नए साल से बदलने वाली है सबकी चाल

– राकेश अचल


ये साल 2023 का अंतिम आलेख है। अंतिम इसलिए क्योंकि नए साल से दुनिया अपना साल बदलने वाली है, कल से सबकी चाल बदलने वाली है। साल और चाल बदलने का ये क्रम नया नहीं है। जब अंग्रेजी कैलेंडर न था तब भी हम अपने पंचांग वाले कैलेंडर के साथ चाल और साल दोनों बदलते थे, फर्क सिर्फ इतना था कि पहले साल और चाल बदलने पर आज की तरह हंगामा नहीं होता था। आतिशबाजियां नहीं होतीं थी। होटल-सोटल आबाद नहीं होते थे।
हमें अपने बचपन की याद है कि जब साल बदलती थी तो हम अपने गांव के समीप बहने वाली नदी में स्नान के लिए जाते थे। नए कपडे पहनते थे, मन्दिर जाते थे और घर में नए अन्न, शाक के पकवान बनते थे, हम साल के आखरी दिन आधी रात तक जागकर साल बदलने का इंतजार नहीं करते थे, क्योंकि हमें पता होता था कि नया साल आएगा तो दबे पांव आएगा। शोर-शराबा तो हम लोग करने लगे हैं। हमारा नया साल चैत्र मास की वर्ष प्रतिपदा पर आता है, लेकिन जब से दुनिया में ये अंग्रेजी कैलेंडर मान्य हुया है हमारा हिन्दू पंचांग वाला पुराना साल पिछड गया है, हालांकि एक बार फिर से नागपुर वंशियों ने इस पुराने साल को नए तरीके से मनाने का श्रीगणेश जरूर कर दिया है।

बात जाते हुए साल की भी करना है और आते हुए साल की भी। जाता हुआ साल हमें बहुत सी उपलब्धियां, बहुत सी खुशियां, बहुत से गम, बहुत से जख्म भी देकर जा रहा है। ये साल ही है जो कभी लौट कर नहीं आता, पीछे मुडकर नहीं देखता। हमने आज तक किसी साल को वापस आते हुए नहीं देखा। आप में से किसी ने देखा हो तो हमें अवश्य बताना। साल आता ही जाने के लिए है। हम भी इस धराधाम पर जाने के लिए ही आए हैं। हम इस धरती के मूल निवासी हैं, लेकिन हमारी वापसी की तिथि भी तय है, पहले से तय है। अंतर बस इतना है कि हमारे जिस्म पर अंग्रेजी दवाओं और खान-पान की वस्तुओं की तरह ‘एक्सपायरी डेट’ का टैग नहीं लगा। हम अपने निर्माता की इसी गलत की वजह से अपने आपको अजर-अमर समझने की गलती कर बैठते हैं और बहकने लगते हैं।
साल 2023 भी हमेशा की तरह हमें बहुत कुछ देकर भी जा रहा है और हमसे बहुत कुछ छीन कर भी ले जा रहा है। दुनिया ने, हमने आपने जाते हुए साल में दुनिया में दो भीषण युद्ध भी देखे हैं। नरसंहार तो अनगिनत देख लिए, लेकिन इन्हें रोकने में या टालने में हम नाकाम रहे। इसी साल हम चांद पर भी पहुंचे। दुनिया की छोडें तो हमने अपने देश में इस साल में जलता, झुलसता मणिपुर देखा, तो अयोध्या में राम मन्दिर बनते भी देखा। हमने विकास की और भी कदम बढाए और विनाश की और भी। हम नौ दिन चले, लेकिन केवल अढाई कोस ही। हमने मुहब्बत की दूकान भी खोली और नफरत की। हमने अपनी आंखों में भी धूल झौंकी और दुनिया की आंखों में भी। ये सिलसिला अनंत है, आदि है, अविस्मरणीय है।
साल में गिने-चुने 365 दिन होते हैं, इन 365 दिन में हम कितना कुछ कर गुजरते हैं ये महत्वपूर्ण होता है। इन्हीं 365 दिनों में तरह-तरह के इतिहास लिखे जाते हैं, तरह-तरह के कीर्तिमान बनाए और बिगाडे जाते हैं। हम जीवन के हर क्षेत्र में कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करते हैं, किन्तु हमारी हर कोशिश कामयाब ही हो ये आवश्यक नहीं होता। राजनीति, इतिहास, समाज, विज्ञान, अर्थ, सब साथ-साथ चलते हैं। कभी इन सबके बीच अदभुत संतुलन होता है और कभी नहीं भी। हमारी प्रथमिकताएं बदलती रहती हैं। हम मनुष्य हैं लेकिन सांपों की तरह अपना केंचुल बदलने का प्रयास करते हैं। यदि ये तब्दीली न हो तो सब कुछ उबाऊ लगने लगे।
नए साल में हम जो बिगडा है उसे फिर से बनाने की बात कर सकते हैं। हम जंग से मुक्ति की प्रार्थना कर सकते हैं। हम नफरत से कोसों दूर रहने का संकल्प ले सकते हैं। ये सब हमारे हाथ में है। हमारे हाथ में सत्ता नहीं होती। सत्ता हम कुछ लोगों को चुनकर सौंपते हैं। लेकिन फिर हम लम्बी तानकर सो भी जाते हैं। बिगाड यहीं से शुरू होता है। हमें अपनी तमाम जरूरी क्षमताओं को पहचानकर उनका इस्तेमाल करने की आदत बनाए रखना चाहिए। भारत ने जाते हुए साल में बहुत कुछ पाया और खोया होगा, लेकिन जो सबसे घाटे की बात हुई वो ये कि हमने प्रतिकार करना छोड दिय। हमने यथास्थिति को स्वीकार करना आसान समझा। हम इसी का खमियाजा भी भुगत रहे हैं। हम भूल गए हैं कि अच्छा और बुरा सब कुछ हमारे हाथ में है, लेकिन हम इसका ख्याल नहीं करते।
बहरहाल साल जा रहा है, उससे जुडी हुई असंख्य स्मृतियां हमारे साथ रहने वाली हैं। हम रहेंगे तो बार-बार मिलेंगे, हर साल मिलेंगे। हमें मिलते-जुलते रहना होगा। अन्यथा कुछ नहीं बचेगा इस दुनिया में। इस दुनिया में जो खूबसूरत है, जो मन मोहक है, जो सुखद है उस सबको बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है। हम फिर मिलेंगे, खुले दिल से मिलेंगे। हमें उम्मीद है कि नया साल जाते हुए साल की तुलना में आप सभी के लिए और बेहतर साबित होगा।