@ राकेश अचल
दुनिया का पता नहीं, किन्तु भारत में अभी भी देवताओं के दर्शन सहज सुलभ हुआ करते हैं, लेकिन हिन्दुओं के सबसे सरल स्वभाव के माने जाने वाले शिव जी के दर्शन अब काशी में करना आम आदमी के लिए दुर्लभ शायद न हो लेकिन कठिन अवश्य होगा, क्योंकि काशी में ‘कॉरिडोर’ बनाने वाली सरकार अब यहां भक्तों से टोल टैक्स वसूलने जा रही है। हालांकि ये वसूली पिछले साल से शुरू हो चुकी है। अब तक देश के गिने चुने मंदिरों का प्रबंधन ही भगवान के दर्शन, पूजा, भोग और अनुष्ठानों का पैसा वसूला करता था, लेकिन अब काशी में विश्वनाथ और उज्जयनी में महाकाल के जरिये भी ये वसूली शुरू हो गई है।
काशी कहें या बनारस या वाराणसी देश का अविमुक्त क्षेत्र है। गंगा नदी के तट पर बसी इस धार्मिक नगरी के प्रति जितनी आशक्ति हिन्दुओं की है उतनी ही शायद बौद्धों की भी। यहां की करवट को काशी करवट कहते हैं। काशी भारत के प्राचीनतम नगरों में से एक है। यहां भगवान भोलेनाथ विश्वनाथ के नाम से रमे हुए हैं। काशी पांच हजार साल पुरानी है या तीन हजार साल पुरानी, लेकिन है हजारों साल पुरानी। इसका उल्लेख वेदों में भी है और पुराणों में भी। आज की काशी और कल की काशी में फर्क सिर्फ इतना है कि आज की काशी में कॉरिडोर है, कल की काशी में कॉरिडोर नहीं था। आज की काशी में भगवान विश्वनाथ के दर्शन, पूजा, भोग, आरती और अभिषेक के पैसे देने पड़ते हैं यहीं, कल की काशी में ये सब नहीं था। भगवान भोलेनाथ सबके लिए नि:शुल्क उपलब्ध थे। नि:शुल्क तो आज भी हैं किन्तु इसके लिए आपको दूर से दर्शन करने पड़ेंगे।
कल की काशी विश्वनाथ की काशी थी। आज की काशी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काशी है। उन्हें गंगा माँ ने गुजरात से आमंत्रित किया था अपनी सेवा करने के लिए। वे यहां के सांसद है, भाग्यविधाता है। जो काम खुद भगवान विश्वनाथ नहीं कर पाए वे सब काम गंगा के इस उत्साही बेटे ने कर दिखाए। मोदी जी ने काशी में भगवान शिव के लिए भव्य-दिव्य कॉरिडोर बनवा दिया। हिमालय में बसने वाले विश्वनाथ के लिए ये सब अद्भुत रहा होगा। मोदी जी की ही सहमति से अब बाबा विश्वनाथ के दर्शनों की रेट सूची लागू की गई है। कोई इसका विरोध नहीं कर सकता। करना भी नहीं चाहिए, अन्यथा इसे देशद्रोह माना जा सकता है।
कहने को मैं बहुत धार्मिक व्यक्ति नहीं हूं किन्तु कभी-कभी परिवार के साथ मंदिरों में जाता हूं। बाबा विश्वनाथ के मंदिर में भी गया हूं मैं, किन्तु मुझे कभी कोई शुल्क नहीं देना पड़ा, हालांकि उस समय भी पण्डे-पुजारी अपनी सेवा सूची के अनुसार धन की मांग करते थे, लेकिन अब तो मंदिर प्रबंधन ने बाकायदा हर काम की सूची लगा दी है। देश में पहले ऐसे वसूलियां तिरुपति और सांई बाबा के मंदिरों में की जाती थी। दूसरे मंदिरों में भी शायद होती हो। लेकिन देश के अधिकांश मंदिरों में भगवान के दर्शनों, पूजा, आरती, प्रसाद, भोग, अभिषेक के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।
हिन्दुओं के भारत में आज भी मंदिरों को छोड़ दीजिए तो गुरुद्वारों, गिरजाघरों, मस्जिदों, मठ-मंदिरों में कोई शुल्क नहीं लिया जाता, उलटे तमाम चीजें नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाती हैं। किन्तु कलिकाल में धर्म भी धंधा हो गया है। सरकारें मंदिरों में कॉरिडोर बना रहीं है। देवी-देवताओं के लोक बना रहीं है। शायद ये सब पीपीपी मोड से हो रहा है। यानि जैसे पीपीपी तर्ज पर सड़कें बनती हैं तो उन पर चलने वालों से टोल टैक्स वसूल किया जाता है, ठीक वैसे ही मंदिरों में कॉरिडोर और लोक बनाने का खर्च भक्तों से वसूलने के लिए दरें निर्धारित की गई हैं। मुमकिन है कि भगवान ने खुद इसके लिए प्रबंधकों को अनुमति दी हो, लेकिन भगवान से पूछे कौन? वे तो बोलते ही नहीं। उनके अनन्य उपासक हैं प्रधानमंत्री जी। वे भी तो नहीं बोलते, दोनों एक जैसे हैं।
दुनिया के कितने देशों में पूजा घरों में दर्शन, पूजा-पाठ और अनुष्ठान के लिए पैसा वसूल किया जाता है, मुझे नहीं पता। लेकिन मैं दुनिया के जिन देशों में गया, वहां मुझे ऐसी कोई व्यवस्था देखने को नहीं मिली जैसी कि आज काशी, तिरुपति और सांई बाबा के मंदिर में है| भारत जैसे देश में जहां भगवान के भक्तों के घर चलकर पहुंचने के आख्यान बताए और सुनाए जाते हैं, वहां मंदिरों में शुल्क वसूली गले नहीं उतरती। भक्त वैसे ही मंदिरों में इतना चढ़ावा अर्पित करते हैं कि यदि उसे पण्डे-पुजारी और प्रबंधक न हड़पें तो मंदिरों का रख-रखाव बिना सरकार की इमदाद और हस्तक्षेप के हो सकता है। पर भारत तो भारत है। यहां पूजा घरों का प्रबंधन खुद सरकार देखती है। सरकार मंदिर बनाने के नाम पर बनती और बिगड़ती है। मंदिर-मस्जिद के नाम पर चुनाव लड़े जाते हैं, इसलिए यहां मंदिरों से वसूली भी की जा सकती है। इसे न कोई अदालत रोक सकती है और न खुद भगवान। सरकार के सामने भक्त ही नहीं भगवान भी असहाय हैं इस समय।
मुमकिन है कि मंदिरों में हर कार्य के लिए शुल्क निर्धारण को वामपंथी या हम जैसे लोग जजियाकर कहें किन्तु इसके समर्थन में तर्क देने वाले तमाम लोग भी देश में हैं। इस्कॉन जैसे संगठन तो कृष्ण के नाम पर कमा-खा रहे ही हैं, बीते आधी सदी से ज्यादा समय से उनका धंधा चल रहा है। आज हर पवित्र नगर में संतों-महंतों के आश्रम होटलों और रिसोर्ट में तब्दील हो चुके हैं, ऐसे में सरकार क्यों पीछे रहे? सरकार इन मंदिरों पर गांठ से कब तक खर्च करे? भक्तों का भी तो कोई दायित्व है कि नहीं? जो नहीं दे सकते, वे दर्शन न करें, आरती में शामिल न हों, अभिषेक न करें। सीधे कतार में लगें और दूर-दर्शन करे। मंदिर की देहलीज पर माथा टेक कर भगवान तक अपनी बात पहुंचा दें। किसी ने रोका है क्या उन्हें ?
जाहिर है कि मंदिरों में अछूतों के प्रवेश के लिए लड़ने वाले लोग भी अब इस नई व्यवस्था के खिलाफ खड़े नहीं हो सकते। क्योंकि ऐसे लोगों और संगठनों ने अब अपने खुद के मंदिर और मठ बना लिए हैं। वहां उनकी चलती है। ऐसे लोगों और उनके अनुयायियों को बाबा विश्वनाथ के मंदिर जाना ही नहीं है तो वे इसका विरोध क्यों करें? दुर्भाग्य ये है कि देश में भक्तों की कोई ट्रेड यूनियन नहीं है जो इस तरह के तुगलगी फैसलों का विरोध कर सकें। भक्तों के मंडल तो ज्यादा से ज्यादा भंडारे करा सकते हैं, मुफ्त में पानी पिला सकते हैं, वे सरकार के खिलाफ तो खड़े नहीं हो सकते। सरकार की खिलाफत करने से भगवान खुश थोड़े ही हो जाएंगे। पुण्य तो सरकार का साथ देने में है। हां में हां मिलाने में हैं।
मेरे ख्याल से आज धरती पर भगवान सर्वशक्तिमान नहीं है। सर्वशक्तिमान सरकारें है। भले उनमें एक इंजिन हो या दो। कम से कम भारत में तो यही स्थिति है। इसलिए मैं हमेशा कहता हूं कि सरकार से डरो और नहीं डरना तो प्रतिकार करो और मरो। वैसे हकीकत ये है कि सरकार से डरकर आपको पांच किलो मुफ्त का राशन तो मिल सकता है किन्तु मोक्ष नहीं मिल सकता। मोक्ष के लिए तो आपको सरकार के तुगलगी फैसलों के खिलाफ खड़े होकर लड़ना-मरना पड़ेगा, शहीद होना पड़ेगा, तभी मोक्ष की प्राप्ति होगी।
काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील वर्मा के अनुसार बाबा के मध्याह्न भोग, सप्तर्षि और रात्रि ऋंगार/ भोग आरती के लिए भक्तों को आम दिनों में 300 रुपए देने पड़ते थे| अब सावन महीने के आम दिनों में 500 रुपये देने होंगे| सावन के दिनों में एक शास्त्री से रुद्राभिषेक पर 500, पांच शास्त्री से रुद्राभिषेक पर सावन में सोमवार छोड़ 2100 रुपये तो सावन के सोमवार पर चीन हजार रुपये देने होंगे| श्रावण सन्यासी भोग के लिए सावन में सोमवार को छोड़ 4500 रुपए तो सावन के सोमवार पर 7500 रुपए देने होंगे| इसके अलावा सावन के सोमवार पर होने वाले श्रावण श्रृंगार पर 20 हजार रुपए का शुल्क देना होगा| इससे बाबा के भक्तों की जेब पर असर पड़ेगा|
इस मामले में आपकी आप जानें, किन्तु मै तो मंदिरों में होटलों की तरह लगाई जाने वाली रेट लिस्ट से असहमत हूं। इसका पुरजोर विरोध करता हूं। हिन्दू होकर करता हूं। हिन्दुस्तानी होकर करता हूं।
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