मप्र भाजपा के अंत:पुर में असंतोष

– राकेश अचल


बिना जनादेश के बीते तीन साल से सत्तारूढ़ भाजपा के दीवाने खास में असंतोष से भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व भले ही हलकान न हो, लेकिन मामा शिवराज सिंह चौहान और पं. वीडी शर्मा की जोड़ी के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गई है। भाजपा की कलह ही आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा का असल संकट है।
मप्र भाजपा में कांग्रेस की तरह जातीय गणित साधने की मजबूरी ने इस कलह को जन्म दिया है। कहने को मप्र भाजपा की कमान ब्राह्मण वीडी शर्मा के हाथों में है, किंतु सत्ता में ब्राह्मणों की भागीदारी नगण्य है। प्रदेश भाजपा के तमाम ब्राह्मण नेताओं को पिछले कुछ सालों में योजनाबद्ध तरीके से किनारे कर दिया गया है। भाजपा में इसी असंतोष की वजह से 2018 के विधानसभा चुनाव में मप्र से भाजपा की डेढ़ दशक पुरानी सरकार के पैर उखड़ गए थे। कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीनी लेकिन सरकार चला नहीं सकी। 18 महीने में ही कांग्रेस में उपेक्षित ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत कर कांग्रेस सरकार को अस्थिर कर भाजपा की सरकार बनवा दी थी।
मजे की बात ये है कि 20 मार्च 2020 को जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से सत्ता मिली थी, वे ही सिंधिया अब भाजपा में असंतोष की जड़ बन गए हैं। सिंधिया के भाजपा में आने के बाद से उपेक्षित भाजपा के तमाम नेता अब संगठित होकर पार्टी नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के सुपुत्र दीपक जोशी ने इस बगावत की अगुवाई करते हुए सबसे पहले भाजपा से बाहर जाने के संकेत दे दिए हैं। मप्र भाजपा में इस बार असंतोष चौतरफा है। मालवा, ग्वालियर-चंबल, विंध्य और महाकौशल में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा को लेकर भीषण असंतोष है। पूर्व विधायक सत्यनारायण सत्तन, अनूप मिश्रा, अजय विश्नोई जैसे तमाम नेता अब पार्टी नेतृत्व के खिलाफ एक स्वर में बोल रहे हैं। असंतोष के इन स्वरों में ताजा नाम पार्टी के महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय का भी जुड़ गया है। कैलाश विजयवर्गीय बीते दो दशक से मुख्यमंत्री पद की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
आने वाले दिनों में भाजपा को कांग्रेस के खिलाफ रणनीति बनाने के साथ ही अपने भीतर से होने वाले खतरों के लिए भी रणनीति बनाना होगी। इस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संकटमोचक अकेले डॉ. नरोत्तम मिश्रा हैं। वे गृहमंत्री हैं और कथित तौर पर ब्राह्मणों के स्वयंभू, एकछत्र नेता भी। वे भी अपने आपको शिवराज सिंह चौहान का उत्तराधिकारी मान कर चल रहे हैं। मप्र भाजपा में असंतोष या विद्रोह की ये पहली घटना नहीं है। सबसे पहले तो मप्र में भाजपा को सत्तरूढ़ कराने वाली सुश्री उमा भारती ने पार्टी में बगावत का बिगुल बजाया था। उन्होंने अपनी अलग पार्टी भी बनाई और कुछ वर्षों बाद वे वापस भाजपा में आ भी गई, लेकिन उन्हें पहले जैसा मान-सम्मान नहीं मिला।
भाजपा के असंतुष्ट नेता अब उमा भारती जैसी गलती करने के बजाय कांग्रेस में शामिल होकर अपने अपमान का बदला लेना चाहते हैं। दीपक जोशी का कांग्रेस में शामिल होना लगभग तय है। उन्हें मनाने में भाजपा नाकाम रही है। दीपक जोशी को यदि कांग्रेस में ठीक-ठाक महत्व मिला तो मुमकिन है कि दूसरे नाराज नेता कांग्रेस का रुख कर लें। कांग्रेस के लिए भाजपा से हिसाब बराबर करने के लिए भाजपा के बागियों को अपनाना जरूरी हो गया है।
मप्र भाजपा के अधिकांश असंतुष्ट नेता भाजपा के नए छत्रप केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की कार्यप्रणाली से नाराज हैं। सिंधिया समर्थक मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। लेकिन सिंधिया किसी की परवाह नहीं कर रहे। सिंधिया को लगता है कि वे भाजपा के लिए अनिवार्य हो चुके हैं। तीन साल पहले की इस हकीकत में अब काफी बदलाव आया है। मप्र में विधानसभा चुनाव में अब गिनती के दिन बचे हैं। इस अल्प समय में भाजपा नयी सरकार बनाने के लिए कितने इंजन लगाएगी कोई नहीं जानता। मौजूदा सरकार डबल इंजन के बाद भी हांफती नजर आ रही है। भाजपा को मौजूदा संकट से उबारने के लिए मोदी-शाह की जोड़ी खुद मोर्चा सम्हाले तो मुमकिन है कि बात बन जाए।