श्रीमद् भागवत कथा सुनने से प्राणियों का होता है कल्याण : प्रिंयका शास्त्री

ग्राम धौरका में चल रहा है 29 कुण्डीय श्रीराधा-कृष्ण महायज्ञ एवं श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ

भिण्ड, 20 मई। नगर दबोह के समीप ग्राम धौरका में 29 कुण्डीय श्रीराधा-कृष्ण महायज्ञ सर्वजातिय सामूहिक कन्या विवाह महायज्ञ, श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ एवं संत प्रवचन प्रारंभ हुए।
कथा के तीसरे दिवस प्रियंका शास्त्री ने श्रीमद् भागवत महापुराण की अमृत वर्षा से भक्तों कृतार्थ किया। उन्होंने श्रीमद् भागवत महात्म्य के विषय पर प्रकाश डालते हुए शुकदेव जन्म, परीक्षित श्राप और अमर कथा का वर्णन करते हुए बताया कि नारद के कहने पर पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा कि उनके गले में जो मुंडमाला है वह किसकी है, तो भोलेनाथ ने बताया कि वह मुंड किसी और के नहीं बल्कि स्वयं पार्वती जी के हैं, हर जन्म में पार्वती जी विभिन्न रूपों में शिव की पत्नी के रूप में जब भी देह त्याग करती शंकर जी उनके मुंड को अपने गले में धारण कर लेते हैं। पार्वती ने हंसते हुए कहा कि हर जन्म में क्या मैं ही मरती हूं आप क्यों नहीं, शंकर जी ने कहा कि हमने अमर कथा सुनी है, पार्वती जी ने कहा कि मुझे भी वह अमर कथा सुनाओ। शंकर जी पार्वती को अमर कथा सुनाने लगे। शिव-पार्वती के अलावा सिर्फ एक तोते का अंगूठा था जो कथा के प्रभाव से फूटा था, उसमें से शुकदेव जी का प्राकट्य हुआ, कथा सुनने के दौरान पार्वती जी सो गईं, वह पूरी कथा शुकदेव जी ने सुनी और अमर हो गए। शंकर जी शुकदेव के उनके पीछे मृत्यु देने के लिए दौड़ रहे हैं, शुकदेव भागते हुए व्यासजी के करीब पहुंच गए और उनकी पत्नी के मुंह से गर्भ में प्रविष्ट हो गए। 12 साल बाद शुकदेव जी गर्व से निकले। इस तरह शुकदेव जी का जन्म हुआ।
कथा व्यास प्रियंका शास्त्री ने बताया कि भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बताती है। राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का स्वर प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं, भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि भागवत के चार अक्षर लेखक यह हैं- भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त से त्याग, जो हमारे जीवन में प्रदान करते हैं, उसे हम भागवत कहते हैं। इसके साथ भागवत के छह प्रश्न, निष्काम भक्ति, 24 अवतार, नारद का पूर्व जन्म, परीक्षित जन्म, कुंतीदेवी के सुख के अवसर में भी विपत्ति की याचना करती है। क्योंकि दुख में ही तो गोविन्द का दर्शन होता है। जीवन की अंतिम बेला में दादा भीम गोपाल का दर्शन करते हुए अद्भुत देह त्याग का वर्णन किया, साथ में परीक्षित को श्राप कैसे लगा और भगवान शुकदेव ने मुक्ति प्रदान करने के लिए कैसे प्रगट प्रविष्टि आदि का ब्योरा विवरण दिया। श्रीमद् भागवत तो दिव्य कल्पतरु है, यह अर्थ, धर्म, काम के साथ भक्ति और जीव को परम पद प्राप्त करने की प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नहीं, साक्षात श्रीकृष्ण स्वरूप है। इसके एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हैं। कथा समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मों से अधिक है। कथा सुनने वाले भक्त भाव विभोर हो गए। कथा के बीच में मेरी लगी श्याम संग प्रीति और मां की ममता के महत्व का भजन सुनकर भक्त आत्मसात हो गए।