– राकेश अचल
हमारी सरकार अब न्यूज क्लिक करना सीख गई है। सरकार को हर न्यूज में दिलचस्पी रहती है, क्योंकि हर न्यूज सरकार का बल्ब फ्यूज करने का काम करती है। इस बार सरकार के निशाने पर सचमुच में ‘न्यूज क्लिक’ ही है। सरकार यानि दिल्ली पुलिस ने न्यूज क्लिक के सौ से ज्यादा ठिकानों पर छापेमारी की और न्यूज के तमाम स्त्रोतों से जुड़ी सामग्री को अपने कब्जे में ले लिए। इतना ही नहीं ऐसा करने के बाद न्यूज क्लिक करने वाले उर्मिलेश और अभिसार को भी पूछताछ के लिए अपना मेहमान बना लिया। न्यूज क्लिक पर बड़ा संगीन आरोप है कि उसने हमारी संप्रभु सरकार के खिलाफ काम करने के लिए चीन से 38 करोड़ रुपया हांसिल किया।
पुलिस की इस कार्रवाई को पूरा मीडिया जगत अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मान कर चल रहा है, लेकिन मुझे लगता है कि इस कार्रवाई का मकसद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने वाले तमाम लोगों को हडक़ाने भर की है, क्योंकि पांच राज्यों के चुनाव सिर पर हैं और कुछ ही महीने बाद आम चुनाव भी होना हैं। न्यूज क्लिक के बारे में कुछ बताने की जरूरत नहीं है, क्योंकि बीते 24 घण्टे में मीडिया में दिलचस्पी रखने वाले अधिकांश लोग सर्च इंजिनों के जरिये न्यूज क्लिक को खंगाल चुके हैं। न्यूज क्लिक में जाहिर है कि केवल और केवल न्यूज बनती है, और बेची जाती है।
न्यूज क्लिक पर जो आरोप हैं वे एकदम ताजा नहीं हैं। दो साल पुराने हैं। पुलिस चाहती तो दो साल में इस मामले को दाखिल दफ्तर कर सकती थी या जो कार्रवाई उसने मंगलवार को की, उसे पहले ही अंजाम दे सकती थी। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को ऐसे ही संगीन मामले कार्रवाई के लिए सौंपे जाते हैं। दिल्ली पुलिस की तारीफ करना चाहिए कि उसे जो टास्क दिया जाता है उसे वो प्राणपण से पूरा करने की कोशिश करती है। दिल्ली पुलिस को मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी-वाजादी से कुछ लेना-देना नहीं है। उसे तो अपने आकाओं के हुक्म को तामील करना है।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने राजधानी दिल्ली और उससे सटे एनसीआर में न्यूज क्लिक वेबसाइट के पत्रकारों के ठिकानों पर रेड डाली व न्यूज क्लिक का दफ्तर सील कर दिया। यह कार्रवाई फॉरेन फंडिंग के मामले में यूएपीए के तहत की जा रही है। देश में मीडिया को विदेशी पूंजी निवेश की छोट है। ये छोट भी सरकार ने दी है। आप 26 फीसदी विदेशी निवेश ले सकते हैं, लेकिन सरकार को उखड फेंकने के लिए इस निवेश का इस्तेमाल करेंगे तो पकडे जाएंगे। न्यूज क्लिक पर आरोप है कि उसने बजरिये अमरीका चीन से 38 करोड़ रुपए लेकर अपनी बेवसाईट के जरिये देश में सरकार विरोधी माहौल बनाना शुरू किया। अब भला कोई भी सरकार ये कैसे बर्दाश्त कर सकती है। कांग्रेस की सरकार भी होती तो वो भी यही सब करती, जो भाजपा की सरकार यानि उसकी पुलिस कर रही है।
देश में इससे पहले भी पुलिस इसी तरह के मामलों में कार्रवाई कर चुकी है। मुझे याद नहीं आता कि किसी को भी फांसी पर चढ़ाया गया हो। सरकार सिर्फ धमकाती है, आंखें दिखाती है और सब कुछ भूल जाती है। न्यूज क्लिक के प्रबीर पुलकायस्थ को भी फांसी पर नहीं चढ़ाया जाएगा। अभिसार और उर्मिलेश जी भी जल्द ही घर आ जाएंगे, लेकिन तब तक देश के मीडिया को ये संदेश दे दिया जाएगा कि कृपया सरकार के पक्ष में वातावरण नहीं बना सकते, तो खिलाफ में भी मत बनाइये और मुझे लगता है कि सरकार का मकसद पूरा हो चुका है। सरकार की कार्रवाई के विरोध में जिन्हें बोलना था वो बोल रहे हैं और जिन्हें खामोशी अख्तियार करना थी वो खामोशी की चादर ओढ़ चुके हैं, उनसे बोलने की अपेक्षा भी नहीं की जाना चाहिए।
देश को यदि न्यूज क्लिक के खिलाफ की जा रही कार्रवाई आपातकाल की आहट लगती है तो उसे सावधान हो जाना चाहिए और नहीं लगती तो मौज करना चाहिए। पिछले एक दशक में देश का मीडिया जिस तरीके से वात्सल्य भाव से काम कर रहा है वो किसी से छिपा ही नहीं है। ऐसे में न्यूज क्लिक जैसी संस्थाओं की सक्रियता को ये देश आखिर कैसे बर्दाश्त कर सकता है? अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षक तमाम संस्थाओं को पहचानने का ये सही समय है। इस समय जो मौन है और जो मुखर है पहचाना जाएगा। शर्त एक ही है कि साधन और साध्य की पवित्रता का ख्याल मीडिया खुद रखे।
अपनी वेबसाइट चलने के लिए फंडिंग के लिए चीन जाने की क्या जरूरत है, अमेरिका से पैसे लेने की क्या जरूरत है। अपने ही देश की जनता के पास इतना पैसा है कि आपका काम चल जाएग। मेरा तो चल रहा है। मैं अपने पाठकों से रोजाना केवल एक रुपया लेता हूं। जिनके पास नहीं है उन्हें अपनी सामग्री मुफ्त भी देता हूं। इसके बावजूद मुझे भी पुलिस जिस दिन आका का हुक्म होगा उस दिन उर्मिलेश और अभिसार की तरह उठा लेगी। पुलिस को अपना काम करने दीजिए। आप यानि मीडिया अपना काम करे। कानून अपना काम करता ही है। कानून का दखल न होता तो न्यूज क्लिक की पूरी टीम पहले ही गिरफ्तार की जा चुकी होती। कुछ समय पहले कानून ने ही इस मामले में गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी।
देश में पिछले दरवाजे से आपातकाल आज नहीं आ रहा उसे आए एक दशक होने को है। वो तो गनीमत है कि सरकार उदार है अन्यथा इन्दिरा गांधी की तरह आज के माहौल में कभी का आपातकाल लगा चुकी होती। देश के वैकल्पिक मीडिया की हर न्यूज जब क्लिक होती है तब-तब सरकार की एक न एक ईंट कमजोर होती है, इसलिए ये संघर्ष भी सनातन ही समझिये। सरकार को अपना काम करने दीजिए, आप अपना काम कीजिए। सरकार की अक्ल अपने आप ठिकाने लग जाएगी। आखिर सरकार है तो पूर्णत: स्वदेशी। उसे तो किसी दूसरे देश की सरकार या जनता ने तो फंडिंग नहीं की। सरकार की सारी फंडिंग अडानी और अम्बानी जैसे स्वदेशी लोग करते हैं। अमेरिका के नेविल राय सिंघम नहीं।
आपको याद होगा कि एक महीने पहले लोकसभा में भी न्यूज क्लिक का मुद्दा उठाया गया था। 7 अगस्त 2023 को बीजेपी सासंद निशिकांत दुबे ने कहा था कि न्यूज क्लिक को चीन से फंडिंग मिल रही है। उन्होंने कहा था कि न्यूज क्लिक देश विरोधी है। निशिकांत ने मीडिया पोर्टल पर चाइनीज फंडिंग से सरकार के खिलाफ माहौल बनाने का आरोप लगाया था। केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा था कि ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ जैसे अखबार भी स्वीकार कर रहे हैं कि नेविल रॉय सिंघम और उनका न्यूज क्लिक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के खतरनाक हथियार हैं और दुनियाभर में चीन के राजनीतिक एजेण्डे को बढ़ावा दे रहे हैं।