– राकेश अचल
मुश्किल होना थी, लेकिन आसानी क्यों।
भूखों की बस्ती में तल्ख जुबानी क्यों।।
आसमान का अक्श पोखरों तक में है।
मेरी आंखों में है तो हैरानी क्यों।।
यहां कौन सा सोना चांदी रक्खा है।
ख्वाब देखने वालों पर निगरानी क्यों।।
कोई खास बात है, या कोई साजिश।
आवभगत में ये ढेरों खुरमानी क्यों।।
हमें हमारा हक दे दो, हम घर जाएं।
लेन देन में इतनी आनाकानी क्यों।।
बातचीत से हल हो सकते हैं मसले।
बेमतलब इसकी खातिर कुर्बानी क्यों।।