– राकेश अचल
इंसानों की आवारगी पर आज तक देश का कोई श्वान सर्वोच्च न्यायलय नहीं पहुंचा, लेकिन इंसान आवारा श्वानों के मुद्दे पर देश की सबसे बडी अदालत तक जा पहुंचा। संवेदनशील अदालत ने आवारा श्वानों के वारे में याचिका सुनी भी और कुछ निर्देश भी दिए जो देशभर के श्वान विरोधियों के लिए एक सबक है। देश के आवारा श्वानों की ओर से मैं सर्वोच्च न्यायलय का आभार व्यक्त करता हूं।
मेरे लिए आवारा श्वानों के खिलाफ दर्ज याचिका की न्यूज वेल्यू केंचुआ के खिलाफ दर्ज याचिकाओं से कम नहीं है। श्वानों के प्रति मेरा प्रेम, मेरी संवेदना अनुवांशिक हैं। मेरी दादी मां फूलकुंवर देवी निरक्षर थीं, लेकिन सांसारिक मुद्दों पर उनका ज्ञान असीमित था। वे आवारा श्वानों को उसी स्नेह से रोटी खिलाती थीं जितने स्नेह से गाय को। सनातन भारतीयों के लिए आवारा गाय फिर भी पूजनीय है, लेकिन आवारा श्वान नहीं। मारी दादी आवारा, बेसहारा श्वानों को ‘बिना झोली का फकीर’ कहती थीं। कमोवेश यही बात सुप्रीम कोर्ट ने कही है।
सुप्रीम कोर्ट ने आवारा श्वानों को खाना देने से जुडी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता से ही सवाल पूछ लिए। अदालत ने नोएडा में आवारा श्वानों को खाना देने पर परेशान किए जाने का आरोप लगाने वाली एक याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा ‘आप उन्हें अपने घर में खाना क्यों नहीं देते हैं’? जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, ‘क्या हमें इन बडे दिल वाले लोगों के लिए हर गली, हर सडक खुली छोड देनी चाहिए? इन जानवरों के लिए तो पूरी जगह है, लेकिन इंसानों के लिए कोई जगह नहीं है। आप उन्हें अपने घर में खाना क्यों नहीं देते? आपको कोई नहीं रोक रहा है।’ यह याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट के मार्च 2025 के आदेश से संबंधित है।
इस पर वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता को परेशान किया जा रहा है और वह पशु जन्म नियंत्रण नियमों के अनुसार सडकों पर रहने वाले श्वानों को खाना देने में असमर्थ है। पशु जन्म नियंत्रण नियमावली, 2023 का नियम 20 सडकों पर रहने वाले पशुओं के भोजन से संबंधित है और यह परिसर या उस क्षेत्र में रहने वाले पशुओं के भोजन के लिए आवश्यक व्यवस्था करने का दायित्व स्थानीय ‘रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन’ या ‘अपार्टमेंट ऑनर एसोसिएशन’ या स्थानीय निकाय के प्रतिनिधि पर डालता है। शीर्ष अदालत ने इस पर कहा, ‘हम आपको अपने घर में ही एक आश्रय स्थल खोलने का सुझाव देते हैं। गली-मोहल्ले के प्रत्येक श्वाने को अपने घर में ही खाना दें।’ याचिकाकर्ता के वकील ने नियमों के अनुपालन का दावा किया और कहा कि नगर प्राधिकार ग्रेटर नोएडा में तो ऐसे स्थान बना रहा है, लेकिन नोएडा में नहीं। उन्होंने कहा कि ऐसे स्थानों पर भोजन केन्द्र बनाए जा सकते हैं, जहां लोग अक्सर नहीं आते।
पीठ ने इस पर पूछा, ‘आप सुबह साइकिल चलाने जाते हैं? ऐसा करके देखिए क्या होता है।’ जब वकील ने कहा कि वह सुबह की सैर पर जाते हैं और कई श्वानों को देखते हैं। तो पीठ ने कहा, ‘सुबह की सैर करने वालों को भी खतरा है। साइकिल सवार और दोपहिया वाहन चालकों को ज्यादा खतरा है।’ इसके बाद पीठ ने इस याचिका को इसी तरह के एक अन्य मामले पर लंबित याचिका के साथ संलग्न कर दिया। इससे पहले उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए नियमों के प्रावधानों को उचित देखभाल और सतर्कता के साथ लागू करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया। न्यायालय ने कहा, ‘कानून के प्रावधानों के अनुसार गलियों में रहने वाले श्वानों का संरक्षण आवश्यक है, लेकिन साथ ही अधिकारियों को आम आदमी की चिंता को भी ध्यान में रखना होगा ताकि इन आवारा श्वानों के हमलों से सडकों पर उनकी आवाजाही बाधित न हो।’
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि भारत में आवारा श्वानों की आबादी के बारे में अलग-अलग स्त्रोतों से विभिन्न आंकडे सामने आते हैं। 2019 की पशुधन गणना के अनुसार, भारत में आवारा श्वानों की संख्या लगभग 1.53 करोड थी, जो 2012 में 1.71 करोड थी। हालांकि, कुछ अन्य स्त्रोतों और सोशल मीडिया पोस्ट्स के अनुसार, यह संख्या 6.2 करोड तक हो सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में आवारा श्वानों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है और यह रेबीज जैसी बीमारियों के प्रसार का प्रमुख कारण भी है। सटीक संख्या में अंतर स्त्रोतों और गणना के समय पर निर्भर करता है, लेकिन अनुमानित तौर पर यह 1.5 करोड से 6.5 करोड के बीच हो सकती है।
भारत में श्वानों की आवारगी भले ही एक राष्ट्रीय समस्या है, लेकिन ये ही भारतीय श्वान को भगवान भैरव की सवारी मानकर उसे पूजते भी हैं। टोटके-टमने वाले लोगों को काले श्वान को रोटी खिलाने की सलाह देते हैं। हमारे समाज में श्वान की मौत को सबसे घृणित और निकृष्ट मानकर इसे गाली के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। श्वान और इंसान का संबंध सनातन है। द्वापर में तो धर्मराज युधिष्ठिर का श्वान तो स्वर्ग के दरवाजे तक पहुंचा। दुर्भाग्य ये है कि देश में आवारा इंसानों के लिए हवालातें और मर्सी होम्स हैं। आवारा गायों के लिए गौशालाएं हैं, लेकिन श्वानों के लिए कोई माकूल इंतजाम नहीं है। श्वान आए दिन इंसानों की क्रूरता और नृशंसता के शिकार होते हैं, वाहनों से कुचले भी जाते हैं। विदेशों में श्वान इंसानों की तरह सम्मानित जीवन जीते हैं।