– राकेश अचल
पिछले एक दशक से भारतीय राजनीति में वंशवाद, जातिवाद और न जाने क्या-क्या चर्चा में है। लेकिन विदेशी हाथ कहीं नजर नहीं आ रहा था। विदेशी हाथ कांग्रेस की तरह कमजोर हो गया, सो भाजपा सरकार को इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी। अब जब भाजपा को भी दिन में तारे नजर आने लगे हैं तो उसने भी एक ऐसा विदेशी हाथ खोज लिया। जो सबका साथ, सबका विकास करने वाली सरकार को बदनाम करने में लगा है।
भाजपा ने जो विदेशी हाथ खोजा है वो उसी अमेरिका का है, जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्टेट डिनर के लिए आमंत्रित किए गए हैं। ये विदेशी हाथ ट्विटर के पूर्व सीईओ जैक डार्सी का है। डार्सी ने हाल ही में हमारी लोकप्रिय केन्द्र सरकार पर अनेक गंभीर आरोप लगाए तो सरकार और सरकारी पार्टी भाजपा को भी गंभीर होना पड़ा। भाजपा ने ट्विटर के पूर्व सीईओ जैक डॉर्सी के केन्द्र सरकार पर लगाए गए आरोपों को कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से भडक़ाया गया मामला बताया। राहुल गांधी अक्सर विदेश जाते हैं, उनके तमाम विदेशी दोस्त हैं। वे विदेश में पढ़े-लिखे हैं। इसलिए उनका विदेशी हाथों से ताल्लुक स्वाभाविक है। भाजपा के आरोपों को लेकर राहुल गांधी कुछ नहीं बोले, लेकिन उद्धव ठाकरे गुट की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी से नहीं रहा गया, उन्होंने विदेशी हाथ को लेकर सवाल खड़े किए हैं। प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि क्या ये प्रधानमंत्री और सरकार की शानदार विफलता नहीं है कि राहुल गांधी बिना किसी पद के ही तारों को खींच रहे हैं। केन्द्र सरकार की ओर से जैक डॉर्सी के दावों को खारिज कर दिया था।
भाजपा नेता संबित पात्रा ने डार्सी के ही ट्विटर पर एक कार्टून पोस्ट किया। इस कार्टून में राहुल गांधी एक कठपुतली चलाने वाले के तौर पर दिखाए गए हैं। वहीं, जैक डॉर्सी को कठपुतली के तौर पर दिखाया गया है, जिसकी डोर राहुल गांधी के हाथों में दिखाई गई है। पात्रा ने ये कार्टून पोस्ट करने के साथ लिखा कि अनुमान लगाने की कोई जरूरत नहीं है, हम सभी जानते हैं कि डोर कौन खींच रहा है? उनका इशारा विदेशी हाथ की ओर ही है। ट्विटर के सह संस्थापक रहे जैक डॉर्सी ने एक यूट्यूब चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा है कि किसान आंदोलन के दौरान भारत सरकार ने ट्विटर को उसके कर्मचारियों पर छापा मारने और ऑफिस को बंद करने की धमकी दी थी। उन्होंने दावा किया कि केन्द्र सरकार ने कुछ लोगों के अकाउंट बंद करने का दबाव बनाया था। डोर्सी ने हालांकि कोई बड़ा रहस्योदघाटन नहीं किया, क्योंकि सरकार का काम ही धमकियां देना, छापामार कार्रवाई करना और विरोधियों पर दबाव बनाना होता है। कांग्रेस की सरकार भी यही काम करती थी, भाजपा की भी कर रही है।
मुझे याद है कि एक जमाने में दुर्गावतार प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी अपनी हर नाकामी के पीछे विदेशी हाथ बताया करती थी। ये विदेशी हाथ अदृश्य होता था और केवल सरकार को ही नजर आता था। जनता जनार्दन ने इस विदेशी हाथ को कभी नहीं देखा। देश से कांग्रेस की सरकार गई तो विदेशी हाथ भी गायब हो गया। जैसे गधों के सिर से सींग गायब हो गए हैं। भाजपा की मौजूदा सरकार को विदेशी हाथ की जरूरत ही नहीं पड़ी। ठीकरा फोडऩे के लिए भाजपा के पास कांग्रेस और राहुल गांधी जो हैं। कांग्रेस का ठीकरा इतना बढिय़ा है कि बार-बार फोडऩे पर भी फूटता ही नहीं। वैसे विदेशी ताकतों पर भारतीय प्रधानमंत्रियों के बीच एक अजब समानता दिखती है। सन 1955 की शुरुआत में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिका पर ‘अखबारों को खरीदने और दुष्प्रचार में जुटे संगठनों का एक पूरा नेटवर्क तैयार करने’ का आरोप लगाया। फिर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘भारत को नीचे गिराने’ की साजिश रचने वाली विदेशी ताकतों पर हमला बोला। सीआईए एजेंट और अमेरिकी खुफिया अधिकारी रसेल जैक स्मिथ ने लिखा है, ‘मैडम गांधी की राय में तो वे हर चारपाई के नीचे और नीम के हर पेड़ के पीछे छिपे पाए जाते हैं। मितभाषी प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह, जो यकीनन भारतीय नेताओं में वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा चर्चित थे, को भी कुडनकुलम न्यूक्लियर रिएक्टर के खिलाफ एनजीओ के अभियानों को विदेशी मदद मिलने का संदेह था।
मेरा अपना तजुर्बा है कि यह पहली सरकार नहीं है जो विदेशी हाथ के सिद्धांत से ग्रस्त है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने परमाणु विरोधी अभियानों के लिए विदेशी हाथ को जिम्मेदार ठहराया और जब उनकी सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई थी, जिसके कारण अगले साल आम चुनावों में इसका दयनीय पतन हुआ, तो सिंह के प्रमुख मंत्रियों ने विदेशी धन का हवाला देते हुए नागरिक समाज समूहों और उनके इरादों पर सवाल उठाया। यह आश्चर्यजनक था, क्योंकि एक समय था जब सरकार को उसके नेतृत्व के नागरिक समाज के साथ जुड़ाव के कारण ‘एनजीओ-वाले’ के रूप में देखा जाता था। गैर-सरकारी संगठनों और दानदाताओं के खिलाफ मौजूदा सरकार की कार्रवाइयां भी उतनी ही आश्चर्यजनक हैं, क्योंकि जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके मंत्रियों ने कहा है, इसका ध्यान अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में देश की छवि को बचाने पर है। फिर सरकार एक अमेरिकी चैरिटी के पीछे जाने का जोखिम क्यों उठाएगी जिसमें कूटनीतिक नतीजे की संभावना है? फोर्ड फाउण्डेशन ने गुजरात में कुछ प्रमुख योजनाओं सहित कई सरकारी योजनाओं को लागू करने में भी मदद की है, जब मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे। यानि ‘हरि अनंत, हरि कथा अनंता’।