@ राकेश अचल
जब किसी देश की सरकार मंजे हुए खिलाड़ी चला रहे हों तो वहां कोई भी खेल खेला जा सकता है। सरकार जनादेश से, जन भावनाओं से, क़ानून से ही नहीं बल्कि ‘आग’ से भी खेल रही है। ये खेल संसद के भीतर भी जारी है और संसद के भीतर भी। अब केवल देश की सबसे बड़ी अदालत ही इस आग को बुझाने के लिए अपनी ओर से ‘दमकल ‘ बन सकती है, अन्यथा देश आज नहीं तो कल जलेगा ही, क्योंकि ‘जमालो’ तो भूसे के ढेर में पलीता लगा ही चुकी है।
संसद में वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक को फिलहाल बहस के लिए न रखते हुए इसकी समीक्षा के लिए बनाई गयी संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का कार्यकाल बढ़कर यदि सरकार ने एक कदम पीछे खींचा है, तो वहीं दूसरी तरफ अजमेर शरीफ दरगाह के मामले में चुप्पी साधकर एक कदम आगे भी बढ़ा दिया है। अब इस मामले में ‘सूप तो सूप’ धीरेन्द्र शास्त्री जैसी ‘छलनियां’ भी बोलने लगीं हैं। उनका कहना है कि अजमेर में यदि शिवालय था तो वहां दोबारा प्राण प्रतिष्ठा कराई जाएगी। आपको याद रखना होगा कि सदभावना के भूसे के ढेर में पलीता लगाने का काम आज का नहीं बल्कि बहुत पुराना है।
देश को लगता था कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद की विध्वंश और वहां भव्य राम मंदिर बनने के बाद मुस्लिम विरोधी अभियान रुक जाएगा, लेकिन ये आशंका निर्मूल साबित हुई । उत्तर प्रदेश समेत भाजपा की तमाम डबल इंजिन की सरकारों ने अलग-अलग तरीके से इस अभियान को अंजाम देना शुरू कर दिया। कभी मस्जिदों में जाने वालों को फर्जी मुठभेड़ों में मार दिया गया तो कभी उनकी बस्तियों पर बुलडोजर चला दिए गए। कभी किसी इबादतगाह का सर्वे करने के नाम पर वहां आतंक फ़ैलाने की कोशिश की गई, तो कभी अल्पसंख्यकों के वक्फ बोर्ड को निशाने पर ले लिए गया।
आपको नूपर शर्मा का मामला याद है न? दो साल पहले जो काम नूपुर शर्मा ने किया था वो ही काम आजकल अयोध्या के बाद सम्भल, बनारस और अजमेर में दूसरे लोग कर रहे हैं। अदालतें उनका साथ दे रही हैं। पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी को लेकर भाजपा नेता रहीं नूपुर शर्मा को को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई थी। वे अलग-अलग राज्यों मेंअपने खिलाफ दर्ज मामलों को दिल्ली ट्रांसफर करने की अपील लेकर सर्वोच्च न्यायलय पहुंची थीं। सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा पर तल्ख टिप्पणियां करते हुए कहा था कि उन्हें टीवी पर आकर देश से माफी मांगनी चाहि। नूपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट ने ‘व्यथित करने वाली’ टिप्पणी करार दिया और कहा कि इस बयान के कारण ही देश में दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुईं। बाद में नूपुर ने तमाम ना-नुकुर के बाद देश से, दुनिया से माफ़ी मांगी थी। आज कल वे कहां हैं कोई नहीं जानता।
सम्भल में मस्जिद के सर्वे का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। मुमकिन है कि कल अजमेर शरीफ में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती साहब की दरगाह के सर्वे का मामला भी सुप्रीम कोर्ट आ जाए, अब ये देश की सबसे बड़ी अदालत पर है कि वो इस आग को बढ़ने से रोकती है या फिर अल्पसंख्यकों के पूजाघरों के सर्वे के मामले में फैसला देने से पहले भगवान से मार्गदर्शन मांगती है। अदालत आग से खेल रही सरकार की मुश्कें बांध नहीं पा रही। हबीब गंज से लेकर काले खान की सराय तक के नाम सरकार ने बदल दिए, लेकिन किसी अदालत ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि ये सरकार के अधिकार क्षेत्र का मामला मान लिया गया, लेकिन अजमेर का मामला हबीबगंज रेलवे स्टेशन और काले खान सराय के नाम बदलने का नहीं है।
वक्फ बिल पर जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष सिद्दिकउल्ला चौधरी ने सरकार को आगाह हुए कहा कि सरकार आग से खेलना बंद करे, उन्होंने कहा, “ये मुसलमानों के हक को छीनना चाहते हैं और वक्फ बोर्ड को छीनकर खाना चाहते हैं. ये प्रधानमंत्री के अंदर नहीं आता है. आग से खेलना बंद करें. हम पुरजोर तरीके से इस बिल का विरोध करते हैं. वे मुल्क का बंटवारा करना चाहते हैं. हमलोग एक होकर लड़ेंगे। जाहिर है की सरकारी पार्टी कि कार्यकर्ता सीधे सरकार के पीछे से देश को गरियुद्ध की आग में धकेलना चाहती है। मणिपुर पहले से जल रहा है, अब पूरे देश को मणिपुर बनाने की तैयारी है। ”दरअसल सरकार नूपुर शर्मा के मामले से भी सबक नहीं ले पाई है । नूपुर शर्मा के मामले में कतर और दोहा के अलावा आईओसी ने भी तीखी प्रतिक्रिया जताई थी। अजमेर शरीफ के मामले में भी यही सब हो सकता है, क्योंकि अजमेर शरीफ दुनिया भर के मुसलमानों की आस्था का केंद्र है।
अभी वक्त है कि केंद्र सरकार आगे बढ़कर इस मामले को अपने हाथों में ले। अभी वक्त है कि देश का सर्वोच्च न्यायालय इस विषय में स्वतह संज्ञान ले और अधीनस्थ न्यायालयों को इस तरह की याचिकाओं को स्वीकार करने और सुनने तथा निर्देश देने से रोके। हमें बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार के मामले में दखल देने का हक तभी बनेगा जब हम अपने देश में अल्पसंख्यक मुसलमानों के हितों और मान सम्मान की रक्षा करते हुए दिखाई देंगे। फिलवक्त तो हमारी सरकार, हमारी सरकारी पार्टी का आचरण अल्पसंख्यक विरोधी है। सरकार और सरकारी पार्टी चुनावों में ‘बटोगे तो कटोगे’ का नारा देकर तो अपना असली चेहरा दिखा ही चुकी है। अब देखते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस आग को फैलने से किस तरह रोकता है? अजमेर की शांति भंग करने की कोशिशों को राजस्थान की पंडित भजनलाल शर्मा सरकार तो रोक नहीं सकती। भजनलाल भी लगता है कि राजस्थान को उत्तरप्रदेश की तर्ज पर चलना चाहते हैं।
आपको एक बात और बता दूं कि यदि अजमेर की दरगाह सर्वधर्म की मिसाल न होती तो देश में कोई हिन्दू अपने बच्चों का नाम मुंशी अजमेरी या अजमेरी लाल न रखता। जो लोग अजमेर को मुस्लिम नाम या संज्ञा समझते हैं उन्हें मै बता दूं कि यह नगर सातवीं शताब्दी में अजयराज सिंह नामक एक चौहान राजा द्वारा बसाया गया था। इस नगर का मूल नाम ‘अजयमेरु’ था। सन् 1365 में मेवाड़ के शासक, 1556 में अकबर और 1770 से 1880 तक मेवाड़ तथा मारवाड़ के अनेक शासकों द्वारा शासित होकर अंत में 1881 में यह अंग्रेजों के आधिपत्य में चला गया। अजमेर में अकेले ख्वाजा साहब की ही दरगाह नहीं है, जैन मंदिर भी हैं और हिन्दू मंदिर भी, दुनिया वाले अजमेर को भारत का मक्का, अंडो की टोकरी, राजस्थान का हृदय भी मानते है। सरकार और सरकारी पार्टी इसे माने या न माने क्या फर्क पड़ता है? भाजपा को अपने पितृ पुरुष स्व अटल बिहारी बाजपेयी से कुछ सीखना चाहिए। आज के प्रधानमंत्री को अल्पसंख्यकों के मन में भरोसा जगाने के लिए अटल जी की तरह अजमेर जाकर ताजा मसले को हल करना चाहिए।