भिण्ड, 28 सितम्बर। चाहे शत्रु कुल का ही व्यक्ति क्यों न हो अगर वह आपकी शरण में आ जाए तो उसे अभयता प्रदान करना चाहिए तथा कल्याण मार्ग में चलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। जिस प्रकार से भगवान श्रीराम के शरण में विभीषण आते हैं और भगवान उन्हें अपने शरण में ले लेते हैं। भगवान का अवतार राक्षसों के दमन से अधिक भक्तों की रक्षा के लिए होता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह की प्रधानता से ही आसुरी प्रवृत्ति संसार में बढ़ती है। इन सबसे बचने का मुख्य रास्ता श्रीराम कथा का श्रवण और उसका दैनिक जीवन में पालन ही है, दूसरा कोई उपाय नहीं है। यह बात अनंत विभूषित काशी धर्म पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ महाराज ने अटेर क्षेत्र के परा गांव स्थित अमन आश्रम परिसर में चल रहे नौ दिवसीय श्रीराम कथा ज्ञानयज्ञ के सातवें दिन कही।
उन्होंने बताया कि कोई भी कार्य करना हो तो पहले इच्छा शक्ति होनी चाहिए, जब तक इच्छा शक्ति नहीं होगी तब तक कार्य की सिद्धि नहीं होगी। इसी प्रकार से पहले मोक्ष की इच्छा जब किसी को जागृत होती है, तभी उसका कल्याण होता है। अगर मोक्ष की इच्छा न हो तो शास्त्र का उपदेश सुनना व्यर्थ होता है। गुरु तो बना लिया गुरू से लाभ क्या है, जिस उद्देश्य से गुरु शिष्य का संबंध बनाया था, उस उद्देश्य की पूर्ति हुई कि नहीं इस पर विचार नहीं किया। दुनिया के चक्कर में पड़कर मनुष्य इस चीज को भूल जाता है। एक अवस्था ऐसी आती है जहां कुछ भी काम नहीं देता है, केवल पछताना ही शेष रह जाता है। वाल्मीकि जी के मन में धर्मशास्त्र लिखने की इच्छा जागृत हुई, उनके मन में आया कि माता-पिता का व्यवहार अपने बच्चों के प्रति कैसा होना चाहिए और बच्चों का व्यवहार अपने माता-पिता के साथ कैसा होना चाहिए, भाई-भाई का व्यवहार कैसा होना चाहिए, पति-पत्नी का व्यवहार कैसा होना चाहिए धर्म का पालन कैसे करना चाहिए। किसी को आज्ञा करने से धर्म जीवन में नहीं उतरता, उन्होंने सोचा धर्म को ऐसे उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाए, जिसको श्रवण करके, देख करके सुन करके उनके भावों को, उसका भाव करके लोग चरित्रवान बनें। चरित्रवान बनाने के लिए लोगों को धर्मशास्त्र पढ़ने की जरूरत न रह जाय और किसी धर्मशास्त्र और किसी के पास जाने की जरूरत ना रह जाय, इसलिए राम चरित्र में धर्म की व्याख्या की गई है। राम के हृदय में भाइयों से कितना प्रेम है, भाई-भाई को कितना प्रेम से रहना चाहिए। ज्ञान जब व्यापक हो जायेगा देह का अभिमान जब दूर हो जायेगा तो सारा संसार अपना भाई और सारा संसार आपका परिवार हो जाएगा। छल कपट, लोभ, स्वार्थ व कुटिलताओं का उन्मूलन प्रेम पर आधारित विश्व एकता से ही संभव है। प्रेम में अपूर्व शक्ति है। इससे बड़ी कोई दूसरी शक्ति नहीं है। सात्विक प्रेम ही परिवार, राज्य, राष्ट्र और विश्व की एकता का मूल-सूत्र है।
शंकराचार्य ने आगे कहा प्रत्येक नर-नारी उचित आहार-विहार का सेवन करे। उचित आचरण करने वाला, समय पर सोने जागने वाला, कर्मों में चेष्टा रखने वाला कर्मेन्द्रिय होता है। मन का सीधा संबंध शरीर से है। जो नर-नारी अपने शरीर को ठीक नहीं रख सकता वह अपने मन को ठीक कैसे रखेगा? अपने भोजन, व्यवहार को ठीक रखो, जिससे जो बात कहो उसका पालन करो। मैं पंचभूतों का समुदाय नहीं हूं। प्रात:काल अपनी आत्मा से नि:सृत होने वाले आत्म तत्व का हम चिंतन करते हैं। भगवान श्रीराम आत्म तत्व का चिंतन किया करते थे। भगवान का सबसे बड़ा उपकार हमें बुद्धि प्रदान करना है। हमें अपनी बुद्धि को ठीक रखना है। जिस बात से बुद्धि बिगड़ती हो वही अधर्म है, जिस खान-पान से बुद्धि बिगड़ती हो वह अधर्म है। हम संकल्प लें कि धर्म करते हुए ही हमारा शरीर छूटे। सनातन धर्म अनादि है, शाश्वत है, सारे विश्व के कल्याण के लिए है, हर नर-नारी सच्चिदानंद आत्मस्वरूप हो जाए यही स्वधर्म है।