व्यवहार कुशलता

– अशोक सोनी निडर


व्यवहार कुशलता एक मानवोचित गुण समूह के साथ-साथ कला कौशल भी है। इस गुण समूह में शिष्ट संवाद, विनम्रता, वाणी की शालीनता, उदारता, निरहंकारिता, बहिर्मुखता, प्रेम, सम्मान-भाव एवं सहानुभूति आदि गुण प्रमुखता से सम्मिलित होते हैं। व्यवहार कुशलता सफलता प्राप्त करने, लोगों को अपना बनाने, लोगों का दिल जीतने, सुखप्रद जीवन-यापन करने और सम्मान पाने का अमोघ अस्त्र है। जिन लोगों में व्यवहार-कुशलता की कला-प्रवीणता नहीं है, वे न तो इस संसार में सफल होते हैं और न सुखकर जीवन जी पाते हैं।
व्यवहार-कुशलता से मित्रों एवं शुभचिंतकों की संख्या में वृद्धि होती है। सफलता के चार प्रमुख तत्व हैं- व्यवहार-कुशलता, दृढ़संकल्प, पुरुषार्थ एवं सकारात्मक सोच। जो लोग सामाजिक परिवेश में संकुचित, अंतर्मुखी, शर्मीले और एकाकी होते हैं, वे प्राय: व्यवहार-कुशलता की कमी के फलस्वरूप असफल हो जाते हैं। व्यवहार-कुशलता की कला के विकास के लिए आवश्यक है कि आप अच्छा संबंध बनाए रखने के लिए दूसरों के गुणों को जानें, उनकी मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करें तथा परदोष दर्शन की प्रवृत्ति का सर्वथा त्याग कर दें। यदि परिवार और समाज में आपके संबंध लगातार बिगड रहे हैं, आपके मित्र और संबंधी आपसे किनारा करने लगे हैं, आपके जीवन में आनंद-तत्व का अभाव हो गया है, कठिन परिश्रम के बावजूद भी आपको सफलता नहीं मिल रही है, धनादि से लोगों का भला करने के बाद भी लोग आपकी आलोचना ही करते हैं, आप दूसरों से अपना काम नहीं ले पाते और लोग आपका साथ नहीं देते, तो आपको अपने व्यवहार का विश्लेषण कर उसमें अपेक्षित सुधार अवश्य करना चाहिए।