जिला न्यायालय भिण्ड में नेशनल लोक अदालत आयोजित

विभिन्न खण्डपीठों में भी निपटाए गए अनेक प्रकरण

भिण्ड, 12 नवम्बर। भिण्ड जिले में नेशनल लोक अदालत का औपचारिक शुभारंभ एडीआर भवन जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जिला न्यायालय परिसर भिण्ड में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश एवं अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण भिण्ड अक्षय कुमार द्विवेदी एवं अध्यक्ष जिला उपभोक्ता संरक्षण फोरम अमनीश कुमार वर्मा ने मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं द्वीप प्रज्जवलित कर किया। इस अवसर पर विशेष न्यायाधीश डीपी मिश्र, प्रधान न्यायाधीश कुटुंब न्यायालय भिण्ड लखनलाल गर्ग, जिला न्यायाधीश एवं सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण भिण्ड सुनील दण्डौतिया, अपर कलेक्टर प्रवीण फुलपगारे, अभिभाषक संघ भिण्ड के अध्यक्ष रज्जन सिंह भदौरिया सहित जिला न्यायालय के अधिकारीगण, अधिवक्तागण एवं कर्मचारी उपस्थित थे।


नेशनल लोक अदालत के आयोजन हेतु जिला मुख्यालय भिण्ड एवं न्यायिक तहसील मेहगांव, गोहद एवं लहार हेतु कुल 33 न्यायिक खण्डपीठों का गठन किया गया था, जिसमें से जिला मुख्यालय भिण्ड एवं तहसील मेहगांव, गोहद एवं लहार में लंबित कुल न्यायालयीन प्रकरण संख्या 657 प्रकरणों का निराकरण किया गया जिसमें कुल 1414 पक्षकार लाभान्वित हुए तथा एक करोड़ 42 लाख 23 हजार 148 रुपए का अवार्ड पारित किया गया। उक्त प्रकरणों के अतिरिक्त प्रीलिटिगेशन जिनमें जलकर, सम्पत्तिकर, विद्युत बीएसएनएल, बैंक आदि के कुल प्रीलिटिगेशन प्रकरण संख्या 796 का निराकरण किया गया, जिसमें 1179 व्यक्ति लाभांवित हुए तथा उक्त प्रीलिटिगेशन प्रकरणों में कुल 48 लाख 81 हजार 571 रुपए की राशि वसूल की गई।

मुकद्दमे की 30वीं वर्षगांठ पर हुआ मुकद्दमें का अंत

जिले के ग्राम बिलाव निवासी गौरादेवी की उनके पिता की ग्राम बिलाव में 2.6 एकड़ की कृषि भूमि थी, जिसके संबंध में उन्होंने एक मात्र वारिस पुत्री ने दावा प्रस्तुत किया गया था। जिस पर प्रतिवादी क्र.दो दुजादेवी ने वादी के पिता की पत्नी होने तथा प्रतिवादी क्रप्तएक विजयराम वादी के पिता दुरगन का पुत्र होने का दावा करते हुए अपने नाम क्रमश: 1/3 भूमि अपने नाम स्थानांतरित करवा ली। उक्त स्थानांतरण से व्यथित होकर गौरा देवी ने 12 नवंबर 1992 को जिला न्यायालय भिण्ड के व्यवहार न्यायाधीश की अदालत में कृषि भूमि से संबंधित स्वत्व घोषणा एवं स्थाई निषेधाज्ञा हेतु अर्जी लगाई थी। उक्त न्यायालय द्वारा गौरा देवी के पक्ष में डिकी पारित हुई जिसमें प्रथम अपील 24 फरवरी 2004 को प्रतिवादीगणों द्वारा प्रस्तुत हुई, जिसमें मामला पुन: अधीनस्थ न्यायालय को भेज दिया गया, जिसके विरुद्ध वादी गौरादेवी ने उच्च न्यायालय में द्वितीय अपील प्रस्तुत की थी। जिसमें न्यायमूर्ति दीपक कुमार अग्रवाल द्वारा मामला पुन: प्रथम अपीलीय न्यायालय भेज दिया गया तथा तीन माह में निराकरण करने के निर्देश दिए गए। यह मामला नेशनल लोक अदालत की खण्डपीठ क्र.चार में प्रस्तुत किए जाने हेतु रैफर किया गया, जिसके तारतम्य में उभयपक्ष पीठासीन अधिकारी हेमंत सविता प्रथम जिला न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत हुए। उक्त मामले में खण्डपीठ द्वारा दोनों पक्षों को समझाइश दी गई जिस पर दोनों पक्ष आपसी सहमति से मामले का अंत करने हेतु राजी हुए। वादी गौरादेवी द्वारा प्रतिवादी दुजादेवी एवं विजयराम को क्रमश: अपनी मां एवं भाई के रूप में मान्यता देते हुए विवादित भूमि का 1/3, 1/3 भाग देना स्वीकार किया गया। प्रतिवादियों ने भी उन्हें घर का बुजुर्ग मानकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। इस प्रकार से 30 वर्षों की आपसी कटुता को समाप्त कर दोनों पक्ष एक-दूसरे के गले मिले तथा फूलमाला भी पहनाई और खुशी-खुशी एक-दूसरे के साथ सौहार्द पूर्वक रहने का वादा करते हुए अपने घर के लिए रवाना हुए।