टमाटर के लिए सरकार का हैकथॉन

– राकेश अचल


देश में टमाटरों के लाल-पीले होने से सरकार भी चिंतित है। सरकार के उपभोक्ता संरक्षण विभाग ने टमाटरों की कीमतें नियंत्रित करने के लिए कम से कम देश की जनता से एक अभियान ‘हैकथॉन’ चलकर सुझाव तो मांगे, अन्यथा सरकार जनता से कभी कुछ मांगती ही कहां है? सरकार मांगती नहीं बल्कि देती है। लेकिन टमाटरों ने सरकार को भी पिलपिला कर दिया है।
दरअसल मैं पिछले अनेक दिनों से टमाटर के बारे में लिखना चाहता था, लेकिन मैंने टमाटर की उसी तरह उपेक्षा कर दी जिस तरह सरकार ने मणिपुर की हिंसा की उपेक्षा की है। अपेक्षा और उपेक्षा में आखिर फर्क है ही कितना? हमारे प्रधानमंत्री जी अमेरिका से शहडोल तक मणिपुर की हिंसा के बारे में एक बोल तक नहीं बोलते। इसलिए मैंने भी टमाटर के बारे में एक भी शब्द खर्च न करने की कसम खा रखी थी, किन्तु सरकार के उपभोक्ता संरक्षण मंत्रालय ने मुझे मेरी जिम्मेदारी का बोध करा दिया। मुझे खुशी है कि केन्द्र सरकार के तमाम मंत्रालयों में से कम से कम एक तो ऐसा है जो न सिर्फ अपनी जिम्मेदारी समझता है बल्कि देश की चिंताओं में जनता को भी भागीदार बनाता है।
आपको पता ही है कि देश में कई शहरों में टमाटर की कीमत 100 के पार चली गई है। हालांकि उसे 200 के पार होना चाहिए था, क्योंकि हमारी सरकार हर सूबे में जब भी चुनाव होते हैं तब एक ही नारा देती है ‘अबकी बार 200 के पार’। ये बात अलग है कि सरकार ये लक्ष्य कभी प्राप्त नहीं कर पाती। अच्छी बात ये है कि केन्द्र सरकार को उम्मीद है कि आने वाले 15 दिन में टमाटर की कीमतें स्थिर हो जाएंगी। डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स ने टमाटर की कीमतों को काबू में रखने के लिए जनता से सुझाव भी मांगे हैं। इसे ‘टोमैटो ग्रैंड चैलेंज हैकथॉन’ कहा गया है। इसकी शुरुआत हो गई है। स्टूडेंट्स, रिसर्च स्कॉलर सहित अन्य लोग टमाटर के उत्पादन, प्रोसेसिंग और स्टोरेज क्षमता बढ़ाने को लेकर अपने सुझाव कंज्यूमर अफेयर डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर भेज सकते हैं। इन सुझावों पर काम होगा और सब ठीक रहा तो इसे लेकर योजना भी तैयार की जाएगी, ताकि टमाटर की कीमतें सालभर स्थिर रखी जा सकें।
मैं अक्सर कहता हूं कि सरकार को हर मामले में अपने साथ जनता को जोडकर रखना चाहिए। जनता साथ हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। जनता साथ हो तो सरकार के सिर से कांग्रेस और राहुल गांधी का भूत भी फौरन उतर जाता है। लेकिन सरकार तो सरकार है, अपने मन की करती है। अब प्रधानमंत्री जी हमारे सूबे में आए, आदिवासियों के बीच गए। एक करोड आयुष्मान कार्ड बांट गए, हमेशा की तरह कांग्रेस को कोसा। आदिवासियों के संग खाना खाया। शायद आदिवासी इस बार मध्य प्रदेश में उनकी पार्टी का बेडा पार कर दें। लेकिन प्रधानमंत्री जी ने यहां भी न मणिपुर की बात की और न टमाटर की। वैसे भी आदिवासियों का मणिपुर और टमाटर से क्या लेना-देना। ये तो सियासी मुद्दे हैं। प्रधानमंत्री जी इन मुद्दों पर अपनी ऊर्जा क्यों बर्बाद करें? प्रधान जी के सामने तो केवल और केवल कांग्रेस और चूं-चूं का एकता मुरब्बा बनाता विपक्ष है।
बात टमाटर की चल रही थी और मैं कहां भटक कर आदिवासियों और प्रधानमंत्री जी तक आ पहुंचा। मेरे मित्र भी मुझे इस कमजोरी के लिए अक्सर कोसते हैं। अब कमजोरी तो कमजोरी है। जैसे प्रधानमंत्री जी की कमजोरी कांग्रेस और राहुल गांधी हैं, वैसे ही मेरी कमजोरी सत्ता प्रतिष्ठान और प्रधानमंत्री जी हैं। मैं अपने प्रधानमंत्री जी को जी-जान से चाहता हूं। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री जी का जिक्र किए बिना मेरी कोई बात पूरी होती ही नहीं है। खैर मैं प्रधानमंत्री जी के साथ अपने सूबे के जिन आदिवासियों को देख रहा था, उन्हें पहचानना मेरे लिए मुश्किल था। सबके सब गुलाबी पगडी पहने बाराती लग रहे थे। जबकि हमारे सूबे में आदिवासी आज भी पूरे कपडे नहीं पहन पाते। बेचारों के लिए गुलाबी पगडी तो ‘आकाश कुसुम’ जैसी है। प्रधानमंत्री जी का आभार कि उनकी वजह से सूबे के परेशान आदिवासियों को कम से कम गुलाबी पगडी पहनने को तो मिली।
प्रधानमंत्री जी ने आदिवासियों को जिस उदारता से आयुष्मान कार्ड बांटे मैं उसकी सराहना करता हूं, किन्तु शायद प्रधानमंत्री जी को नहीं पता कि हमारे सूबे मप्र में चार हजार आबादी पर एक डॉक्टर है, जबकि कम से कम एक हजार की आबादी पर एक होना चाहिए। हमारे यहां डॉक्टरों के 94 हजार पद रिक्त हैं। सामुदायिक चिकित्सा केन्द्रों से लेकर सुपर स्पेशियल्टी अस्पतालों में भी यही दशा है, ऐसे में आदिवासी इन कार्डों का आखिर करेंगे क्या? सरकार की कृपा से इन कार्डों की बदौलत आदिवादियों के बजाय निजी अस्पताल वालों की सेहत जरूर सुधरेगी, क्योंकि ये पैसा आखिर में इन्हीं निजी दुकानों में पहुंचता है।
बहरहाल बात टमाटर से शुरू हुई थी सो टमाटर पर ही समाप्त होना चाहिए। हमारे देश में सालाना लगभग एक करोड 97 लाख टन टमाटर का उत्पादन होता है, जबकि खपत लगभग एक करोड 15 लाख टन है। यानि देश में टमाटर की कोई कमी नहीं है। सरकारी आंकडे तो देश में टमाटर का उत्पादन दो करोड टन बताते हैं। सवाल ये है कि जब हम टमाटर के मामले में आत्मनिर्भर हैं तो बांकी टमाटर जाते कहां हैं? वैसे टमाटर उत्पादन में भी चीन हमसे काफी आगे है। पिद्दी सा चीन सालाना 6878 मिलियन टन टमाटर पैदा करता है। जो विश्व के कुल टमाटर उत्पादन का 34 प्रतिशत से अधिक है। दुनिया में सालाना 187 मिलियन टन टमाटर पैदा होता है। सवाल ये है कि टमाटर के भाव बढ़ते क्यों हैं? या तो हमारी आदतें खराब हैं या फिर इंतजाम खराब हैं। टमाटर हर साल प्याज की तरह जनता और सरकार को रुलाता है। इसे सख्ती से रोका जाना चाहिए। सरकार के अकेले के बूते का ये काम नहीं, जनता को इसमें साथ देना होगा। सरकार अकेले यदि टमाटर के दाम बढऩे से रोक सकती तो सबसे पहले कांग्रेस के बढ़ते कदम न रोकती? कांग्रेस के भाव भी टमाटर के भावों की तरह लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं। मुझे पूरा यकीन है कि यदि देश में टमाटर के भाव काबू में आ गए तो एक न एक दिन कांग्रेस के भाव भी काबू में आ जाएंगे।
वैसे भी टमाटर हमारे योगा की तरह विश्वव्यापी हैं। इसका पुराना वानस्पतिक नाम लाइकोपोर्सिकान एस्कुलेंटम मिल है। वर्तमान समय में इसे सोलेनम लाइको पोर्सिकान कहते हैं। बहुत से लोग तो ऐसे हैं जो बिना टमाटर के खाना बनाने की कल्पना भी नहीं कर सकते। इसकी उत्पत्ति दक्षिण अमेरिकी ऐन्डीज में हुई। मेक्सिको में इसका भोजन के रूप में प्रयोग आर्रंभ हुआ और अमेरिका के स्पेनिस उपनिवेश से होते हुए विश्वभर में फैल गया। कायदे से तो भारत को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की तरह भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय टमाटर दिवस के लिए अभियान चलाना चाहिए। क्योंकि बिना टमाटर सब सूना है।
हमारे देश में टमाटर हो, प्याज हो, रसोई गैस हो या कोई और उपभोक्ता वस्तु के दाम हों कभी चिंता का विषय नहीं रहा। कभी चुनावी मुद्दा नहीं रहा। मुद्दा है कि आपको मोदी चाहिए की नहीं। कुछ दशक तक पहले देश में इन्दिरा चाहिए कि नहीं, की बात होती थी। यानि कुछ बदला नहीं है। कुछ बदलना भी नहीं है। इन्दिरा, राजीव, मनमोहन जाएंगे तो अटल बिहारी और मोदी जी आएंगे। इनके बीच में महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी जगह बना ही नहीं सकती। देश में यदि मजबूत सरकार होगी तो आज 80 करोड लोगों को पांच किलो अन्न मुफ्त में देकर पाल रही है, कल 100 करोड लोगों को भी पाल सकती है। मजबूत सरकार का अर्थ ‘पालनहार’ सरकार होता है।