बेटे से बतरस

– राकेश अचल


पचा रहे हैं गाली बेटा
करके रोज जुगाली बेटा
पापी पेट भरेगा कैसे
रीती है हर थाली बेटा

बागड खेत खा रही फिर भी
चुप बैठा है माली बेटा
हार चुकी बेचारी जनता
बजा बजाकर ताली बेटा

गधे चर गये दूर दूर तक
नहीं बची हरियाली बेटा
कालिदास बैठे जिस ऊपर
काट रहे वो डाली बेटा

गला बैठता नहीं अजब है
गा गाकर कव्वाली बेटा
कौन सुनेगा, किसे बताएं
चौतरफा बदहाली बेटा

सत्ता प्रतिष्ठान में आकर
हुए सभी ऐमाली बेटा
पीते हैं घी सब उधार का
भूल गए कंगाली बेटा