अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 एवं धारा-13(1)(डी), सपठित धारा 13(2) का अपराध आरोपी के विरुद्ध दर्ज करते हुए विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेश किया। विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया। जहां विचारण उपरांत विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम सागर श्री आलोक मिश्रा की न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 के तहत चार वर्ष का सश्रम कारावास व 50 हजार रुपए अर्थदण्ड एवं धारा-13(1)(डी), सहपठित धारा 13(2) के तहत चार वर्ष सश्रम कारावास व 50 हजार रुपए जुर्माने की सजा से दण्डित किया है।